Sunday 3 September 2017

Doing Hom-Havan Yajna In India ... Why???? What is the Science Behind Doing Yagnas And Havana ??

नमस्कार मित्रों। 
SOURCE : GOOGLE 

दोस्तों आप को बहोत बहोत धन्यवाद। आप इस तरह हमारे पोस्ट को पढ़ते रहिये और हमे नए आर्टिकल्स लिखने की  प्रेरणा देते रहिये। दोस्तों आज हम बात करेंगे इस भारत के महान हिन्दू सनातन धर्म की उस परंपरा के बारे में जिसने हमे एक अध्यात्म के राह से जोड़ा।  हमारे धार्मिक अनुष्ठानों  में भी इसका महत्व का स्थान है। 

दोस्तों वैदिक परंपरा से ही हमारे हिन्दू सनातन धर्म के रीती रिवाजों  में यज्ञ एवं हवन का महत्व रहा है। आज का विज्ञान भी इस परंपरा को मानने से इन्कार नहीं कर सकता। आज हम यज्ञ और हवन और होलिका दहन जैसे हमारे त्यौहार और परंपरा से सदियों से हमे हो रहे लाभ के बारे में जानेंगे। 
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शतं  जिव शरदो वर्धमानः शतं। 
हेमंतागच्छतमु वसंतान।।
शतं त इंद्रो अग्निः सविता। 
बृहस्पतिः  शतायुषा हविशाहार्षमन।।

हे रोगी।  तू सो शरद ऋतु , सो हेमंत ऋतु और सो वसंत ऋतु तक दिन प्रतिदिन प्रगति की रह पर चले।  जिवित रहे।  इन्द्र , अग्नि , सूर्य और बृहस्पति सर्व देवगण तुम्हारे शरीर को सो वर्ष तक जीवित रखने के लिए यज्ञ की आहुति के शक्ति से मृत्यु के मुख से खिंच लाये। ( अथर्व वेद : २० , ९६ , ९ )

अथर्व वेद की यह ऋचा पर सूक्ति द्वारा ऋषिने रोगी को यज्ञ के आधार से स्वस्थ और शतायु होनेका निर्देश किया है। यह श्लोक में यज्ञ के  महिमा का ज्ञान तो है किन्तु इसके साथ पूर्ण आयुष्य के साथ परिपूर्ण आयुष्य कैसे प्राप्त किया जाये उसका चिकित्सा शास्त्रीय रहस्य भी उद्घटित किया है। 

थोड़े वर्ष पूर्व बुद्धिवादीओ और वैज्ञानिको ने दावा किया था की यह यज्ञ , हवन  जैसे हिन्दू धर्म के रिवाज और अनुष्ठान  यह सब निरर्थक है।  उसमे आहुति देने वाली वस्तुओं का दुर्व्यय है। 

यज्ञ की आहुति में   उपयोग में लिए जाने वाली वस्तुओ और धान जैसे की तिल , जव , घी  इन  सब चीजों को डालकर किये जाने वाले धुँवा वह पैसे की बर्बादी है।  यह सब निरर्थक है। 

किन्तु दोस्तों में आपको बताना चाहूंगा की वैज्ञानिको एवं तार्किकविदों का नजरिया अब बदल गया है।  उनके जो उलटी  गंगा में बहने वाले सुर है वह सही दिशा पकड़ लिए है।  वह लोग जो यज्ञ को निरर्थक और बेहूदा मानते थे आज वही इस परंपरा को स्वीकारने पर मजबूर है। बेबस है। 

अब दोस्तों यही वैज्ञानिक यह कह रहे है की यज्ञ और हवन एक सर्वश्रेष्ठ उपचार पद्धति है , यज्ञ के  वातावरण का शरीर पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है। इससे छोटे बड़े सभी असाध्य रोग धीरे धीरे नष्ट हो जाते है। और बाद में यह जड़ से नाबूद हो जाते है। 

