Thursday, 27 July 2017

108 Names of Lord Shri Hanuman

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा।  हर हर महादेव। 

जैसे की हमने आपसे वादा किया था आज हम हनुमान जी के १०८  नामों को जानेंगे। जो उनके जीवन का सार है। उनके हर एक नाम के साथ उनके जीवन का पहलु जुड़ा हुआ है।  हनुमान के इन १०८ नामों का जाप करने से मन शांत एवं प्रफुल्लित रहता है।  हमारे जीवन में आने वाली हर कठनाई और दुःख का विनाश होता है।  हम रोग मुक्त हो सकते है।  जीवन के हर संकटमात्र हनुमान जी के नामो के स्मरण से समाप्त हो जाते है।  तो चलिए जानते  है उनके उन पवित्र नामावली को। 


  1. महावीर : सबसे शक्तिशाली वीरों के वीर। 
  2. हनुमत  : जिसके गाल फुले हुए हो। 
  3. मरुतात्मज : पवन देव के पुत्र पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय। 
  4. आंजनेया : अंजना का पुत्र 
  5. तत्वज्ञानप्रद : मति (बुद्धि ) देने वाले। 
  6. अशोकवनकाच्छेत्रे : अशोक वाटिका  को  विनाश  करने वाले। 
  7. सीतादेवीमुद्राप्रद्काय : सीताजी अंगूठी भगवान् राम को देने वाले। 
  8. सर्वबंधनविमोक्त्रे : बंधन और मोह से मुक्त करने वाले। 
  9. सर्वमायाविभंजन : माया एवं छल के विनाशक। 
  10. रक्षोविध्वंस्कारक  : राक्षस और असुरों का नाश करने वाले। 
  11. परविद्यापरिहार  : दुस्ट आसुरी शक्तिओं को नाश करने वाले। 
  12. परशौर्यविनाशन: शत्रु के शौर्य को विनाश करने वाले। 
  13. परमंत्रनिरक्त्रे : राम नाम का जाप करने वाले। 
  14. सर्वग्रहविनाशी : ग्रहों के बुरे प्रभाव को नाश करने वाले। 
  15. परयन्त्रप्रभेदक : दुश्मनों की मंछा का नाश करने वाले। 
  16. भीमसेनसहायक : भीम के सहायक 
  17. सर्वलोकचारिणे : सर्व लोको में वास करने वाले अर्थात सर्वत्र व्याप्त। 
  18. सर्वदुखहारा : दुखों को दूर करने वाले। 
  19. मनोजवाया : पवन जैसे गतिवाले। 
  20. परिजतद्रुमःलस्थ : प्राजक्ता पेड़ के निचे वास करने वाले। 
  21. सर्वमंत्रस्वरूपवते : सभी मंत्रो के स्वामी। 
  22. सर्वयन्त्रात्मक : सभी यंत्रो में निवास करने वाले। 
  23. कपीश्वर : वानरों के देव। 
  24. कपिसेनानायक - वानर सेना का प्रमुख। 
  25. महाकाय : विशाल रूप। 
  26. प्रभवे : सबसे प्रिय। 
  27. सर्वतंत्रस्वरूपिणे : सभी मंत्रो और भजनों के आकार  वाले। 
  28. प्राज्ञाय : विद्वान। 
  29. वानर : बंदर। 
  30. केसरीपुत्र : केसरी के पुत्र। 
  31. रामदूत : भगवान श्री राम के दूत। 
  32. सगरोत्तकारक : सागर को उछल कर पार करने वाले। 
  33. श्रुंखलाबंदमोचक : तनाव को दूर करने वाले। 
  34. कारग्रहविमोक्त्रे :कैद से मुक्त कराने वाले। 
  35. महाबलपराक्रम :महान शक्ति के स्वामी। 
  36. गंधर्वविद्यातत्वज्ञ : आकाशीय विद्या के ज्ञाता। 
  37. चन्चलद्वालसन्नवलंबनामशिखोज्वला : जिनकी पूंछ उनके सर  से भी  अधिक  ऊँची है। 
  38. कुमारब्रह्मचारी : युवा ब्रह्मचारी। 
  39. भविष्यथ्चतुराननाय : भविष्य की घटना के ज्ञाता। 
  40. सर्वरोगहरा - सभी रोगोंको हर ने वाले। 
  41. बलसिद्धिकर 
  42. सर्वविद्यासम्पत्तिप्रदकाय - ज्ञान और बुद्धि देने वाले। 
  43. रत्नकुंडलदीप्तिमते-कान में मणि युक्त कुण्डल धारण करने वाले। 
  44. प्रतापवते- वीरता के लिए विख्यात। 
  45. अंजानगर्भसम्भूता - अंजना के गर्भ से जन्म लेने वाले। 
  46. विभीषणप्रिय - विभीषण के प्रिय। 
  47. बालार्कसद्रशासन - उगते सूरज के जैसे प्रकाशित (तेज वाले )
  48. दशग्रीवकुलान्तक - रावण के वंश का विनाश करने वाले। 
  49. वज्रकाय - धातु की तरह मजबूत शरीर वाले। 
  50. लक्ष्मणप्राणदात्रे -लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले। 
  51. महादयुत - सबसे तेजस्वी। 
  52. चिरंजीविने - सदा अमर रहने वाले। 
  53. रामभक्त -राम के भक्त। 
  54. अक्षहन्त्रे - रावण के पुत्र अक्षय का वध करने वाले। 
  55. दैत्यकार्यविघातक - असुरों दैत्यों की गतिविधिओ को नष्ट करने वाले। 
  56. कंचनाभ - सुनहरे शरीर वाले। 
  57. महातपसि - महान तपस्वी। 
  58. पंचवक्त्र - पाँच मुख वाले। 
  59. लंकिनी भंजन - लंकिनी का वध करने वाले। 
  60. सिंहिकाप्राणभंजन -सिंहिका प्राण हर ने वाले। 
  61. श्रीमते - प्रतिष्ठित। 
  62. गन्धमादनशैलस्थ - गंधमादन पर्वत पर निवास करने वाले। 
  63. सुग्रीवसचिव -सुग्रीव के मंत्री। 
  64. लंकापुरविदायक -लंका को जलने वाले। 
  65. शूर - साहसी 
  66. धीर - वीर 
  67. सुरार्चित -देवों  द्वारा पूजनीय। 
  68. पिंगलाक्ष - गुलाबी लोचन वाले। 
  69. कामरूपिणे - अनेक रूप धारण करने वाले। 
  70. वार्धिमैनेकपूजित - मैनाक पर्वत द्वारा पूजनीय। 
  71. विजितेन्द्रिय- इन्द्रियों को जितने वाले। 
  72. कबलीकृतमार्तण्डमण्डलाय - सूर्य को निगलने वाले। 
  73. रामसुग्रीवसंधात्रे -राम और सुग्रीव के बिच मध्यस्थ। 
  74. महारावणमर्दन - रावण का वध करने वाले। 
  75. स्फटिकाभा - एकदम शुद्ध। 
  76. नवव्याकृतपण्डित -सभी विद्याओ में निपुण। 
  77. वागधीश -प्रवक्ताओं के भगवान। 
  78. चतुर्बाहवे -चार भुजाओं वाले। 
  79. दीनबन्धुरा - दुखियों के रक्षक। 
  80. भक्तवत्सल - भक्तो के रक्षक। 
  81. महात्मा -महान आत्मा ( भगवन)
  82. संजीवननागहतरे - संजीवनी लाने वाले। 
  83. सुचये -पवित्र 
  84. वाग्मिने -वक्ता। 
  85. दृढव्रता  -कठोर तप करने वाले। 
  86. कलनेमिप्रमथन -कालनेमि का प्राण हर ने वाले। 
  87. हरिमर्कटमर्कटा - वानरों के ईश्वर। 
  88. दान्त - शांत। 
  89. शान्त - रचना करने वाले। 
  90. योगी -महात्मा 
  91. प्रसन्नात्मने - सदा प्रसन्न रहने वाले। 
  92. शतकंतमदापहते - शतकंटी के  अहम् को नाश करने वाले। 
  93. मकथालोलाय - भगवान राम की कथा सुनने के लिए व्याकुल। 
  94. सीतान्वेषणपंडित - माता सीता की खोज करने वाले। 
  95. वज्रद्रनष्ट-
  96. वज्रनखा - वज्र की तरह मजबूत नाख़ून वाले। 
  97. रुद्रावीर्यसमुद्धवा - भगवान शिव के अवतार। 
  98. इन्द्रजितपरहितमोघ्ब्राह्मास्त्रविनिवारक -इन्द्र के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को नष्ट करने वाले। 
  99. पार्थध्वजाग्रसंवासिने -अर्जुन के रथ पर विराजमान होने वाले। 
  100. शरपंजरभेदक - तीरों के घोसलों को नष्ट करने वाले। 
  101. दशबाहवे -दस भुजाओं वाले। 
  102. लोकपूज्य - सभी जीवो द्वारा पूजनीय। 
  103. जाम्ब्वत्प्रीतिवर्धन - जाम्ब्वत के प्रिय। 
  104. सीतारामपादसेवा - भगवान राम और सीता माता की सेवा में लीन रहने वाले। 
  105. दैत्यकुलान्तक - दैत्य के कुल का नाश करने वाले। 
  106. रामचूड़ामनिप्रदकाय - राम को सीता का चूड़ा देने वाले 
  107. महा तेजस - अधिकांश दीप्तिमान। 
  108. संकटमोचन - संकटो को हरने वाले।
धन्यवाद दोस्तों। 
जय श्री कृष्णा।  जय हिन्द। 


