Thursday, 3 August 2017

SHIV SVARODAY GIVES HAPPY PROSPEROUS HEALTHY LIFE...

नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्ण। हर हर महादेव।

दोस्तों हम सभी जीवन में प्रगति और सफलता की महेच्छा रखते है। हम यही अपेक्षा रखते है की हमारा जीवन सुखमय हो , निरोगी हो। हम पूरी जिन्दंगी का हरेक क्षण उसे पाने में लगा देते है। फिर भी हम कई बार इसमें असफल रहे हे।  हम ना चाहते हुए भी कंगाल है , यह शरीर रोगो से पीड़ित हो उठता है। दोस्तों तो चलिए आज हम उस मार्ग के बारे में बात करेंगे जो हमे जीवन में सफलता प्रदान करने में मददगार हो सकता है।

आज आपके जीवन को एक नए धागे से जोड़ने की दिशामें यह एक विनम्र प्रयास है। आप  भगवान शिव के बारे में तो जानते   है। उन्हें पंचोपचार द्वारा अर्चन पूजन भी करते है। उनकी अलग अलग तरीकोंसे आस्था और श्रद्धा द्वारा रिझाने का प्रयत्न हम सभी करते है।

तो चलिए  आज के इस सुनहरे अवसर पर हम शिव स्वरोदय को जानने का प्रयास करते है। विशेष रूप से शिव आराधना करने वाले सभी लोगों को यह क्रिया जानने के आवश्यकता है। इस विद्या को जानना जरुरी है। तो अब जानते है स्वरोदय क्या है।

शिव स्वरोदय 

अपने स्वर को जानने वाला पहचानने वाला व्यक्ति अधिक समय तक अस्वस्थ , रोगी नहीं रह सकता। उसे पराजय से साक्षात्कार नहीं होता। अर्थात वह अपराजित रहता है। उसे धन सन्मान एवं पद के लिए विचार करने की आवश्यकता नहीं रहती। ऐसा व्यक्ति लोगों की सहायता करने  सक्षम होता है। और अपनी इच्छाओं को प्राप्त करता है।

पर अफ़सोस की बात यह है की यह विद्या अब मृतप्रायः यानि लुप्त हो रही है।  हमारे पूर्वज इसका सतत प्रयोग किया करते थे। अत्यंत विस्तृत  होने के कारण इसे विस्तार से बताना संभव नहीं है लेकिन इससे सम्बंधित मन्त्र सामग्री बाजार में उपलब्ध है , इस क्रिया को करने के लिए योग्य गुरु की आवश्यकता है।

क्या है  शिव स्वरोदय ???????

शिव स्वरोदय विज्ञानं पर अन्यन्त प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें कुल ३९५ श्लोक है। यह ग्रन्थ शिव पार्वती संवाद के रूप में लिखा गया है। इस ग्रन्थ के रचयिता भगवान् शिव है।

शिव स्वरोदय साधना जानने के बाद इन बातों का ध्यान अवश्य रखें। 

१ सुबह उठकर बिस्तर पर ही बैठ आँख बंद किये हुए पता करे की  नाक से अपनी सांस चल रही है। यदि बायीं नाक से चल रही हो , तो दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर मुँह कर ले। यदि दाहिनी और से सांस चल रही हो तो उत्तरा या पूर्व की ओर मुँह करके बैठ जाए। फिर जिस नाक से सांस चल रही हो उस हाथ की हथेली से उस ओर का चहेरा स्पर्श करे।

२ उक्त कार्य को करते समय दाहिने स्वर का प्रवाह हो ,तो सूर्य का ध्यान करते हुए अनुभव करे की सूर्य की किरणें आकर आपके दिल में प्रवेश कर आपके शरीर को शक्ति प्रदान कर रही है। यदि बाए स्वर का प्रवाह हो तो पूर्णिमा  चन्द्रमा का ध्यान करे और अनुभव करे की चंद्रमा की किरणें आपके दिल में प्रवेश कर रही हैं। और अमृत की शीतलता प्रदान कर रही हैं।

३ इसके बाद दोनों हथेलियों को आवहनी मुद्रा में एक साथ मिलाकर आँखे खोले और जिस नाक से स्वर चल रहा हो ,उस हाथ की हथेली की तर्जिनी उंगली के मूल  में ध्यान केंद्रित करे। फिर हाथ में निवास करने वाले देवी देवताओं का दर्शन करने का प्रयास करे और निचे लिखे गए श्लोक को पढ़ते रहे।

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। 
करमूले तू गोविन्द प्रभाते कर दर्शनम।। 

४ इस श्लोक का उच्चारण करते हुए माँ पृथ्वी का स्मरण करे और साथ में तंत्र और योग में पृथ्वी के बताये गए स्वरुप का ध्यान करे -

समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।

दोस्तों इसके साथ साथ हमे अपने दिनचर्या में भी तबदीली लानी है। उसे  बदलना है। उसमे सुधार लाना है।  उसकी बाते और शिव सर्वोदय ग्रथ के श्लोको को मेरे नेक्स्ट आर्टिकल में देखेंगे।

धन्यवाद। जय  श्री कृष्णा। जय हिन्द।


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