Thursday 20 July 2017

Reincarnation and karma Principle Part 1

नमस्कार मित्रों , 
जय श्री कृष्णा।  
सर्व प्रथम आप हमारा ब्लॉग पढ़कर हमारा होसला बढ़ा रहे है। इस के लिए मै आप सभी दोस्तों को दिल से  धन्यवाद करते है।  दोस्तों कल हमने प्लासी के युद्ध और अंग्रेजो के आये राज के बारे मै जाना। टी=वह कहानी भी आगे दोहराएंगे। किन्तु आज हम कुछ और बड़ी ही रसप्रद एवं रोमांच से भरी बात करने जा रहा हु। हमारे  हिन्दू धर्म की बहोत सी विशेस्ताए है। ऐसे कई सारे और बड़े गूढ़ सिद्धांत से भरपूर है हमारे हिन्दू शास्त्र। ऐसे ही दो बड़े सिद्धांत है जिनके बारे मै हम आज जानने की कोशिश करेंगे। वह है पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत। यह दोनों ही सिद्धांत को हमारे  हिन्दू धर्म में मान्यता दी गई है। पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत दोनों ही एक दूसरे से संल्गन है। दोनों ही एक दूसरे पर निर्भर करते है। अगर इन दोनों सिद्धांतो के बारे में लिखा जाये , इसके ऊपर चर्चा की जाये तो यह इतना लम्बा विषय है की  घंटो लग जाय इसके बारे मै जानने और समझने मै। अभी यह समझने का प्रयत्न करेंगे की पुनर्जन्म के सिद्धांत क्या है , और उसे मानने की जरुरत क्यों है। पुनर्जन्म की व्याख्या को समझने से पहले हमे जन्म एवं मृत्यु के बारे मै जानना अति आवश्यक है।   क्या है जन्म ? इसकी व्याख्या हम इस प्रकार कर सकते है, जन्म यानि स्थूल देह का योग , जिव एवं आत्मा का योग। यानि माता के गर्भ से बालक का उतपन्न होना वह जन्म है। इसी तरह हर मादा से अपने बच्चे का उत्पन्न होना उसे हम जन्म कहेंगें। उसी तरह मृत्यु का मतलब देह और आत्मा दोनों का अलग होना , बिछड़ना है। और इससे ही हमे पुनर्जन्म का सिद्धांत प्राप्त होता है। हमारी भारतीय संस्कृती एवं परंपरा मै खासकर हमारे सनातन हिन्दू धर्म और वैदिक परम्परा मै , हमारे धर्म शास्त्रों मै पुनर्जन्म की बात कही गयी है। हमे समझाया गया है। पुरे विश्व मै कई धर्म हुए , हमारे सनातन हिन्दू धर्म मै भी बहोत से धर्म एवं संप्रदाय हुए , चाहे वह बौद्ध , जैन , और सनातन धर्म मै पुनर्जन्म की स्वीकृति मिली है। हिन्दू धर्म मै तीन बड़े संप्रदाय है शैव , वैष्णव एवं शाक्त संप्रदाय। शैव यानि भगवान शिव की अर्चना करने वाले , वैष्णव यानि भगवान विष्णु एवं उनके अवतारों मै मानने वाले। और शाक्त संप्रदाय यानि माँ शक्ति (हिन्दू देविओ मै ) श्रद्धा रखने वाले।इन सभी सम्प्रदायों मै पुनर्जन्म की पुष्टि की गयी है।  उसके आलावा कई सारे भारतीय आचार्यो ने अपने तत्वज्ञान मै पुनर्जन्म को स्वीकार किया , चाहे वह शंकराचार्य का अद्वैतवाद हो, रामानुजाचार्य का विश्ष्ट अद्वैतवाद हो, माधवाचार्य का द्वैतवाद हो, निम्बार्काचार्य का द्वैत-अद्वैतवाद हो  या फिर वलभाचार्य का शुद्ध अद्वैतवाद हो। और शांख्य ,योग , न्याय जैसे तात्विक चर्चाओ  मै भी पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्वीकारा है। सराहना की गई है। सिर्फ सनाटिक रिलिजन मै (ख्रिस्ती , इस्लाम और यहूदी धर्म मै )पुनर्जन्म की मान्यता एवं सिद्धांत को नकारा गया है। अब ये क्यों नकारा गया। एवं यह पुनर्जन्म की स्वीकृति हमारे सनातन धर्म मै क्यों है यह सभी बातें हम आगे वाले प्रकरण मै करेंगे।  इंतजार करे। और आपके सूचन और सुझाव हमे लिख भेजे। अगर यह जानकारी आपको पसंद आये तो उसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। धन्यवाद। 
जय हिन्द। जय श्री कृष्णा। 

1 comment:

  1. Good......
    Dear Admin..... Can you more elaborate and give some accounts from our Great Vedas?

    Thank you

    ReplyDelete

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