Hanuman The Ultimate Devotee of Lord Ram-2

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 


मेरे सभी पाठको को शुभ सांज। दोस्तों हम हनुमान जी के पवित्र जीवनगाथा के बारे में बात कर रहे है।  इसके दूसरे भाग में हम वही बातो को  दोहरायेंगे। 

जब भगवान राम ने दी हनुमान जी को दिया मृत्यु दंड। 

एक बार भगवान राम के गुरु विश्वामित्र ने किसी कारण वश हनुमान जी से क्रोधित हो उठे। और उन्होंने प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम राम को हनुमान जी को मृत्युदंड देने का आदेश दिया। भगवान राम ने उनके गुरुकी आज्ञा का पालन करते हुए महाबली हनुमान जी को मृत्यु दंड दिया। 

वाल्मीकि से पहले ही हनुमान जी के द्वारा रामायण की रचना। 

लंका कांड शुरुआत होते ही हनुमान जी हिमालय जाकर हिमालय के पहाड़ो पर अपने नाख़ून के जरिये रामायण लिखना शुरू कर दिया था। जब रामायण लिखने के बाद ऋषि वाल्मीकि को यह ज्ञात होते ही वह हिमालय गए और वहाँ पर लिखे रामायण को पढ़ा। 

भीम थे रामभक्त श्री हनुमान के भाई। 

श्री हनुमान को भी पवन पुत्र कहा जाता है।  और ठीक उसी तरह भीम को भी पवनपुत्र कहा गया है।  इस कारण से भीम और हनुमान जी रिश्ते से भाई हुए।  दोनों ही महाबली थे। 

जब प्रभु श्री राम की मृत्यु हुई। 

प्रभु राम जानते थे की उनकी मृत्यु को हनुमान जी स्वीकार नहीं कर पाएंगे। और इस कारण कहीं वह धरती पर कोहराम ना मचा दे। इससे बचने के लिए ब्रह्मा जी का सहारा लेकर हनुमान जी लो शांत रखा और उन्हें पाताल लोक भेज दिया गया। 

जब हनुमान जी के छाती चिर दिखाया प्रकट श्री राम और सीताजी को। 

माता सीता ने प्रेम वश होकर  एक बार हनुमान  जी को बहुत मूलयवान सुवर्ण का हार भेंट में देने के लिए विचार किया। लेकिन श्री हनुमान जी ने  लेने से इनकार कर दिया। इस बात पर माता सीता ने पुण्यप्रकोप दिखाया। तब हनुमान जी ने अपनी छाती चिर कर उन्हें प्रभु श्री राम और सीता की छबि दिखाय दी। और हनुमान जी बोले की इससे बड़ा उपहार और क्या हो सकता है। 



१०८  नामों  में हे जीवन का सार। 

हनुमान जी के संस्कृत में १०८  नामों का विवरण मिलता है।  जो उनके जीवन के हर अध्याय पर प्रकाश डालता है। 

उनके १०८   नामों को मेरी नेक्स्ट पोस्ट में जानेंगे।  उनकी कृपा हम सब पर बनी रहे। यही उनके पावन चरणों में प्रार्थना। 
धन्यवाद। 
जय श्री कृष्णा। 