यज्ञ  के वातावरण से रोग कितने अंश तक रुक जाता है या दूर होता है यह जानने के लिए वैज्ञानिकों  ने एक प्रयोग किया। उन्होंने कांच की १२ बॉटल ली और उसे अत्यंत स्वच्छ और शुद्ध कर उसे दो भाग में बाँट  दिया। 

दूध , फलों का रस , मांस और पेय वस्तुओं को दोनों विभाग की बॉटल में रखी। उसके बाद एक विभाग की बॉटल को बगीचे के मुक्त वायुमंडल में रखी। और दूसरे विभाग की बॉटल को जहाँ हर रोज यज्ञ होता था वहा उस यज्ञ शाला के वातावरण में रखी। 

थोड़े दिनों के बाद उसका परिक्षण किया गया और परिणाम यह हुआ की बगीचे में रखी बॉटलमें रखी चीजें बिगड़ गयी थी और दूसरी ओर यज्ञशाला में रखी बॉटल ज्यो की त्यों थी। बगीचे की शुद्ध ऑक्सीजन वाली हवा से ज्यादा यज्ञशाला के  धुंवे में रखी चीजें ताज़ा थी। 

दोस्तों अब आगे नेक्स्ट आर्टिकल में जानेंगे की वैज्ञानिक परीक्षणों में और क्या क्या जानने को मिला। और यह यज्ञ एवं हवन के अनुष्ठान से हमारे जीवन एवं शरीर को कैसे असर करता है वह हम विस्तार से जानेंगे। 

Monday 21 August 2017

Why Onion And Garlic Are Strictly Prohibited to eat In Hinduism ???

नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।

आज बड़े दिनों बाद आपसे मुलाकात हो रही है। आपसे माफ़ी चाहता हु की इन दीनों में ज्यादा आर्टिकल्स पोस्ट नहीं कर पा रहा। कृपया क्षमा करें।

दोस्तों आज हम बात करने वाले है इस विषय पर , आखिर क्यों हिन्दु सनातन धर्म में अभक्ष्य चीजों का भक्षण ( खाने ) को मना किया गया है। क्यों उसे ग्रहण करने की अनुमति नहीं दी गई है।

ऐसी बहोत सी चीजें है जो अभक्ष्य है फिर भी लोग बड़े आराम से उसका सेवन करते है। हमारे सनातन धर्म में मदिरा , मांस , और सब्जिओं में प्याज़ और लहसुन का सेवन करने के लिए प्रतिबन्ध है। इसके कई कारण हमारे धर्म शास्त्रों में लिखे गए है। हमे समझाया गया है की उसे क्यों ग्रहण नहीं कर सकते।

आज सब लोग जानते हुए भी यह वर्ज्य चीजों का सेवन कर रहे है और इस  नासमझ के वजह से लोग कई बीमारियों से जुज रहे है।

दोस्तों हम जो चीज़ चाहे वह फल , फ़ूल और सब्ज़ी हो उन सब का एक स्वाभाव होता है , प्रकृति होती है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते है वैसा ही हमारे तन ( शरीर ) पर उसका तुरंत असर होता है।

किसी पुराणी कहावत में कहा है " जैसा अन्न वैसा मन "

हम जिस प्रकार का अन्न ग्रहण करते उसके जैसा ही प्रभाव हमारे तन और मन पर पड़ता है। जैसे की सात्विक भोजन करने से सत्व गुण  हमारे मन को  प्रभावित करता है और हमारा मन के विचार भी सात्विक होते है।  हमारे कर्म भी सात्विक और पवित्र रहते है।

सात्विक भोजन जैसे की दूध , घी , आटा , चावल और हरी सब्जियों का सेवन सात्विक है , जो सत्व गुण का वहन हमारे अंदर प्रकट करते है।

रजोगुणी भोजन जैसे की बहोत ज्यादा तीख़े , मसाला युक्त भोजन , और मिठाइयाँ हमारे शरीर में रजोगुण का प्रवाह बढाती ही।

