भारतीय परम्परा में , भारतीय संस्कृति में भगवान के साथ साथ गुरु भी इतना ही महत्त्व है। जितने गुण भगवान के गाये जाते है। ठीक उसी तरह गुरू भी पूजनीय है। भारतीय परंपरा में हमेसा से एक सच्चे गुरु को भगवान तुल्य कहा गया है। वह संस्कृत के इस श्लोक से प्रतीत होता है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु:साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः।।
संत कबीर जी ने भी कहा है " गुरु गोविन्द दोनों खड़े किसको लागु पाय। बलिहारी गुरु देव की गोविन्द दियो मिलाय।
आज हम ऐसे ही महान गुरु के वचनों के बारे में जानेंगे। वह है महर्षि वेद व्यास। जिन्होंने सर्व प्रथम हमें वेदों की भेंट दी। जिन्होंने हमे वेदों का ज्ञान दिया। महर्षि वेदव्यास के वचन हमारे लिए प्रेणना दायी और जीवन उपयोगी है। चलिए जानते है उन आदर्श विचारो के बारे में।
१. मनोवांछित फल की प्राप्ति हो या ना हो , विद्वान ज्ञानी पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता।
२ किसी के प्रति मन में क्रोध रखने की अपेक्षा उसे तत्काल उसे प्रकट करदेना अच्छा है। जैसे पल में जल जाना देर तक सुलगने से बहेतर है।
३ जो सज्जनता का त्याग करता है। उसकी आयु सम्पति यश धर्म पुण्य श्रेय सभी नष्ट हो जाते है।
४ अमृत और मृत्यु दोनों इस देह में ही स्थित है। मानव सत्य से अमृत और मोह से मृत्यु पाता है। ]
५ जो वेद और ग्रंथो को याद करने में तत्पर है लेकिन उसका यथार्थ अर्थ को नहीं समझता उसका ग्रन्थ को पढ़ना और याद रखना व्यर्थ है।
६ दूसरे के लिए भी वही चाहो जो तुम अपने लिए चाहते हो। यानि सबका भला ही सोचो।
७ जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं क्षमा करता है। वह अपनी और क्रोध करनेवाले की महा संकट से रक्षा करता है।
८ जहां कृष्णा है वहां धर्म है। और जहां धर्म है वहां जय है।
९ जिनके मनमे संशय भरा हुआ है। उनके लिए न यह लोक , न परलोक नाही सुख है।
१० अति लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखने वाले का काम यह दोनों ही धर्म को नुकसान पहुंचाते है।
११ क्षमा धर्म है , यज्ञ है , वेद है , शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है , वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है।
दोस्तों और भी वचन है , नियम है जो भगवान वेद व्यास जी ने हमे दिए है। उसे हम नेक्स्ट आर्टिकल में जानेंगे।धन्यवाद। जय श्री कृष्णा।
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