Hanuman The Ultimate Devotee of Lord Ram-1

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

हनुमान जी हिन्दू सनातन धर्म के भगवान है। और भगवान राम के परम भक्त मेसे एक है। हनुमानजी के बारे में हमारे ग्रन्थ रामायण में बड़ा विस्तार से विवरण मिलता है। रामायण में उनकी भगवान राम के प्रति जो भक्ति थी उसे सर्वोच्च स्थान पर दर्शाया गया है। इस भारतवर्ष के इतिहास में कदाचित ही कोई ऐसा उत्तम राम भक्त हुआ होगा। आज हम भगवान हनुमान से जुडी कई अनसुनी बातों के बारे में जानेंगे। 

हनुमान यानि शक्ति , सेवाभाव, निस्वार्थ , दयालु  यह सारे गुणों से संपन्न एक आदर्श भक्त। हनुमान बड़े ही चंचल स्वभाव के थे। रामायण के अनुसार हनुमार एक महान राम भक्त है और उन्हें  भगवान शिव का रूद्र अवतार माना जाता है। 

पुरे भारतवर्ष में हिन्दुओं द्वारा मंगलवार और शनिवार को विशेषरूप से  इनकी पूजा की जाती  है। हनुमान को अलग अलग देवतागणों से भिन्न भिन्न शक्तिया प्राप्त है। इसलिए उन्हें अलग अलग नामों से भी जाना जाता है। 

हम शिरोमणि  महाबली राम भक्त हनुमान के बारे में बड़ी ही रसप्रद बात जानेंगे। 

भगवान शिव के अवतार है हनुमान 

बहुत कम लोग जानते है की वह शिवजी के अवतार है। और वह अपनी माता के श्राप को हरने के लिए इस धरती पर अवतरित हुए थे। 

बजरंगबली ने धारण किया केसरिया स्वरुप 

एक दिन माता सीता अपने मस्तक में सिन्दूर लगा रहे थे। हिन्दू धर्म के अनुसार सिंदूर स्री का सौभाग्य का प्रतिक है। राम भगवान के लम्बे आयुष्य के लिए सीता माता अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थी। तब हनुमान जी ने माता सीता से पूछा की माता यह आप क्या कर रही है ? तब उत्तर में माता सीता ने कहा की इससे राम प्रस्सन होते है और उनका आयुष्य भी लम्बा होता है। यह सुन हनुमानजी ने पुरे शरीर पर सिन्दूर लगा लिया था। तभी से बजरंगबली को सिन्दूर चढ़ाने की परंपरा हमारे हिन्दू धर्म में है। इससे भगवान राम और हनुमान दोनों की कृपा हमारे ऊपर बरसने लगती है। 

हनुमान नाम कैसे पड़ा ???

अपनी ठोड़ी के आकर की वजह से बजरंग बलि का नाम हनुमान पड़ा। संस्कृत में हनुमान का मतलब है बिगड़ी हुई ठोड़ी। 

ब्रह्मचारि हनुमानजी पिता भी है 

बहोत कम लोगो को ज्ञात होगा की हनुमान जी को मकरध्वज नाम का पुत्र भी था। जब भगवान राम और सीता जी का वनवास चल रहा था। उसी दौरान रावण माता सीता का हरण कर लेता है। तब सीता की खोज में निकले भगवान राम को हनुमान मिलते है और सीताजी के खो जाने का पूरा वृतांत हनुमान को बताते है। हनुमान और उनके परम मित्र सुग्रीव और उनकी पूरी वानर सेना सीताजी की खोज में निकलते है। और भगवन राम तथा लक्ष्मण की सहायता करते है। 

अनगिनत प्रयासों के बाद भगवान राम को पता लगता है की रावण द्वारा सीताजी का अपहरण किया है। तब हनुमान अपने ऐश्वर्य से आकाश मार्ग से लंका पहोचते है। लंका की अशोक वाटिका में बैठे सीताजी को हनुमान जाकर मिलते है। हनुमान श्री राम के दूत होने का प्रमाण सीताजी को श्री राम द्वारा दी गयी मुद्रा के द्वारा देते है। हनुमान अशोक वाटिका के फलों को आरोग कर अपनी क्षुधा मिटाते है। और अशोक वाटिका को तहसनहस कर देते है। 

तब रावण के सेना के राक्षस हनुमान से युद्ध करते है। लेकिन कोई भी उनको पकड़ने में असमर्थ रहते है। तब रावण का पुत्र मेघनाद उन्हें पकड़ने जाता है और वह हनुमानको बंदी बनाकर रावण की सभा में लाता है। हनुमान जी को वहा बैठने का आशन नहीं दिया जाता और वह अपने पूँछ का आशन बनाकर बैठ जाते है। उनके इस सहस के कारण रावण उनकी पुँछ में आग लगाने का आदेश देता है। हनुमान अपनी जली हुई पुँछ से सारि लंका में आग लगा देते है। उस कारण आग के ताप से उनके शरीर से बहोत पसीना निकलता है। और लौटते समय वह पसीने की बून्द समुद्र में जा गिरती है। और वह मछली के पेट में चली जाती है। और उससे मछली को गर्भ धारण होता है। और उनसे मकरध्वज नामक बहोत ही शक्तिशाली पुत्र का जन्म होता है। 

धन्यवाद। 
दोस्तों हनुमान जी के बारे में अभी और भी जानना बाकि है।  वह हम नेक्स्ट आर्टिकल में जानेंगे। 
जय हिन्द। जय श्री कृष्णा। 



The Unheard Story of Kurukshetra In Mahabharata

नमस्कार मित्रों।

आपका बहोत बहोत धन्यवाद। आज आप ही की वज़ह से मै अपनी १५ वी पोस्ट लिख रहा हु। 
आज मै आपको महाभारत में चर्चित उस लहू के मैदान के बारे में बताना चाहूंगा। यह मैदान की भूमि  हजारों लाखों योद्धाओं के रक्त से नहाई हुई है। उस रक्त के प्रभाव से आज भी वह भूमि लाल है। यह कुरुक्षेत्र आज हरियाणा (भारत ) में स्थित है। महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में ही लड़ा गया। लेकिन क्या आप को पता है इसका नाम कुरुक्षेत्र कैसे पड़ा ?  महाभारत के अनुसार कूरु वंश के प्रथम पुरुष थे। यह हस्तिनापुर के महान राजा हुए। इनके माता का नाम संवरण और माताजी का नाम ताप्ती देवी था। 

एक कथा के अनुसार कुरु ने इस क्षेत्रमें  को बार बार हल चलाया था। खेती की थी। बार बार जोता था। इसलिए इस क्षेत्र का नाम कुरुक्षेत्र पड़ा। जब राजा कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने इसकी वजह राजा कुरु को पूछी। 

