नमस्कार मित्रों ,
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव
दोस्तों हम कई दिनों से पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत के बारे में महाचर्चा कर रहे है। यह विषय इतना विशाल है की यह चर्चा का अंत सुनिश्चित करना बड़ा ही कठिन है। मेरे भाईओ और बहेनो एवं मित्रों आज हम पुनर्जन्म के सन्दर्भ में इस्लाम और ख्रिस्ती सम्प्रदायों में उठे सवालों के बारे में बात करेंगे।
हमने देखा और जैसे की आपको बताया था। आज हम बाइबल एवं कुरान के बारे में भी बात करेंगे। बाइबल में एक बड़ा ही रसप्रद प्रसंग आता है।एक ख्रिस्ती लेखिका अपने पुस्तक "Reincarnation is the missing link in the Christianity" में दर्शाया है। जो कुछ इस तरह है। " इसमें दो जुड़वाँ बच्चों की कहानी है। वह दोनों के नाम क्रमशः जैकोब और इसो है। इसमें दोनों बच्चों के जन्म के बाद भगवान कहते है " मै जैकोब से प्रेम करता हूँ और इसो से नफ़रत करता हूँ , तिरस्कार करता हूँ। यह दोनों बच्चे बड़े होकर जैकोब सुखी होता है और इसो दुःखी होता है।
तो एलिज़ाबेथ ने प्रश्न किया है की "यह दोनों एक ही धर्म , कुटुम्ब ,माँ -बाप और संस्कारो के साथ बड़े हुए है। तो फिर एक बालक सुखी और दूसरा दुखी क्यों ?
ख्रिस्ती पादरीओने कुछ इस तरह उत्तर किया जो सो प्रतिशत गलत है। सुनिए यह कैसी विडम्बना है।
"पादरी ने कहा की जब उनकी माताने गर्भ धारण किया था उनदिनों वह एक मंदिर से गुज़री और वहाँ मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी। तबही माताके गर्भ में रहे बालक इसो ने माताके उदर में किक मारी। और इसतरह इसो ने मंदिर के प्रति श्रद्धा व्यक्त की। और उसने यह पाप किया। उसके कारण वह दुखी हुआ। "
और "जब उसकी माँ एक चर्च के सामने से गुज़री तभी बालक जैकोब ने किक मारी। बालक ने चर्च के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। और उसने यह पुण्य किया। जिसकी वजह से वह सुखी हुआ। "
यह प्रसंग को लिखने के और उनके जवाब को सुनने के बाद लेखिका एलिज़ाबेथ अपने पाठको को प्रश्ना करती है की पादरी का यह जवाब कितने लोगों को सही लगा? कितने लोगों को इसमें तथ्य हो ऐसा प्रतीत हुआ। यह दुनियामें ऐसी बहोत विषमता है। और यह सब विषमताओं का मूलतः कारण आत्मा में छिपा है। माताके उदरमें रहे बालक और बालिका पाप और पुण्य के साथ नहीं जन्म लेते।
१००० साल पहले orizin नामके तत्वचिंतक हुआ था। जिसने तत्वज्ञान के २००० से ज्यादा पुस्तकों को लिखा। और उन में पुनर्जन्मवाद का निरूपण किया था। वह अपने जीवन में भी कहते रहे की पुनर्जन्म का स्वीकार ही उत्तम उपाय है।
Hellen tabruno blowseky नामक फिलॉसोफी सोसाइटी के प्रमुख ने कहा की " मात्र एक ही तत्त्व पुनर्जन्म की घटना से पसार होता है। और पूर्व किये गए पाप पुण्य कर्म अनुसार आने वाले जन्ममें भुगतना है। पुनर्जन्म सिद्धांत शुभ अशुभ प्रश्नो का स्पष्टीकरण करता है। और मानवी के जीवन में होनेवाले भयंकर अत्याचारों का खुलाशा देता है।
और एक बात है जो मेरे दिलों-दिमाग में है। जैसे की कुरान और बाइबल में लिखा है। हर इंसान को सिर्फ एक ही जन्म मिला है क्योंकि यह दोनों धर्म पुनर्जन्म की इजाज़त नहीं देते। यानि की अगर हमने कोई गलती की या छोटा या बड़ा पाप किया। मृत्यु के बाद हमे जब तक क़यामत नहीं होगी तब तक कब्र में सोते रहना होगा। दोस्तों यह में नहीं कह रहा। यह कुरान और बाइबल में लिखा है। इसका मतलब यह हुआ की भगवान ने हमारी गलती को सुधारने का मौका ही नहीं दिया। अगर ऐसा है तोह ऐसा मालुम पड़ता है की भगवान क्या इतने निर्दयी है की हमे सुधरने का एक मौका नहीं देंगे ?
अब यह बात को एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करेंगे। कुरान और बाइबल के अनुसार हम अगर समझे की अगर एक बालक अभी अभी जन्मा। वह बस दो मिनट पहले ही इस पृथ्वी पर जन्मा। और दुर्भाग्यवश उसकी सिर्फ ३० मिनट में मृत्यु हो जाये तो उसे कहाँ जगह मिलेगी ??????
कुरान एवं बाइबल के अनुसार पापी को जहन्नम , और पुण्य करनेवाले को जन्नत नसीब होगी। किन्तु वह बच्चे का क्या करे ???? नाही उसने पुण्य किया है और पाप भी नहीं किया है। दोस्तों यह सवाल एलिजाबेथ लेखिका ने अपने पुस्तक में किया है।
और भी सवाल एलिज़ाबेथ ने उठाया है। जब तक कयामत ना हो , कब्र में पड़े रहने का????
यह तो ऐसा हुआ की जैसे हमने कोई गुनाह किया और अदालत हमे उसकी उसका न्याय १००० साल बाद दे। क्या यह मुमकिन है ??????? आप ही सोचिये। क्या यह संभव है ???
यह सब बातों से हमे ज्ञात होता ही पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत का स्वीकार ही उत्तम उपाय है।
दोस्तों इन सब बातों पर आप भी विचार करे। मनन करे। समझने का प्रयास करे।
धन्यवाद।
जय श्री कृष्णा।
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