नमस्कार मेरे प्यारे पाठकों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
मेरे दोस्तों हम आचार्य चाणक्य की नितिओ के बारे में बात कर रहे है। अब ज्यादा वक्त झाया न करते हुए हम हमारे पांच वे आर्टिकल को आप सामने प्रकट करते है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार
१. जहाँ मूर्ख व्यक्तिओं की पूजा नहीं की जाती ,जहां अन्न संचित रहता है और जहां स्त्री पुरुष में कलह नहीं होता वहां खुद ही लक्ष्मी (धन ) विराजमान रहती है।
२.यह निश्चित है की ,आयु , कर्म ,धन ,विद्या और मरण ये पांचो जब जीव गर्भ में होता है तब ही उनका भविष्य लिख दिया जाता है।
३. जब तक देह निरोगी है तब तक मृत्यु दूर है। तत्पर्यंत पुण्यादि करना उचित है। प्राण का कब अंत हो वह कोई नहीं जानता। इसलिए पहलेसे ही अच्छे कर्म और पुण्य करने चाहिए।
४. विद्या में कामधेनु के समान ही सब गुण है। इसलिए वह अकाल (दुःख के समय )में भी अच्छा फल प्रदान करती है। आचार्यजी ने विदेश में विद्या को माता समान कहा है। विद्या को गुप्त धन कहा गया है।
५. राजालोग एक ही बार आज्ञा देते है , पंडित एक ही बार बोलते है , कन्या दान एक ही बार किया जाता है। ये तीनों बात एक ही बार होती है।
६. तपश्चर्या अकेले ही करनी चाहिए। अगर पढाई करनी है तो दो लोग साथ में करे। गाना और संगीत तीन लोग साथ में करे तो संगीत महक उठता है। रास्ते में अगर चलना है , तो अकेले नहीं चार लोग साथ में चले। खेती जैसा महेनत वाला काम पांच लोग मिलकर करे तो खेती का काम जल्दी हो जाता है और खेती में उपज अच्छी होती है।अगर बहोत लोग साथ में मिले तो वह यद्ध में भी विजय हांसिल कर सकते है।
धन्यवाद। जय श्री कृष्णा। जय हिन्द।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
मेरे दोस्तों हम आचार्य चाणक्य की नितिओ के बारे में बात कर रहे है। अब ज्यादा वक्त झाया न करते हुए हम हमारे पांच वे आर्टिकल को आप सामने प्रकट करते है।
SOURCE :GOOGLE IMAGE SEARCH यह छबि प्रतीकात्मक है। |
आचार्य चाणक्य के अनुसार
१. जहाँ मूर्ख व्यक्तिओं की पूजा नहीं की जाती ,जहां अन्न संचित रहता है और जहां स्त्री पुरुष में कलह नहीं होता वहां खुद ही लक्ष्मी (धन ) विराजमान रहती है।
२.यह निश्चित है की ,आयु , कर्म ,धन ,विद्या और मरण ये पांचो जब जीव गर्भ में होता है तब ही उनका भविष्य लिख दिया जाता है।
३. जब तक देह निरोगी है तब तक मृत्यु दूर है। तत्पर्यंत पुण्यादि करना उचित है। प्राण का कब अंत हो वह कोई नहीं जानता। इसलिए पहलेसे ही अच्छे कर्म और पुण्य करने चाहिए।
४. विद्या में कामधेनु के समान ही सब गुण है। इसलिए वह अकाल (दुःख के समय )में भी अच्छा फल प्रदान करती है। आचार्यजी ने विदेश में विद्या को माता समान कहा है। विद्या को गुप्त धन कहा गया है।
५. राजालोग एक ही बार आज्ञा देते है , पंडित एक ही बार बोलते है , कन्या दान एक ही बार किया जाता है। ये तीनों बात एक ही बार होती है।
६. तपश्चर्या अकेले ही करनी चाहिए। अगर पढाई करनी है तो दो लोग साथ में करे। गाना और संगीत तीन लोग साथ में करे तो संगीत महक उठता है। रास्ते में अगर चलना है , तो अकेले नहीं चार लोग साथ में चले। खेती जैसा महेनत वाला काम पांच लोग मिलकर करे तो खेती का काम जल्दी हो जाता है और खेती में उपज अच्छी होती है।अगर बहोत लोग साथ में मिले तो वह यद्ध में भी विजय हांसिल कर सकते है।
धन्यवाद। जय श्री कृष्णा। जय हिन्द।
No comments:
Post a Comment