तो राजा कुरु ने कहा की मेरी इच्छा है की जो व्यक्ति इस क्षेत्र में मारा जाये उसको सीधे स्वर्ग में स्थान प्राप्त हो। राजा कुरु की बात सुनकर इन्द्र हसने लगे। और वहा से चल गए। एसा कई बार हुआ। 

जब यह बात इंद्र ने अन्य देवतागण को बताई तो देवताओं ने कूरू को अपने पक्ष में लेने के सलाह दी। उनकी सलाह मानकर इंद्र, राजा कुरु के पास गए। और उन्हें कहा की यदि कोई पशु पंखी या मनुष्य निराहार रहकर कर या युद्ध करके यहाँ मारा जायेगा तो वह स्वर्ग में सीधे ही स्थान प्राप्त करेगा। कुरु ने यह बात मान ली। इस बात का ज्ञान भीष्म , श्री कृष्णा आदि को था। इसलिए कुरुक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हो ऐसा तय हुआ।


Wednesday, 26 July 2017

Why indians are clever and sure about Maths Calculations ???


नमस्कार मित्रों। 

जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव. 

दोस्तों हमारे हिंदुस्तान एवं हिन्दू परंपरा में ऋषि मुनिओ द्वारा कई खोजे की गयी। इनमे चाहे आयुर्वेद हो , शस्त्रविज्ञान हो , जीवविज्ञान हो या गणित हो। इन सब शोधों में हमारे भारतीय ऋषि परंपरा का योगदान रहा है। 
जिवविज्ञान और आयुर्वेद में चरक और शुश्रुत जैसे महान ऋषिओ का योगदान रहा है। उन्होंने अपने शास्त्रों में शस्त्रक्रिया का भी शोध का विवरण मिलता है। ठीक उसी तरह खगोलीय विज्ञान में भी भारत ने बहोत प्रगति की। किन्तु आज हम गणित में हुए उस शोध के बारेमें जानेंगे जिसने गणित की अत्यंत जटिल गणना को आसान कर दिया। दुनिया में सबसे पहले ० और १ से ९ के अंको की शोध भी इस भारत में हुई थी। जो आर्यभट्ट द्वारा की गयी। दशमलव पद्धति की खोज भारत में ही हुई।


क्या आप  जानते है ?????     
१ ) 1 -एकम                
२) 10  -दशक  
३) 100  -सो 
४) 1000  -हज़ार 
५) 10000 - दस हज़ार 
६) 100000 -लाख़ 
७) 1000000- दस लाख़ 
८) 10000000 - करोड़ 
९) 100000000 - दस करोड़ 
१०) 1000000000 -अबज 
११)  10000000000-  दस अबज
१२ ) 100000000000- खर्व 
१३ ) 1000000000000-निखर्व
१४)  10000000000000-महापद्या
१५ ) 100000000000000-शंकु
१६)  1000000000000000-जलदी
१७ ) 10000000000000000-अंत
१८ ) 100000000000000000-मध्य 
१९ ) 1000000000000000000-परार्ध
२० ) 10000000000000000000-शंख
२१ ) 100000000000000000000-दस शंख
२२ ) 1000000000000000000000-रतन
२३ ) 10000000000000000000000-दस रतन
२४ ) 100000000000000000000000-खंड
२५ ) 1000000000000000000000000-दस खंड
२६ ) 10000000000000000000000000-सुघर
२७ ) 100000000000000000000000000-दस सुघर  
२८ ) 1000000000000000000000000000-मन
२९) 10000000000000000000000000000-दस मन
३०) 100000000000000000000000000000-वजि 
३१) 1000000000000000000000000000000-दस वजि 
३२) 10000000000000000000000000000000- रोक  
३३) 100000000000000000000000000000000-दस रोक
३४) 1000000000000000000000000000000000-असंख्य
३५) 10000000000000000000000000000000000-दस असंख्य 
३६) 100000000000000000000000000000000000-नील  
३७) 1000000000000000000000000000000000000-दस नील
३८) 10000000000000000000000000000000000000-पारम
३९) 100000000000000000000000000000000000000-दस पारम    
४०) 1000000000000000000000000000000000000000-देगा
४१) 100000000000000000000000000000000000000000-दस देगा
४२) 100000000000000000000000000000000000000000-खीर  
४३) 1000000000000000000000000000000000000000000-दस खीर
४४) 10000000000000000000000000000000000000000000-परब 
४५) 100000000000000000000000000000000000000000000- दस परब
४६) 1000000000000000000000000000000000000000000000-बलम 
४७) 10000000000000000000000000000000000000000000000-दस बलम

धन्यवाद मित्रों।

जय हिन्द। जय भारत। जय श्री कृष्णा। 



The Importance of the SAVAN month in Hinduism and the Rituals - 2


नमस्कार मित्रों ,
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 
दोस्तों हमने सावन महीने का पौराणिक महत्व तो जाना। लेकिन भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु हमे और चीजों का भी त्याग करना होगा। जैसे की मांस, मदीरा और ऐसी कई अभक्ष्य चीजों का त्याग ज़रूरी है। सावन के महीने में बैंगन नहीं खाना चाहिए। इसमे धार्मिक के साथ साथ वैज्ञानिक कारण भी छिपा है। बरसात यानि वर्षा ऋतु में बैंगन में कीड़े लग जाते है। जो कई बार दिखाय नहीं देते। अगर ऐसे बैंगन हम ग्रहण करेंगे तो वह हमारे शरीर को काफ़ी हद तक नुकसान पहोंचा सकते है। वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। 


वही दूसरी चीजें है हरी सब्जियां। उसमे भी कीड़े लगे होते है। वह भी खाने के लिए वर्जित है। सबसे ज्यादा दुरी हमे दूध और दूध से बने पदार्थो से बनानी है। इसका भी वैज्ञानिक एवं धार्मिक कारण है। वर्षा ऋतु में  दूध देने वाले पशु ज्यादातर हरी सब्जियां ही खाते है। ऐसे में ख़राब और कीड़े वाली सब्जिया खाने से उनका दूध भी ख़राब ही बनता है। इसे पिने से हम बिमार बहोत बीमार हो सकते है। अगर दूध पिने की इच्छा हो तो उसे पहले ठीक तरीके से उबाल कर उसे स्वच्छ कपडे से छानकर ही पिए। 