तमोगुणी भोजन जैसे की प्याज़ , लहसुन , मांस , मदिरा आदि का सेवन तमस गुण का प्रवाह बढाती है।  इसके प्रभाव से मनुष्य का तन और मन कई सारे दोषों और विकारों से युक्त रहता है। इसके साथ साथ वह कई मानसिक एवं शारीरिक रोगों का शिकार बनता है।

प्याज़ , लहसुन और मांस , मदिरा राक्षशी प्रकृति के पदार्थ है इसे भोजन में कभी भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।  इसके सेवन से मनुष्य का जीवन काम , क्रोध , ईर्ष्या जैसे विकारों से भर जाता है। साथ साथ दुःख का भागी होता है।
DON'T EAT SOURCE : GOOGLE SEARCH


दोस्तों इन दिनों में यह अभोज्य चीजों का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए :



श्राद्ध पक्ष में लहसुन प्याज़ और मांस , मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इन दिनों पितरों का श्राद्ध , तर्पण किया जाता है। तर्पण से पितृ तृप्त होते है। जिससे हमारे घर में और कुटुंब में खुशियाँ और सुख बना रहता है। 



लहसुन और प्याज़ के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार उत्पन्न होते है। प्याज़ चबाने से और उसकी  गंध से हमारे  वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ़ती है। परिणाम स्वरुप वासना बढ़ती है। 


हमारे हिन्दू सनातन धर्म के वेद शास्त्रों में बताया गया है की प्याज , लहसुन जैसी सब्जियां और मांस का ग्रहण हमारे मन में उत्तेजना , जनून और अज्ञानता को बढ़ावा देकर अधाय्तम के मार्ग में भी बाधा उत्पन्न करती है। 


हुमारे यहाँ जैन , बौद्ध और स्वामिनाराय संप्रदाय में भी प्याज़ और लहसुन का ग्रहण नहीं किया जाता।  चीन में रहने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी इन सब्जियों को भोजन में ग्रहण करना पसंद नहीं करते। 



जापान के प्राचीन भोजन के व्यंजनों में प्याज और  लहसुन का उपयोग नहीं किया जाता था। 



दोस्तों इस्लाम में भी प्याज और लहसुन का ग्रहण करके मस्जिद में आने पर रोक लगाया गया है। कुरान की इस आयत ( बुखारी :८५४, ८५५  ) में बताया गया है की प्याज और लहसुन का सेवन कर मस्जिद में न आये। 



जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि  कहते है की नबी सभी सल्ललाहु अलैहि वसल्ल्म ने फ़रमाया : जो आदमी इस पौधे यानि लहसुन या प्याज़ खाये वह हमारी मस्जिद में न आये। हमसे  दूर रहे। एक बार नबी अलैहि वसल्ल्म के पास सब्जियों से भरी हांड़ी लाई। उसमे कुछ गंध को पाया और पूछा वह क्या है? तब बताया और उस समय लहसुन और प्याज के बारे में यह बताया था। 



दोस्तों धन्यवाद। जय श्री कृष्ण।


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Wednesday 16 August 2017

How to Defeat Anger ??????????? The Answer is Here.......!!!!!!! - 1

नमस्कार दोस्तों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
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दोस्तों बड़े दिनों बाद फिर आपसे मुलाकात हुई है। आप सभी को जन्माष्टमी ( बर्थ ऑफ़ लार्ड कृष्णा ) की सुभकामनाए। आप सभी प्रगति की और बढे यही भगवान कृष्णा के चरणों में प्राथना। आप सभी प्यारे पाठकों को धन्यवाद। अभिनन्दन। 

दोस्तों हमारे जीवन में हमारे विकार और दोषों का भी एक अहम् स्थान है। हमारे जीवन में सदगुणों के साथ साथ दुर्गुणों यानि मानस के विकार जैसे की क्रोध , मोह , माया , ईर्ष्या ,काम आदि ने भी हमारे पुरे जीवन पर प्रभाव डाला है। हमे प्रभावित किया है।  

