नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
दोस्तों अब ज्यादा समय न लगाते हुए हम आचार्य जी के वाणी विचार के बारे में जानेंगे।उनके द्वारा दिए गए हर उपदेश को सिर्फ पढ़ना और सुनना यही काफी नहीं है। हमें आचार्य जी उपदेश अनुसार हमारा जीवन बनाना है। तब जा कर उनको हमारे भारतीय एवं हिन्दू होने का गर्व ले सकेंगे। आचार्य जी ने इसीलिए उनके विचार और वाणी को तथा उस समय अपनायी गयी नीतिओं को ग्रन्थस्थ किया क्योंकि हमारी पीढ़ी और हमारी आने वाली पीढ़ी इसका ज्ञान घर घर में फैला सके। यह ज्ञान का प्रकश दुनिया के उस घोर अंधकार तक पहुंचे और अज्ञानताका , दम्भ का , हमारे तन और मन के विकारों का सर्वनाश कर सके। और इस ज्ञान गंगोत्री को सदा अविरत न केवल भारत किन्तु यह सरे विश्व में उसका ज्ञान का प्रसार -प्रचार हो। हम ने इस पुण्य के कार्य में थोड़ा सा योगदान दिया है। आप भी इसे शेयर करके , इसको पढ़कर और दूसरे व्यक्तिओ को यह कथा के रूप में कह कर , या सोशल मिडिया द्वारा इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर कर धन्यवाद के पात्र हो सकते है। तो दोस्तों आपसे यह अनुरोध है की आप इस सभी आर्टिकल को फॉलो करे , पसंद करे। यह सहृदय आप सभी पाठको को विनंती है।
चलिए अब आचार्य चाणक्य जी की नीतिओं के बारे में विचारो का आदानप्रदान करते है।
SOURCE: GOOGLE IMAGES यह छबि प्रतीकात्मक है। |
आचार्य चाणक्य पुत्र के गुणों के बारे में बताते है की। ......
१. एक अच्छे वृक्ष से जिसमे सुन्दर पुष्प उगते हो और मीठी सुगंध हो ऐसे सब वन में सुवास प्रसरित हो जाती है , ठीक उसी तरह सुपुत्र यानी जिस कुल में हो वह घर भी हमेशा खुशियों एवं सुख से भरा होता है।
२. आग से जलते हुए एक ही सूखे वृक्ष से सब वन सुलग उठता है। ठीक उसी तरह एक दुष्ट पुत्र के पैदा होने से उस कुल का , उस घर का भी सर्वनाश हो जाता है।
३. जिस घर में एक ही पुत्र हो और वह विद्या युक्त हो , तो उस कुल और घर आनंददित , हर्षोल्लास से भर जाता है। जैसे चन्द्रमा से रात्रि। पूर्णिमा माँ का चाँद अंंधकार को नष्ट कर देता है। और चन्द्रमा की चांदनी धरती पर अपनी शीतलता को बिछा देती है। ठीक उसी तरह एक अच्छा पुत्र अपने सबंधीओं को सुख प्रदान करता है।
४. शोक , संताप और असंप करने वाले बहुपुत्रो ( एक से अधिक पुत्र ) से क्या ? ऐसे पुत्रो से हमे सिर्फ दुःख और बदनामी की ही प्राप्ती होती है। ऐसे हज़ार पुत्र होने से भी कोई फ़ायदा नहीं। कुल को सँभालनेवाला , घर में सब को विश्राम देने वाला एक पुत्र ही श्रेष्ठ है। दोस्तों महाभारत के बारे में हम जानते है। कौरव १०० थे , और पांडव ५। फिर भी वह कुछ नहीं कर सके क्योंकि पांडवों के साथ भगवान श्री कृष्णा थे , और कौरवों ने भगवान को दूर ही रखा था। वह अच्छे पुत्र साबित नहीं हुए थे।
५. पुत्र को पांच बरस तक दुलार करे, प्यार दे अच्छे से देखभाल करे। बाकि के १० साल तक उसे ताडन करे , कठोरता से वर्ताव करे उसे अच्छे संस्कार और शिक्षा प्रदान करे। पुत्र के सोलह साल की उम्र होने पर अपने पुत्र से मित्र के अनुसार व्यवहार करे।
धन्यवाद दोस्तों। आगे और भी अध्याय से हम आपके साथ बने रहेंगे।
जय श्री कृष्णा। जय हिन्द।
No comments:
Post a Comment