इन सब के त्याग से हमारा शरीर स्वश्थ रहता है। और हमे अच्छा आरोग्य प्रदान होता है। आप भगवान शिव की या आप किसी और भगवान को मानते हो तो उसमें अपना ध्यान लगा सकते है। बरसात की ऋतु में हमारे पाचनतंत्र काफ़ी कमजोर हो जाता है। और हमारे जठर की अग्नि भी मंद हो जाती है। इसलिए हमे भारी खुराख नहीं खाना चाहिए। और इसलिए मांस और मदिरा जैसी अभक्ष्य चीजों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। खासतौर पर हिन्दुओं को मांस और मदिरा से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि इससे अपना धर्म और सेहत दोनों बने रहेंगे। 

धन्यवाद। 

जय हिन्द। जय श्री कृष्णा। 

Tuesday, 25 July 2017

The Importance of the SAVAN month in Hinduism and the Rituals - 1

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

दोस्तों अभी भारत में सनातन हिन्दू धर्म का पवित्र  महीना सावन चल रहा है।  आप लोगभी जो हिन्दू संप्रदाय से ताल्लुक रखते है। वह इन सावन के महीने में विशेष भक्ति जैसे की जप , तप , उपवास , कीर्तन आराधना , जैसी विशेष उपाय करते और भगवान के प्रति अपनी भक्ति अदा करते है। सावन के महीने में विशेष भगवान शिव की पूजा -अर्चना की जाती है। उन्हें अलग अलग उपचारो से रिझाने का प्रयास समस्त भक्तगण करते है। आज हम सावन मास (मंथ)  के उस माहात्म्य को जानेंगे। 
हमारे हिन्दू सनातन धर्म के शास्त्रों ,  पुराणों और वेदो में बहोत रसप्रद रहस्य से भरे है। शिवपुराण में समुद्रमंथन का प्रसंग आता है। जब समुद्र मंथन हुआ ,उसमें अमृत और विष उत्पन्न हुआ। अमृत को देवताओं द्वारा ग्रहण किया गया और भगवान शिव शंकर महादेव  ने विष ग्रहण किया। 

सावन का महीना हिन्दू धर्म में काफ़ी महत्व रखता है। सावन के महीने से जुडी कई बातों का विवरण हमारे हिन्दू ग्रंथो में प्राप्त है. 

एक कथा के अनुसार के अनुसार ऋषि मृक्रंद और उनकी पत्नी मरुधमति पुत्र प्राप्ति के लिए शिव आराधना की। बड़ी कठिन तपस्या के पश्चात भगवान शिव प्रसन्न हुए , लेकिन उन्होंने पुत्र देनेके साथ एक शर्त भी रखीं और कहा की उन्हें बुद्धिमान बालक चाहिए या मंदबुद्धि , अगर वह बुद्धिमान बालक का चयन करते है तो उसकी आयु  बहोत कम होगी और  कुमार अवस्था में ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। अगर मंदबुद्धि बालक को चुनेंगे तो वह लम्बा आयुष्य प्राप्त करेगा। 

पति पत्नी दोनों बुद्धिमान बालक का चयन करते है। वह धीरे धीरे समय पसार होता है । जब यह बालक  बड़ा होता है तो उसे इस पूरी घटना के बारे में बताते है। वह बालक इस श्राप से मुक्त होने के लिए घोर कठिन तपस्या करता है। इस दौरान उसके आयु की अवधि कम होती है और उसकी मृत्यु का समय नजदीक आता है। जब यमदूत उन्हें लेने के लिए आते है तो उसकी इस घोर तपस्या के प्रभाव से कोई इसे छू नहीं पाता। अंत में पराजित होकर खुद यमराज वह बालक की आत्मा को लेने आते है। 

यमराज अपने शस्त्र से जैसे ही उसकी आत्मा को पकड़ना चाहा वह शस्त्र शिवलिंग पे जा गिरा। इससे शिवजी बड़े क्रोधित होते है। और यमराज को वहाँ से चले जाने का आदेश देते है। उस बालक की तपस्या पुरे एक महीने तक चलती है। उस  समयसे  इस महीने को सावन के महीने से जाना जाता है। यह बालक बुद्धिमान होता है। जिन्हे मार्कंड़य ऋषि के नाम से जाना जाता है। 

तो दोस्तों इस कथा के अनुसार हर कोई व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष अगर सच्चे मन से शिवजी की आराधना करेगा मृत्यु भी उससे १०० किलोमीटर दूर ही रहेगी। अर्थात वह आयुष्मान होगा।

दोस्तों इसके नेक्स्ट आर्टिकल में हम इस भक्ति से होने वाले लाभ और विज्ञान से जुडी बातों के बारेमे जानेंगे।
धन्यावद। खुश रहे। हमेशा हसते रहे। हमारे पाठकों को सावन महीने की शुभकामनाए। भगवान शिव आपकी हर मनोकामना पूर्ण करे वही उनके चरणों में प्राथना।

जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

Discussion about Reincarnation and Deeds Principle in Hinduism , Islam And Christianity

नमस्कार मित्रों , 
जय श्री कृष्णा।  हर हर महादेव 

दोस्तों हम कई दिनों से पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत के बारे में महाचर्चा कर रहे है। यह विषय इतना विशाल है की यह चर्चा का अंत सुनिश्चित करना बड़ा ही कठिन है। मेरे भाईओ और बहेनो एवं मित्रों आज हम पुनर्जन्म के सन्दर्भ में इस्लाम और ख्रिस्ती सम्प्रदायों में उठे सवालों के बारे में बात करेंगे। 

हमने देखा और जैसे की आपको बताया था। आज हम बाइबल एवं कुरान के बारे में भी बात करेंगे। बाइबल में एक बड़ा ही रसप्रद प्रसंग आता है।एक ख्रिस्ती लेखिका अपने पुस्तक "Reincarnation is the missing link in the Christianity" में दर्शाया है।   जो कुछ इस तरह है। " इसमें दो जुड़वाँ बच्चों की कहानी है। वह दोनों के नाम क्रमशः जैकोब और इसो है। इसमें दोनों बच्चों के जन्म के बाद भगवान कहते है " मै जैकोब से प्रेम करता हूँ और इसो से नफ़रत करता हूँ , तिरस्कार करता हूँ।  यह दोनों बच्चे बड़े होकर जैकोब सुखी होता है और इसो दुःखी होता है। 

तो एलिज़ाबेथ ने प्रश्न किया है की "यह दोनों एक ही धर्म , कुटुम्ब ,माँ -बाप  और संस्कारो के साथ बड़े हुए है। तो फिर एक बालक सुखी और दूसरा दुखी क्यों ?

