नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
इस भारत की पवित्र भूमि पर और इस सनातन हिन्दू धर्म में तथा इस भारतीय परंपरा में कई महान विरल विभूतिओ ने जन्म धारण किया। कई संत , गुरु , अवतार और ऋषि मुनिओं ने जन्म धारण कर इस धरा को पावन किया। इस दुनिया में अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाया। मनुष्य एवं प्राणी मात्र को जीवन जीने का सही ढंग सिखाया। ऐसे ही गुरुओं में , तत्वचिंतकोंमे सबसे अव्वल नाम श्री विष्णुगुप्त का भी है। उन्हें कौटिल्य एवं चाणक्य के नामों से भी जाना जाता है।
दोस्तों आज हम बात करेंगे की चाणक्य कौन थे। उनका इस भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। वह न केवल एक आदर्श गुरु थे , इसके साथ वह एक महान तत्वज्ञानी , तत्वचिंतक , अर्थशास्त्री एवं राजा महाराजाओं द्वारा पूजनीय राजगुरु और एक आदर्श मार्गदर्शक भी थे।
भगवान श्री कृष्णा के बाद अगर किसीने अव्वल दरजे की राजनीती की हो तो वह सिर्फ चाणक्य ही है। वह एक प्रखर राजनीतिज्ञ थे , नहीं इनका स्थान किसीने लिया है नाहीं कोइ ले सकेगा। वह एक विरल बुद्धिमान व्यक्ति थे।
हमारा देश पहले छोटे छोटे राज्यों एवं देसी रजवाड़ों में विभाजित था। वह आचार्य चाणक्य की बदौलत एक महान और अखंड राष्ट्र बन पाया। आचार्य चाणक्य ने अपनी नितिओ के बल से हमारे भारत वर्ष की सीमाओं की रक्षा की थी।
विदेशी राजा सिकंदर जिसे एलेक्सेंडर के नाम से भी जाना जाता था। वह भारतीय सीमाओं पर आक्रमण करने के लिए पहुंच चूका था। चारो ओर भय का वातावरण था। क्योंकि सिकंदर एक महत्वकांक्षी एवं महान योद्धा था। जो पूरा विश्व जितने के लिए निकला था। वह दुनिया जित चूका था। अब उसकी नजर हमारे देश भारत जो उस समय सुवर्ण की चिड़िया था। वह भारत को जितने की फ़िराक में था।
ठीक उसी समय पर आचार्य चाणक्य ने अपने बुद्धि एवं नीतिओं के बल पर भारत की सिकंदर से रक्षा की। और सिकंदर को युद्ध में चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा परास्त किया गया। आचार्य चाणक्य ने एक सामान्य बालक जिसका नाम चन्द्रगुप्त था, उसे प्रशिक्षित कर सारी विद्याओं में पारंगत किया। उसे एक वीर योद्धा बनाया। यह बालक बादमे चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से जाना गया। बाद में यही चन्द्रगुप्त मौर्य अखंड भारत का शासक बना। चन्द्रगुप्त के युग को उसके कार्यकाल ने भारत का सुवर्ण काल कहा जाता है।
उस समय में पाटलिपुत्र मगध की राजधानी थी। पाटलिपुत्र पर राजा धनानंद का राज था। दोस्तों यह पाटलिपुत्र जो राजधानी है वह और कुछ नहीं लेकिन आज का बिहार में स्थित पटना शहर है। जिसके नाम को मुघल सल्तनत के दौरान बदल दिया गया। राजा धनानंद वह महारत के नाम से भी जाना जाता है। जो नंद वंश का राजा था। उस समय भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य मगध था।
चाणक्य ने महाराज को समझाया की सिकंदर भारत की सीमाओं तक पहुंच गया है। आप सभी राज्यों को एकत्र कर उनसे लड़े। किन्तु महाराज धनानंद ने उनको सुना ही नहीं। और भरी सभा में उनका घोर अपमान किया। उनकी हसीं मजाक उड़ाया। तब चाणक्य बहोत क्रोधित हुए और चाणक्य ने सभा में प्रतिज्ञा ली की जब तक में आपके (धनानंद) के साम्राज्य का सर्वनाश नहीं करूँगा तब में अपनी शिखा नहीं बाधूंगा। उसके पश्चात आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को प्रशिक्षित कर धनानंद को परास्त कर एक सामान्य बालक को इस भारतवर्ष का सम्राट बनाया।
आज भी आचार्य चाणक्य ने जो नीतियां दी है वह अमर है। कई विदेशी इतिहासकारों ने चाणक्य के अस्तित्व पर सवाल खड़े किये है जैसे की वह करते आये हे। मेरा आपसे निवेदन है दोस्तों कभी भी विदेशी इतिहासकारों द्वारा लिखे गए भारतीय इतिहास पर विश्वास न करें। क्योंकि उन्होंने हमारे इस सुवर्ण इतिहास को कई बार टटोलने की कोशिश की है। उसमे मन चाहा बदलाव कर उसे बदला गया है। में यह नहीं कहता हु के वह सारे विदेशी लेखक ग़लत है। लेकिन आप उन्हें पढ़ते समय जरूर सावधान रहे।
आचार्य चाणक्य द्वारा की गयी इन सारी नीतिया एक ग्रन्थ के रूप अकबंध है। वह आज भी अमृत की तरह उनकी वाणी पवित्र गंगा की तरह पुस्तकों एवं ऐसे आर्टिकल्स द्वारा अविरत और स्वर्णिंम बह रही है। उनके विचार एवं वाणी को जीवन में उतारने योग्य है।
नेक्स्ट आर्टिकल में हम उनकी नीतिओं के बारे में जानेंगे। जो हमे आज भी एक अच्छा और सुखमय जीवन जीने के लिए हमारा मार्गदर्शन करती है।
धन्यवाद।
जय श्री कृष्णा। जय हिन्द।
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