नमस्कार मित्रो।
जय श्री कृष्ण। हर हर महादेव।
महाभारत , अठारह पुराणों, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय वैदिक साहित्य दर्शन के रचयिता , ऋषि पराशर के पुत्र भगवान वेद व्यास जी जन्म अषाढ़ महीने की पूर्णिमा को हुआ। द्वीप में जन्म लेने और श्याम वर्ण के होने के कारण उन्हें कृष्ण द्वैपायन व्यास भी कहा गया।
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वसिष्ठाय नमो नमः।।
अर्थात वेद व्यास साक्षात विष्णु जी का स्वरुप है। तथा भगवान विष्णु ही वेद व्यास है , उन ब्रह्म ऋषि वसिष्ठ के कुल में उत्पन्न पराशर पुत्र वेद व्यास जी को नमन है।
प्रारम्भ में एक ही वेद था , व्यास जी द्वारा वेद का वेद का विभाग कर उनका व्यास किया गया। इसी से उनका नामकरण वेद व्यास हुआ। वेद व्यास जी ने वेदों के ज्ञान को लोक व्यव्हार में समझाने के लिए पुराणों की रचना की।
व्यास जी की गरना भगवान विष्णु के २४ अवतारों में की जाती है। भगवान वेद व्यास जी ने वेदो के सार रूप में महाभारत जैसे महान , अद्वितीय ग्रन्थ की रचना की। जिसे पंचम वेद भी कहा जाता है। श्रीमद भागवत जैसे भक्ति प्रधान ग्रन्थ की रचना कर ज्ञान और वैराग्य को नवजीवन प्रदान किया। समस्त मानवजाति और लोकों का कल्याण करने वाली श्री हरी की वाणी श्रीमद भगवद गीता को महाभारतं जैसे महान ग्रन्थ के माध्यम से सुलभ कराया।
भगवान् वेद व्यास समस्त लोक , भूत , भविष्य वर्तमान के रहस्य, कर्म उपासना -ज्ञान रूप वेद , अभ्यास युक्त योग , धर्म अर्थ काम तथा समस्त शास्त्र को पूर्ण रूप से जानते है। महाभारत को वेद व्यास जी ने गणेश जी द्वारा लिखवाया। जिसकी कथा हमने पहले जानी थी।
महाभारत में वैदिक , लौकिक सभी विषय तथा श्रुतियों का तात्पर्य है। इसमें वेदांग सहित उपनिषद , वेदों का क्रिया विस्तार , इतिहास , पुराण , भूत , भविष्य , वर्तमान के वृतांत आश्रम और वर्णो का धर्म , पुराणों का सार, युगो का वर्णन, समस्त वेद का ज्ञान , अध्यात्म , न्याय , चिकित्सा और लोक व्यवहार में उचित ज्ञान प्राप्त होता है। जो श्रद्धा पूर्वक महाभारत का अध्ययन करता है , उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते है। इसमें भगवान श्री कृष्ण का स्थान स्थान पर कीर्तन है।
अठारह पुराणों , समस्त धर्म शास्त्र एवं व्याकरण , छंद , निरुक्त , शास्त्र ,शिक्षा ,और कल्प इन छः अंगों सहित चार वेदों तथा वेदांग से जो ज्ञान प्राप्त होता है। वह महाभारत के अध्यन मात्र से प्राप्त होता है। महाभारत रचने का उदेश्य ही यही था की जीव प्राणी मात्र वेदों के ज्ञान से वंचित ना रह जाए। चाहे वह किसी भी जाति , वर्ण अथवा संप्रदाय से हो।
वेद व्यास जी ने खुद घोषणा की समस्त ग्रंथो के समतुल्य है महाभारत। जो महाभारत के इतिहास को श्रद्धा पूर्वक सुनता है उसे कीर्ति और विद्या की प्राप्ति होती है।
महर्षि वेद व्यास जी ने सर्व प्रथम साठ लाख श्लोको की संहिता की रचना की। उनमें से ३० लाख देवलोक में प्रचलित हुई। १५ लाख श्लोको का पितृ लोक में प्रचार किया गया। १४ लाख श्लोको को पक्ष लोक में प्रसारा गया। एक लाख श्लोको को मनुष्य लोक में प्रचलित किया गया।
भगवान वेद व्यास जी अष्ट चिरजीविओं में शामिल है। आदि शंकराचार्य को वेद व्यास जी के दर्शन हुए। वेद पुराण के वक्ता जिस आसन पर विराजमान होते है उसे व्यास गद्दी कहा जाता है। और वेद व्यास जी का जन्म दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
गुरु ही हमारे भीतर रहे अज्ञान के अंधकार को नष्ट करने में समर्थ है। भगवान कृष्ण गीता में कहते है , " मुनिनामप्यहं व्यास"। अर्थात मुनियों में मै वेद व्यास हूं।
धन्यवाद।
जय श्री कृष्ण। जय हिन्द।
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