ख्रिस्ती पादरीओने कुछ इस तरह उत्तर किया जो सो प्रतिशत गलत है। सुनिए यह कैसी विडम्बना है। 
"पादरी ने कहा की जब उनकी माताने गर्भ धारण किया था उनदिनों वह एक मंदिर से गुज़री और वहाँ मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी। तबही माताके गर्भ में रहे बालक इसो ने माताके उदर में किक मारी। और इसतरह इसो ने मंदिर के प्रति श्रद्धा व्यक्त की। और उसने यह पाप किया। उसके कारण वह दुखी हुआ। "

और "जब उसकी माँ एक चर्च के सामने से गुज़री तभी  बालक जैकोब ने किक मारी। बालक ने चर्च के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। और उसने यह पुण्य किया। जिसकी वजह से वह सुखी हुआ। " 
यह प्रसंग को लिखने के और उनके जवाब को सुनने के बाद लेखिका एलिज़ाबेथ अपने पाठको को प्रश्ना करती है की पादरी का यह जवाब कितने लोगों को सही लगा? कितने लोगों को इसमें तथ्य हो ऐसा प्रतीत हुआ। यह दुनियामें ऐसी बहोत विषमता है। और यह सब विषमताओं का मूलतः कारण आत्मा में छिपा है। माताके उदरमें रहे बालक और बालिका पाप और पुण्य के साथ नहीं जन्म लेते। 

१००० साल पहले orizin नामके तत्वचिंतक हुआ था। जिसने तत्वज्ञान के २००० से ज्यादा पुस्तकों को लिखा। और उन में पुनर्जन्मवाद का निरूपण किया था। वह अपने जीवन में भी कहते रहे की पुनर्जन्म का स्वीकार ही उत्तम उपाय है। 

Hellen tabruno blowseky  नामक फिलॉसोफी सोसाइटी के प्रमुख ने कहा की " मात्र एक ही तत्त्व पुनर्जन्म की घटना से पसार होता है। और पूर्व किये गए पाप पुण्य  कर्म अनुसार आने वाले जन्ममें  भुगतना है। पुनर्जन्म सिद्धांत शुभ अशुभ प्रश्नो का स्पष्टीकरण करता है। और मानवी के जीवन में होनेवाले भयंकर अत्याचारों का खुलाशा देता है। 

और एक बात है जो मेरे दिलों-दिमाग में है। जैसे की कुरान और बाइबल में लिखा है। हर इंसान को सिर्फ एक ही जन्म मिला है क्योंकि यह दोनों धर्म पुनर्जन्म की इजाज़त नहीं देते। यानि की अगर हमने कोई गलती की या छोटा या बड़ा पाप किया।  मृत्यु के बाद हमे जब तक क़यामत नहीं होगी तब  तक कब्र में सोते रहना होगा।  दोस्तों यह में नहीं कह रहा। यह कुरान और बाइबल में लिखा है। इसका मतलब यह हुआ की भगवान ने हमारी गलती को सुधारने का मौका ही नहीं दिया। अगर ऐसा है तोह ऐसा मालुम पड़ता है की भगवान क्या इतने निर्दयी है की हमे सुधरने का एक मौका नहीं देंगे ?

अब यह बात को एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करेंगे।  कुरान और बाइबल के अनुसार हम अगर समझे की अगर एक बालक अभी अभी जन्मा।  वह बस दो मिनट पहले ही इस पृथ्वी पर जन्मा। और दुर्भाग्यवश उसकी  सिर्फ ३० मिनट में मृत्यु हो जाये तो उसे कहाँ जगह मिलेगी ??????

कुरान एवं बाइबल के अनुसार पापी को जहन्नम , और पुण्य करनेवाले को जन्नत नसीब होगी। किन्तु वह बच्चे का क्या करे ???? नाही उसने पुण्य किया है और  पाप भी नहीं किया है। दोस्तों यह सवाल एलिजाबेथ लेखिका ने अपने पुस्तक में किया है। 

और भी सवाल एलिज़ाबेथ ने उठाया है।  जब तक कयामत ना हो , कब्र में पड़े रहने का????

यह तो ऐसा हुआ की जैसे हमने कोई गुनाह किया और अदालत हमे उसकी उसका न्याय १००० साल बाद दे। क्या यह मुमकिन है ??????? आप ही सोचिये।  क्या यह संभव है ???
यह सब बातों से हमे ज्ञात होता ही पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत का स्वीकार ही उत्तम उपाय है। 

दोस्तों इन सब बातों पर आप भी विचार करे। मनन करे।  समझने का प्रयास करे। 

धन्यवाद। 
जय श्री कृष्णा। 

Reincarnation and karma Principle part 6


नमस्कार मित्रों ,

जय  श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 
दोस्तों धन्यवाद आप इसी तरह हमारे आर्टिकल्स को पढ़ते रहिये , और हमारा हौसला बढ़ाते रहिये।  आप से जब भी बात करते है। हमारे विचारों का आप के साथ आदानपदान करते है तो बड़ा ही आनंद और उल्लास का अनुभव होता है। दोस्तों हम कई दिनों से पुनर्जन्म और कर्म से जुडी हर कड़िओ को आपके सामने प्रस्तुत कर रहे है। इनके बारे मै गहन विचारविमर्श कर रहे है।  आज उन्ही विषय को आगे बढ़ाते हुए जैसे की आप से कल बात हुई थी।  पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानने से होने वाले लाभ के बारेमे  आज हम चर्चा करेंगे। 
कल हमने देखा की पुनर्जन्म में ना मानने की वजह से ही आतंकवाद , भ्र्ष्टाचार ,चोरी , बलात्कार जैसे गुनाहीत प्रवृतिओं में गिरे हुए है। और यह एक दयनीय समस्या है। इसका बस एक ही उपाय है , और वह है पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत में श्रद्धा रखना , विश्वास रखना। 

अब आप प्रश्न करेंगे की ऐसा क्यों तो दोस्तों इसका एक ही कारण है। सुनिए। पढ़िए। :)

