नमस्कार मित्रों।
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दोस्तों आप को बहोत बहोत धन्यवाद। आप इस तरह हमारे पोस्ट को पढ़ते रहिये और हमे नए आर्टिकल्स लिखने की प्रेरणा देते रहिये। दोस्तों आज हम बात करेंगे इस भारत के महान हिन्दू सनातन धर्म की उस परंपरा के बारे में जिसने हमे एक अध्यात्म के राह से जोड़ा। हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसका महत्व का स्थान है।
दोस्तों वैदिक परंपरा से ही हमारे हिन्दू सनातन धर्म के रीती रिवाजों में यज्ञ एवं हवन का महत्व रहा है। आज का विज्ञान भी इस परंपरा को मानने से इन्कार नहीं कर सकता। आज हम यज्ञ और हवन और होलिका दहन जैसे हमारे त्यौहार और परंपरा से सदियों से हमे हो रहे लाभ के बारे में जानेंगे।
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शतं जिव शरदो वर्धमानः शतं।
हेमंतागच्छतमु वसंतान।।
शतं त इंद्रो अग्निः सविता।
बृहस्पतिः शतायुषा हविशाहार्षमन।।
हे रोगी। तू सो शरद ऋतु , सो हेमंत ऋतु और सो वसंत ऋतु तक दिन प्रतिदिन प्रगति की रह पर चले। जिवित रहे। इन्द्र , अग्नि , सूर्य और बृहस्पति सर्व देवगण तुम्हारे शरीर को सो वर्ष तक जीवित रखने के लिए यज्ञ की आहुति के शक्ति से मृत्यु के मुख से खिंच लाये। ( अथर्व वेद : २० , ९६ , ९ )
अथर्व वेद की यह ऋचा पर सूक्ति द्वारा ऋषिने रोगी को यज्ञ के आधार से स्वस्थ और शतायु होनेका निर्देश किया है। यह श्लोक में यज्ञ के महिमा का ज्ञान तो है किन्तु इसके साथ पूर्ण आयुष्य के साथ परिपूर्ण आयुष्य कैसे प्राप्त किया जाये उसका चिकित्सा शास्त्रीय रहस्य भी उद्घटित किया है।
थोड़े वर्ष पूर्व बुद्धिवादीओ और वैज्ञानिको ने दावा किया था की यह यज्ञ , हवन जैसे हिन्दू धर्म के रिवाज और अनुष्ठान यह सब निरर्थक है। उसमे आहुति देने वाली वस्तुओं का दुर्व्यय है।
यज्ञ की आहुति में उपयोग में लिए जाने वाली वस्तुओ और धान जैसे की तिल , जव , घी इन सब चीजों को डालकर किये जाने वाले धुँवा वह पैसे की बर्बादी है। यह सब निरर्थक है।
किन्तु दोस्तों में आपको बताना चाहूंगा की वैज्ञानिको एवं तार्किकविदों का नजरिया अब बदल गया है। उनके जो उलटी गंगा में बहने वाले सुर है वह सही दिशा पकड़ लिए है। वह लोग जो यज्ञ को निरर्थक और बेहूदा मानते थे आज वही इस परंपरा को स्वीकारने पर मजबूर है। बेबस है।
अब दोस्तों यही वैज्ञानिक यह कह रहे है की यज्ञ और हवन एक सर्वश्रेष्ठ उपचार पद्धति है , यज्ञ के वातावरण का शरीर पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है। इससे छोटे बड़े सभी असाध्य रोग धीरे धीरे नष्ट हो जाते है। और बाद में यह जड़ से नाबूद हो जाते है।
यज्ञ के वातावरण से रोग कितने अंश तक रुक जाता है या दूर होता है यह जानने के लिए वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया। उन्होंने कांच की १२ बॉटल ली और उसे अत्यंत स्वच्छ और शुद्ध कर उसे दो भाग में बाँट दिया।
दूध , फलों का रस , मांस और पेय वस्तुओं को दोनों विभाग की बॉटल में रखी। उसके बाद एक विभाग की बॉटल को बगीचे के मुक्त वायुमंडल में रखी। और दूसरे विभाग की बॉटल को जहाँ हर रोज यज्ञ होता था वहा उस यज्ञ शाला के वातावरण में रखी।
थोड़े दिनों के बाद उसका परिक्षण किया गया और परिणाम यह हुआ की बगीचे में रखी बॉटलमें रखी चीजें बिगड़ गयी थी और दूसरी ओर यज्ञशाला में रखी बॉटल ज्यो की त्यों थी। बगीचे की शुद्ध ऑक्सीजन वाली हवा से ज्यादा यज्ञशाला के धुंवे में रखी चीजें ताज़ा थी।
दोस्तों अब आगे नेक्स्ट आर्टिकल में जानेंगे की वैज्ञानिक परीक्षणों में और क्या क्या जानने को मिला। और यह यज्ञ एवं हवन के अनुष्ठान से हमारे जीवन एवं शरीर को कैसे असर करता है वह हम विस्तार से जानेंगे।
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