नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
दोस्तों हम आचार्य चाणक्य के जीवन और उनकी नीतिओं के बारे में जान रहे है , समझ रहे है। उन्होंने जीवन जीने के तरीके और एक सफल मनुष्य कैसे बनें उनकी सीख़ हम सबको उनके नीतिओं द्वारा दी है। तो चलिए जानते है ,
आचार्य चाणक्य कहते है ,
१ कोई भी व्यक्ति उसके जन्म से ही महान नहीं होता , वह अपने अच्छे कार्यो द्वारा महान बनता है। नहीं के अपने कूल के द्वारा।
२ चाणक्य जी आगे कहते है की अगर आप ने कुछ करने का सोचा है , या कुछ कर दिखाने की कुछ बनने का अपने मन में थान लिया है , तो बुद्धिमानी से इस रहस्य को बनाये रखे और इस कार्य के लिए दृढ रहिये। और जब तक यह कार्य संपन्न नहीं हो जाता उसे गुप्त ही रखिये। इसीमे भलाई है।
३ क्रोध ऐसी चीज़ है हो बुद्धिमान व्यक्ति की मति भी भ्रष्ट कर सकता है ,इसलिए जल्द गुस्सा करना आपको मूर्ख साबित देगा। अर्थात बिना कारण क्रोध से दुरी बनाये रखिये।
४ नाम (इज्जत )और साख बनाने में सालों लगते है और उसे गवांने में , उसे खोने में एक पल ही काफी है , अगर आप इस बात पर गौर करेंगे , इसके बारे में सोचेंगे तो आप हर चीज सोच समझकर अलग तरीके से करेंगे।
५ अगर आप धनि है , धनवान है तो उस धन से दूसरों की भलाई के लिए मददगार बने तब ही उस धन का मूल्य है अन्यथा यह सिर्फ पाप और बुराई का ढेर है।
६ दुष्ट मनुष्य की मीठी वाणी पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए। वह अपना मूल स्वाभाव कभी नहीं छोड़ सकता , जैसे शेर कभी हिंसा नहीं छोड़ सकता। और एक उदहारण आगे भले ही साप अपने को चन्दन के पेड़ पर लपेटे हुए रहे। लेकिन वह जहर उगलना नहीं भूलता।
आचार्य चाणक्य जी कहा की इन तीन लोगों की भलाई करनेसे और उन्हें पनाह देने से हमेसा आपको ही दुःख होगा , आपका ही नुकसान होगा।
दोस्तों हम हमारी पुरानी कहावतों में और हमारे बुजुर्गों द्वारा सुना है की "कर भला हो भला" किन्तु आचार्य चाणक्य जी हमे उपदेश देते है की इन तीन व्यक्ति विशेष का भला करने से हमें ही दुःख भुगतना पड़ता है , इसलिए इनसे दुरी रखना ही बहतर है।
१ दोस्तों चाणक्य जी कहते है की दुष्ट स्वाभाव वाली स्त्री यानी स्वछन्दी ( अपने मन अनुसार वर्ताव करने वाली ), कामिनी ( अधिक कामेच्छा रखने वाली ) ऐसी स्त्रिओं का भरण पोषण करना हमारे लिए हानि करक है। इसीतरह चारित्र्यहिन स्त्री को पालना उसका पोषण करना हमारे लिए घातक है।
ऐसी स्त्रिओं को सिर्फ धन से ही मोह है। सज्जन और चारित्र्यवान पुरुष ऐसी स्त्रिओं का संग करे तो उसे बदनामी का अपयश का शिकार होना पड़ता है। और पाप का भागी बनता है। समझदारी उसी में की ऐसे लोग से दुरी बनाये रखे।
२ चाणक्य बताते है अगर किसी मूर्ख व्यक्ति या मूर्ख शिष्य को उपदेश देना है तो उसे ज्ञान का उपदेश नहीं देना चाहिए। हम मूर्ख को ज्ञान देकर उनका भला करना चाहते है किन्तु मूर्ख व्यक्ति उस बात को समझ ही नहीं पायेगा। जैसे की भैंस के आगे भागवत कथा करना ऐसा हाल होगा। बुद्धिहीन मनुष्य ज्ञान की बातों में भी तर्क वितर्क करके उलझे हुए रहेंगे , और हमारा समय भी बर्बाद करेंगे।
३ जो व्यक्ति किसी कारणवश या बिना कारण के ही हमेशा दुखी रहता हो उनसे भी दूरी ही रखनी चाहिए। आचार्य कहते है जो लोग भगवान के द्वारा दिए गए सुखों , संसाधनों से संतुष्ट न होकर दुखी और निराश रहते है उनका संग भी नहीं करना चाहिए। धैर्यवान और बुद्धिमान व्यक्ति को जो मिला है या मिलने वाला है उन्ही में संतुष्ट होकर जीवन व्यतीत करते है। अकारण दुखी होने वाले लोग दुसरो के सुख को देख भी इर्षा से अवगुण ही लेते है।
दोस्तों चाणक्य जी की वाणी उनके उपदेशो को आगे दोहराएंगे। खुश रहे।
धन्यवाद। जय श्री कृष्णा। जय हिन्द।
No comments:
Post a Comment