अगर यह दोनों सिद्धांतो में दृढ विश्वास किया जाये (पुनर्जन्म और कर्म ) तो यह सारे दुराचार ख़त्म हो जाये। क्योंकि अगर हम आज ख़राब कर्म करेंगे तो इस जन्म याफिर अगले होने वाले जन्म में इसको भोगना ही है। लेकिन दुर्भाग्यवश हम में से कई लोग ऐसे जो कर्म एवं पुनर्जन्म में श्रद्धा नहीं रखते। आज जो आत्महत्या जैसे महान पाप बढ़ रहे है  क्योंकि आज के लोगों में  पुनर्जन्म में विश्वाश नहीं है। जो लोग आत्माहत्या का प्रयास करते है या उसे अंजाम देते है वह यह मान लेते ही की मृत्यु से उनके दुःखों एवं समस्याओ का अंत हो जायेगा। 

दोस्तों आज हर घर में ऐसे प्रश्न है , समस्याए है , दुःख है , तनाव है।  किसी को नौकरी की चिंता है , किसीको बीवी बच्चों की। किसी को गर्लफ्रेंड की चिंता है। और यह समस्याओं को सुल्झाने के लिए मृत्यु को ही परम उपाय मानकर आत्महत्या कर लेते है। 

दोस्तों मेरे भाईओ  और बहनों यह सब करने से पहले यह ज़रूर सोचना की यह बड़ा पाप ही। यह दुनिया के सारे धर्मो में लिखा है। चाहे वह हिन्दू हो, इस्लाम हो , ख्रिस्ती हो या यहूदी हो।  दुनिया का कोई भी धर्म यह करने की इजाज़त नहीं देता। और एक बात यह सब करने से पहले अपने माँ-बाप , अपने दोस्तों और अपने चाहनेवाले के बारे में जरूर सोचना। 

क्योंकि मृत्यु दुःख का अंत नहीं है। और आत्महत्या एक संगीन जुर्म। एवं हमारा अगला जन्म तो निश्चित है। आईये हम इसे एक उत्तम उदाहरण के द्वारा समझने का प्रयास करेंगे। अनुमान लगाइये की किसी व्यक्ति विशेष को २० साल की जैल की सज़ा हुई हो। और वह १० साल सजा काट ने के पश्चात जैल से भाग जाये। तो वह व्यक्ति गुनहगार तो पहले से था और ज्यादा गुनहगार ठहरेगा।और पुलिस उसे कहीं से भी धुंध लाएगी और सरकार उसे और दर्दनाक सजा देगी  क्योंकि उसने जैल से भागने की कोशिस की। अब आप ही बताईये उसने जो पहले गुनाह किया था उसकी सज़ा तो भुगतनी बाकि थी और फिर भी उसने जैलसे भागकर दूसरा गुनाह किया। तो अब उसे और ५ साल की सज़ा को भुगतना होगा। 

ठीक उसी तरह किसी व्यक्ति का अगर ७० साल का आयुष्य विधि ने तय किया है और उसे  अपना ७० साल के आयु को जिना आवश्यक है। अनुमान लगाइये की उसने अपने आयु के ४० वें साल में आत्महत्या की। तो उसके ३० साल आयु को भोगना बाक़ी था। तो अब जब उसका किसी और योनि में  नया जन्म होगा तोह भी उसको यह ३० साल का और ज्यादा भुगतना होगा। क्योंकि पुनर्जन्म के साथ-साथ हमारे कर्म भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते।हमारा प्रारब्ध पिछा नहीं छोड़ता। हमें हमारे गुनाहों की सज़ा मिलेगी ही। अगर यह बात आत्महत्या और अपराध करने वाले व्यक्ति समझ जाये तो यह सारे दुराचार, दुःख की समाप्ति हो जाये।

दोस्तों आपको बताना चाहूंगा UNO के रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ भारत में हर साल २०००००  लोगों ने आत्महत्याएं की। उनमें ५२% युवा वर्ग था। १५ -२९ साल की उम्र के थे। आगे हम बाइबल में आने वाले कुछ रहस्यमय प्रसंग  के बारे में। उनपर उठे सवालों के बारे में बात करेंगे। ख़ुश रहे। धन्यवाद।
जय श्री कृष्णा।



Sunday, 23 July 2017

Reincarnation and karma Principle part 5


नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 
हमने इस विषय के चौथे भाग में  जाना की कई ऐसे लोग है ,जो परधर्मी यानि की हिन्दू ना होकर भी पुनर्जन्म के ऊपर विश्वास रखते। उनके विचारो एवं आदर्शो के बारे मै जाना। आज हम पुनर्जन्म के आखिरी पड़ाव मै है। और इसके बारे मै और जानने का प्रयाश करेंगे। मै आपको बताना चाहूँगा की पुनर्जन्म में विश्वास रखने वाले परधर्मीओ के साथ कैसा बुरा वर्तव किया गया। बात है इटली के गेओनार्दो ब्रूनो जिन्हे १६०० की साल मै जिन्दा जला दिया गया क्योंकि वह ख्रिस्ती धर्म के थे , और पुनर्जन्म मै विश्वास रखते थे।वहाँ के पादरी पुनर्जन्म का स्वीकार नहीं कर रहे थे।  पादरीओ ने उन्हें कहाँ की वह पुनर्जन्म का विचार त्याग दे। लेकिन वह नहीं माने। उनकी राय उनके ही शब्दों मै "मानवी और आत्मा वह कोई आकस्मिक रूप से हुआ मिश्रण नहीं है , वस्तुतः आत्मा एक अनादि तत्त्व है। इसलिए आत्मा कभीभी उत्पन्न नहीं हो सकती। मै मानता हु की आत्मा अमर है , अविनाशी है। "  दूसरे एक ब्रिटिश लेख़क जिनका नाम है स्वांग जेनिन्स कहते है "मानव के मन की अवश्था के पूर्व भी कोई ऐसी अवस्था होगी , जो प्राचीन काल के संतो रखते थे। नर और मादा के सम्बन्ध से आत्मा की उत्पत्ति शक्य नहीं है , नर और मादा सिर्फ आत्मा को रहने का घर यानी शरीर की रचना कर सकते है ,लेकिन वह आत्मा उत्पन्न नहीं कर सकते। " महान  तत्वचिंतक प्लेटो नेभी कहा की "आत्मा अमर है।" इससे एक बात तो तय है की सिर्फ हिन्दू नहीं लेकिन मुस्लिम और ख्रिस्ती धर्म के लोग  पुनर्जन्म में  मानते थे ,और मान रहे है।

देखिये अगर हम सूरज के प्रकाश मै दिन में बाकी तारों को नहीं देख सकते , फिर भी वह तारों का झुंड वहां उपस्थित है। वह तारे वहां नहीं है या उनका अस्तित्व नहीं है ,यह हम नहीं कह सकते। ठीक उसी तरह हमने अपने देह , अपने शरीर की ओझल मै आत्मा का जो नित्य स्वरुप है उन्हें नहीं देख पा रहे है। यह हमारी गलतफैमी है की हमने हमारे देह को ही आत्मा का रूप मान लिया है। 

