नमस्कार मित्रों ,
हमारे सभी पाठको को सुप्रभात , जय श्री कृष्णा।
आज के इस शुभ दिन के साथ ही हमारे जीवन मै भी सूर्योदय हुआ है। एक सूर्य की तरह ज्ञान की प्रकाशपूंज हमारे जीवन मै हुआ है। कल हमने रामायण और भगवान राम के बारे में देखा, पढ़ा ,और उन के अस्तित्व के ऊपर उठने वाले सवालो के बारे मै भी जानने का प्रयत्न किया एवं चर्चा की। आज हम ऐसी ही चर्चा हमारे महान ग्रन्थ महाभारत के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। महाभारत एक महाकाव्य हे, इसे भगवन वेदव्यास जी ने लिखा था सँकलित किया था । जिसे भी अंग्रेजो द्वारा एक कल्प्ति और कभी ना होने वाली घटनांओं मै सामिल कर लिया गया। भगवान राम की तरह ही भगवन श्री कृष्णा के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े किये गए। जैसे की बकासुर बाणासुर और हरिण्यकश्यप जैसे असुर हुए होंगे ? अगर भगवान श्री कृष्णा मथुरा , और द्वारिका नगरी जो सुवर्ण की बनी हुई थी। जिसका समुद्र में जलप्लवान होने से विनाश हुआ है तो वह कहा है। ऐसे बेदुनियाद सवालों को हमारे भारतीयों एवं हिन्दू के सामने लेकर उन्हें इसकदर गुमराह किया गया। और हम भी उनके इस घटिया सवालों के बारे मै सोचने पर विवश हो गए। क्योंकि दुर्भाग्य की बात यह है की हम भारतीयों ने खास कर हिंदुओ ने , हमारे पुराणों , वेदो , रामायण ,महाभारत जैसे महानतम शाश्त्रो के बारे मै उसे खुद पढ़ने मै कटेहि पढ़ने की उनके बारे मै सच जानने की कोशिश ही नहीं की। जो हमे पढ़ाया गया , सुनाया गया और दिखाया गया बस उसे ही हमने जीवन का अंतिम सत्य मान लिया गया। लेकिन इसमें भी हम हिन्दुओ की कोई गलती नहीं है। क्योकि जब हमारे यहाँ अंग्रेज आये और पुरे भारतवर्ष को गुलाम बनाया गया। तब अंग्रेजो के दो ही बड़ी महच्छाए थी। एक वह भारत मै व्यापर का बहाना बनाकर इस सुवर्ण चिड़िया को लूटने की और दूसरी इस अखंड भारतवर्ष को तोड़ने की, और अपने क्रिश्चनिटी को पुरे भारतवर्ष को फ़ैलाने ,एवं हमारी एकता ,अखंडता को तोड़ने की। वही बड़ी विडम्बना है की वह उन दिनों इस षड्यंत्र मै सफल हुए। क्यों की इसी देश के गद्दारों ने एक तुच्छ शाहन पाने की लालच मै और ३०० मिलियन यूरो के लिए , बंगाल के बक्शर के युद्ध मै सिराजदिल्लाह के सेनापति मीर जाफर ने अपने ही राजा के साथ गद्दारी की, उन दिनों एक ऐसा प्रचलन था ,हमारे राजा को बिच की अगर युद्ध मै सेनापति मीर जाफर ने अपने हथियार ,शस्त्र डाल दे। और सामने वाले राजा विजय घोषित किया जाता था। उन दिनों सिराजदिल्लाह के साथ भी कुछ ऐसी ही दिल दहला देने वाली घटना घटित हुई। सिराजदिल्लाह के पास अठराह हज़ार सैनिकों की एक शशक्त सैना थी। पर उसके इस गद्दार सेनापतीने हथियार दाल दिए। और सिर्फ १५० अंग्रेज सैनिको के सामने हार मान ली गयी। (इस बड़ी दुःखद घटना को हम विस्तार से देखेंग ) और तबसे आज तक हम उन्ही के गुलाम बने हुए है। यह बात कदाचित आप को अजीब लगे की हमारा देश तो १५ अगस्त १९४७ को आज़ाद घोषित है फिर आज हम भारतीयों आज भी गुलाम कैसे। वही जानने के लिए मेरी आगे की पोस्ट का इंतजार करें। अपने दोस्त को रजा दे। फिर मुलाकात होगी एक नयी सोच के साथ , धन्यवाद।
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