नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
मेरे सभी पाठको को शुभ सांज। दोस्तों हम हनुमान जी के पवित्र जीवनगाथा के बारे में बात कर रहे है। इसके दूसरे भाग में हम वही बातो को दोहरायेंगे।
जब भगवान राम ने दी हनुमान जी को दिया मृत्यु दंड।
एक बार भगवान राम के गुरु विश्वामित्र ने किसी कारण वश हनुमान जी से क्रोधित हो उठे। और उन्होंने प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम राम को हनुमान जी को मृत्युदंड देने का आदेश दिया। भगवान राम ने उनके गुरुकी आज्ञा का पालन करते हुए महाबली हनुमान जी को मृत्यु दंड दिया।
वाल्मीकि से पहले ही हनुमान जी के द्वारा रामायण की रचना।
लंका कांड शुरुआत होते ही हनुमान जी हिमालय जाकर हिमालय के पहाड़ो पर अपने नाख़ून के जरिये रामायण लिखना शुरू कर दिया था। जब रामायण लिखने के बाद ऋषि वाल्मीकि को यह ज्ञात होते ही वह हिमालय गए और वहाँ पर लिखे रामायण को पढ़ा।
भीम थे रामभक्त श्री हनुमान के भाई।
श्री हनुमान को भी पवन पुत्र कहा जाता है। और ठीक उसी तरह भीम को भी पवनपुत्र कहा गया है। इस कारण से भीम और हनुमान जी रिश्ते से भाई हुए। दोनों ही महाबली थे।
जब प्रभु श्री राम की मृत्यु हुई।
प्रभु राम जानते थे की उनकी मृत्यु को हनुमान जी स्वीकार नहीं कर पाएंगे। और इस कारण कहीं वह धरती पर कोहराम ना मचा दे। इससे बचने के लिए ब्रह्मा जी का सहारा लेकर हनुमान जी लो शांत रखा और उन्हें पाताल लोक भेज दिया गया।
जब हनुमान जी के छाती चिर दिखाया प्रकट श्री राम और सीताजी को।
माता सीता ने प्रेम वश होकर एक बार हनुमान जी को बहुत मूलयवान सुवर्ण का हार भेंट में देने के लिए विचार किया। लेकिन श्री हनुमान जी ने लेने से इनकार कर दिया। इस बात पर माता सीता ने पुण्यप्रकोप दिखाया। तब हनुमान जी ने अपनी छाती चिर कर उन्हें प्रभु श्री राम और सीता की छबि दिखाय दी। और हनुमान जी बोले की इससे बड़ा उपहार और क्या हो सकता है।
१०८ नामों में हे जीवन का सार।
हनुमान जी के संस्कृत में १०८ नामों का विवरण मिलता है। जो उनके जीवन के हर अध्याय पर प्रकाश डालता है।
उनके १०८ नामों को मेरी नेक्स्ट पोस्ट में जानेंगे। उनकी कृपा हम सब पर बनी रहे। यही उनके पावन चरणों में प्रार्थना।
धन्यवाद।
जय श्री कृष्णा।
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