यह सारे विकार न केवल मनुष्य के जीवन के शत्रु है बल्कि यह सभी आदमी को विष के भांति खोख्ला कर देतें है। क्रोध उन में से सबसे बड़ा स्वाभाव दोष है। यह मानव जीवन में काफी उथल - पथल मचा देता है। क्रोधित आदमी कही भी शांति को नहीं पा सकता। वह हमेंशा दुःख और ग्लानि से पीड़ित रहता है। 

दोस्तों आज हम क्रोध से लड़ने की कूंची को लेकर आये है। क्रोध को कैसे रोका जाये इस विषय पर हम गहन चर्चा करेंगे।  

हमारे जीवन में कई ऐसे प्रश्न है , कई बार ऐसा होता है की कोई अगर कुछ गलती करदे , या फिर हमारी गलती होते हुए भी हम उसका अस्वीकार करते हुए किसी और पर यह दोष प्रस्थापित करते है। अपनी गलती पर भी हम किसी औऱ मनुष्य जैसे की हमारे सहाध्यायी हो , अपने माता-पिता हो , भाई -बहन , दोस्त हो उसपर हम क्रोधित हो उठते है। 
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ऐसी परिस्थिति में हमे कैसे क्रोध करने से बचना चाहिए : 

दोस्तों में आपको बताना चाहूंगा अगर आप सही है , आप ने कोई गलती नहीं की तब यह क्रोध आएगा ही नहीं , जब हम गलत होते है फिर भी अपने गर्व और स्वमान को ठेश लगने से हम अपनी गलतियों का अस्वीकार कर क्रोधित हो जाते है। 

फिर भी आपका मन और आत्मा इसे समझने से इंकार कर रही है और आपको लगता है की आप सही है तो 
में आप से बताना चाहूंगा की यह तो वैसे हुआ जैसे आप ही वकील और आप ही जज। अपनी ग़लती का अहसास और स्वीकार से ही क्रोध से बचा जा सकता है। 

क्रोध से दूर रहने के लिए हमेसा शांत मन से विचार करना चाहिए , और अगर किसी को आपसे कार्य करवाना है तो ऐसे ही आदमी को काम सौंपे जो इसमें निपुण हो। ऐसा होने पर कार्य भी अच्छे से पूर्ण होगा। और क्रोधित होने की जरूरत ही नहीं रहेगी। 

दूसरी बात यह की क्रोध को मूल से निकालने के लिए हमेंशा भगवान का नाम स्मरण करना उचित है। एक भगवन ही है जो हमारे मन के विकारों , हमारे दोषों को दूर कर शांति और सुख प्रदान करते है। 

क्रोध मनुष्य का बड़ा ही शत्रु है और यह बीमारी दुनिया के हर देश और मनुष्यजाति में है। यह मनुष्य को कमजोर बनाती है।  यदि आप को बलवान होना है तो क्रोध करने से बचे। 

क्रोध ही सब बिमारिओं का मूल है , क्रोध से हाई ब्लूडप्रेससुर , अश्थामा , हृदय रोग आदि होने की संभावना बढ़ जाती है। 

अगर कोई आपका अपमान करे या अन्याय करे तो इसे सहन करना सिख लीजिये। इसमें हमारी भलाई है। इसलिए किसी भी कारण में हमे क्रोध से दूर रहना चाहिए। अगर अपमान भी सहन कर लिया तो क्रोध का नामोनिशान हमारी जीवन में कही भी नहीं रहेगा।सहन करने की शक्ति से   हमारे आत्मबल  में भी अविश्वसनीय वृद्धि होगी। 

हम सदा ही उन्नति और प्रगति के पथ की ओर बढेंगे। तो दोस्तों आज से हम निर्णय करेंगे की क्रोध से दूर ही रहेंगे। नेक्स्ट आर्टिकल में हम और उपायों के बारे में जानेंगे। 

धन्यावान। 
जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। 


Doing Hom-Havan Yajna In India ... Why???? What is the Science Behind Doing Yagnas And Havana ??

नमस्कार मित्रों।  SOURCE : GOOGLE  दोस्तों आप को बहोत बहोत धन्यवाद। आप इस तरह हमारे पोस्ट को पढ़ते रहिये और हमे नए आर्टिकल्स लिखने ...