नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
दोस्तों आप से यह बात शेयर करके मुझे बड़ा ही गर्व होता है। आनंद की अनुभूति होती है जब में आपसे एक भारतीय और हिन्दू होने की कई ऐसी बातों को आपके समक्ष लाकर प्रस्तुत करता हु। हमारी हर एक चीज आज विज्ञान को भी मात दे रही है।
दोस्तों आज आपको में एक ऐसी धातु के बारे में बताने जा रहा हु। जिसकी जड़े हमारी भारतीय परंपरा से हमारी हिन्दू संस्कृति से अनादि समय से जुडी है। और वह है ताम्बा (कॉपर ) , सदियों से हम ताम्बा का उपयोग करते आये है। हमारी हिन्दू संस्कृति की पहचान बनकर उभरी है यह ताम्बा धातु।
पौराणिक समय से ही हमारे देश में ताम्बा का उपयोग बड़े तौर पर हो रहा है। पौराणिक समय से ही ताम्बा का उपयोग घरेलु बरतन , औजार और खेती के औजार बनाने में भी यह ताम्बा का उपयोग किया जाता था। ताम्बा (कॉपर) न केवल घरेलु उपयोग के लिए बल्कि वह हमारे धार्मिक परंपरा से भी अकबंध जुड़ा हुआ है। ताम्बा का उपयोग हमारे धार्मिक विधि -विधानों , यज्ञ , पूजा इन सब में किया गया है। वास्तुकला में भी कॉपर का बड़ा योगदान रहा है।
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ताम्र (कॉपर ) प्राचीन आयुर्वेद में भी उपयोग में लिया गया है। ताम्र(कॉपर ) का उपयोग उसकी भष्म बनाकर रोगों के इलाज के लिए उससे औषधि का निर्माण किया जाता था।
ताम्बे (कॉपर ) का उपयोग हमारे भारतवर्ष में सिंधु सभ्यता से भी पुराना है। और सिद्धू घाटी की सभ्यताके हड़पन संस्कृति कॉपर के उपयोग का उत्तम उदहारण है। दोस्तों यह हड्डपा संस्कृति आज से ५००० साल पुरानी है। हड़प्पा संस्कृति में ताम्र के औजारों , बरतन , सिक्के और मूर्तियां भी मिली है। इसके साथ साथ हमे यह भी पता लगता है की भारत में धातु विज्ञान का भी अविष्कार हुआ था। प्राचीन समय में ताम्बे का उपयोग चलनी सिक्कों के रूप में भी किया गया। ताम्बे के सिक्कों को मुद्रा के रूप में अर्थोपार्जन और वस्तु की खरीदी और बिक्री में भी किया गया।
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भारतीय संस्कृति के ऊपर आक्रमण कर जब मुग़ल , मोगल और अरबी शासन लागु हुए तब उन्होंने भी सुलतान राजाओं ने अपने नाम से तांबे के मुद्राओं का प्रारब्ध किया था। इसे कर्रंसी के रूप में चलाया गया।
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प्राचीन भारतीय राजव्यवस्था में जरुरी दस्तावेजों को सँभालने के लिए और राजाओं के घोसणापत्रों को भी ताम्रपत्र का उपयोग किया था। ताम्रपत्र को मंदिर या किसी ऊँचे स्तम्भ पर अंकित किया जाता था। और कई जगहों पर उसे जमीन में गाड़ दिया जाता था। जिसे दस्तावेजों की गोपनीयता बनी रहे।
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आज नदिओं में सिक्के डालने की परंपरा है वह भी ताम्र (कॉपर ) के सिक्के से जुडी हुई है। ताम्र पानी को को शुद्ध करने का कार्य करता है। इसलिए प्राचीन समय में लोग पूजा के दर्मियान सिक्कें को को नदी में फेंकते थे।
दोस्तों नेक्स्ट आर्टिकल में हम ताम्र (कॉपर ) के उपयोग से होने वाले लाभ के बारे में जानेंगे।
धन्यवाद।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
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