Saturday, 5 August 2017

Kautilya(Chanakya) the Best Teacher , Philosopher ,Economist and Also a Royal Adviser -4

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

मेरे प्यारे पाठको आपका धन्यवाद करना चाहूंगा। आप हमारे आर्टिकल्स को पढ़कर हमें और अच्छा लिखने की प्रेणणा देते है। असल में हमारे पाठकों ही हमारी जमा पूंजी है। दोस्तों हम कई दिनोंसे आचार्य चाणक्य की अजोड़ वाणी का रसास्वाद ले रहे है। 

आज हम इसके चौथे चरण में है , और आचार्य चाणक्य के वचनों को जानने समझ ने की कोशिश करेंगे। 

१ आचार्य चाणक्य के अनुसार हमे आपत्ति काल के लिए भी धन का संचय करना चाहिए। और आपातकाल के दौरान धन से भी अधिक स्त्री  की रक्षा करनी चाहिए। सब काल में धन और स्त्री से भी अधिक अपनी रक्षा करनी चाहिए। 
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यह छबि सिर्फ दर्शाने के लिए है। 

इन जग़ह , देश जहा यह सगवड़ प्राप्त न हो वहाँ  निवास कदापि नहीं करना चाहिए।

२ आचार्य आगे कहते है की , जिस देश और स्थल पर हमारा आदर सन्मान ना हों , जिस देश में आजीविका नहीं हो और वहाँ मित्रता करने योग्य कोई बंधू ना हो , और सबसे महत्व पूर्ण बात अगर वहाँ विद्याभ्यास प्राप्त करने का लाभ न हो।  ऐसी जगहों को मनुष्य को तत्काल त्याग देना चाहिए। ऐसी जगह ऐसे देश निवास करने के लिए उचित नहीं है। 

३ आचार्य के अनुसार जहा धनिक यानि पैसे वाला आदमी , वेदों का ज्ञाता - ब्राह्मण , राजा , नदी और पाँचवा वैद्य विद्यमान न हो ऐसी जगह पर एक दिन के लिए भी निवास नहीं करना चाहिए। क्योंकि हमे विद्या प्राप्त करने  लिए उचित गुरु , हमारी रक्षा और हमारा पालन पोषण के लिए राजा , और अगर हम बीमारी से जूझ रहे हो तो वह वैद्य यानि डॉक्टर की आवश्यकता रहती है। और नदी भी हमे पानी के साथ साथ ऊर्जा भी प्रदान करती है , यह यातायात का साधन भी है। यह पांच अगर न हो  तो उस देश उस स्थल का तुरंत ही त्याग करना चाहिए। 

४ आचार्य ने आगे यह भी कहा की जिस देश , राज्य और गांव में आजीविका यानि पैसे कमाने के अवसर प्राप्त न हो , जहां पर भय और लज्जा , शर्म  और कुशलता न हो अर्थात जिस जगह पे ऐसे गुण वाले व्यक्ति निवास ना करते हो ,  देने की प्रकृति मतलब जहां परोपकार की भावना न हो। वहा के लोगो के साथ रहना , उनकी संगति करना निरर्थक है , ऐसे लोगों का संग कदापि नहीं करना चाहिए। 

यह लोग अपने  स्वार्थ की पूर्ति होने पर छोड़ कर चले जाते है। 

१ वेश्या निर्धन मनुष्य को ,प्रजा (सिटीजन्स ) शक्तिहीन राजा को छोड़ देते है  , पक्षी बिना फल वाले वृक्ष को छोड़ देते है  ,और अभ्यागत यानि अथिति महेमान भोजन करके घर को  छोड़ जाते है। दोस्तों इसके द्वारा आचार्य जी समझाते है की सब रिश्ते जो है वह स्वार्थ से ही निर्भर है। 

२ ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यजमानों को त्याग देते है , शिष्य विद्या की प्राप्ति हो जाने पर गुरु को त्याग देते है , वैसे ही जले हुए वन को मृग त्याग देते है। 

दोस्तों आगे के अध्याय हम नेक्स्ट आर्टिकल में जानेंगे। और इसी तरह आचार्य चाणक्य की वाणी को सरल रूप में आपके सामने विवरण करते रहेंगे धन्यवाद। 

जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। 

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