अब मै आपको जो बताने जाने वाला हु वह अगर आप उस पर गौर फरमाएंगे तो बहोत कुछ ऐसा है जिसके बारे मै हमने पहले सोचा नहीं या फिर सोचना ज़रूरी नहीं समझा। देखिये पुनर्जन्म मै माननेसे बहोत से फ़ायदे ये। जो आपको भी सोचने पर मजबूर कर देंगे। मै बताना चाहूंगा की आज जोभी कोई दुःखी है या सुखी है , आज जो भी आतंकवाद है , या ऐसे कई संगीन अपराध करने वाले लोग है , जैसे की चोरी , लूट , बलात्कार , आत्महत्या ,और दुनिया के सारे देशों की समस्या जैसे की भ्रस्टाचार और आतंकवाद यह सभी अपराध और उपाधि इसी लिए है क्योंकि पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत को स्वीकारा नहीं है। उसमे श्रद्धा नहीं है।  दोस्तों यह आपको बड़ा ही अजीब लगेगा की यह मै क्या बोल रहा हु , क्या कह रहा हूँ। लेकिन दोस्तों यही एक सच है। परम सत्य है। आपके मनमें काफ़ी सवाल उठ रहे होंगे। हम आपको उसकाभी अर्थपूर्ण और सत्य उत्तर देंगे। 

क्योंकि यह हमारा उत्तरदायित्व बनता है की ज्यादा से ज्यादा सही और सटीक जानकारी आप तक पहोंचे। आपको यह जवाब मेरे अगले आर्टिकल मै जरूर मिलेंगे।  दोस्तों अब हमे रज़ा दे। खुश रहे। 

जय हिन्द। जय श्री कृष्णा। 

Saturday, 22 July 2017

Reincarnation and karma Principle part 4


नमस्कार मित्रों ,

जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

जैसाकि हमने आप से वादा किया था।  आज हम उन लोगोंके के बारे मै जानेंगे जो हिन्दुधर्म से ताल्लुक़ात ना रखते हुए भी पुनर्जन्म मै मानते है। हिन्दू तत्वज्ञान को जिन्होंने सरआंखों पर रखा है। और उसमे विश्वास रखते है। वह कोई ऐसे चीला-चालू लोग नहीं है। बल्कि उनमेंसे कोई वैज्ञानिक है , तत्वचिंतक है , हॉवर्ड और ऑक्सफ़ोर्ड जैसी टॉप की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है। यह लोग हिन्दू ना होने के बावजूद पुनर्जन्म मै विश्वास रखते है।  यह सभी बाते मै नहीं बोल रहा लेकिन " विज्ञान अध्यात्म की ओर" यह पुस्तक मै ऐसे लोगों के निवेदनो और उनके पुनर्जन्म के विश्वाश को दर्शाया है। उनके निवेदनों को आपके सामने प्रस्तुत करता हु। 

टोरंटो जनरल हॉस्प्टिटल के हार्ट स्पेशलिस्ट डिपार्टमेंट के चीफ डॉक्टर विल फेड , उन्होंने कहा की उनके हार्ट स्पेशलिस्ट के ३२ सालों के दीर्घ अनुभव के बाद वह कहते है की मुझे आत्मा के अस्तित्व के कोई संदेह नहीं है। और वह मानते है  रहस्य उद्घटित करके आत्मा क्या है , वह जानने का समय हो गया है। आत्मा का स्वरुप क्या है वह जान लेनेकी जरूर है। 

दूसरे बड़े ही महान डॉक्टर J. B. Rhine कहते है , विज्ञान वह नहीं बता सकता की मानव मन वास्तव मै क्या है और हमारे दिमाग़ के साथ किस प्रकार काम करता है।  कोई भी वैज्ञानिक चेतना का उद्भव और उत्पति के बारे मै जानने का दम्भ भी नहीं कर सकता। 

एक महान वैज्ञानिक जिनका नाम है थॉमस ऑस्टेली, कहते है  की " मुझे यह साफ साफ प्रतीत होता है  की पुरे विश्व मै तीसरी चीज़ एक चेतना है।  और चेतना कोई उत्पन्न हुई विषयवस्तु नहीं है। किन्तु देह से पृथक एक चेतना है। 

हॉवर्ड यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान के प्रोफ़ेसर  D P. GUPE उन्होंने सभी तारणों के साथ समझाया है की "कुदरत के नियमों के बारे हम ही जानते है ,और जीवन मै उसीसे पूर्णतः स्पष्टीकरण कर सकेंगे ऐसी पूर्ववत धारणा को अगर हम रुढिचुस्त होकर बने रहेंगे तोह हम हमारी जात को पूर्णतः अँधेरे मै धकेल देंगे। किन्तु अगर हम भारत के वैदिक परंपरा में समाविष्ट किये गए विचारों के प्रति खुला मन रखनेसे आधुनिक वैज्ञानिक उनके अपने अभ्यास के विषयों मै एक नए दृष्टिकोण के सन्दर्भ मै देख सकेंगे। और सारे वैज्ञानिक विज्ञान के विषय मै जो भी प्रयत्न कर रहे है , वह सत्य पुरवार होंगे। 

दोस्तों आज हमने जाना की सिर्फ हिन्दू ही नहीं लेकिन विज्ञान एवं परधर्मी भी पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानने मै विवश है। आत्मा का स्वरुप नित्य है।  चेतन है। दोस्तों नेक्स्ट आर्टिकल मै हम देखेंगे की जो लोग भूतकाल मै पुनर्जन्म मै मानते थे , और परधर्मी यानि ख्रिस्ती संप्रदाय से थे। उनके ऊपर किस प्रकार अत्याचार गुजारा गया। 
दोस्तों फिर नयी सोच -विचार के साथ मुलाक़ात होगी। धन्यवाद। 
जय हिन्द। जय श्री कृष्णा। 



Friday, 21 July 2017

Reincarnation and karma Principle part 3

नमस्कार मित्रों ,
जय श्री कृष्ण। हर हर महादेव। 
दोस्तों पिछले दो आर्टिकल से हम पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत के बारे में बात कर रहे है , समझ रहे है , इनके ऊपर बड़ी चर्चा की है।  दोस्तों यह सारे सिद्धांत हमारे ऋषि मुनिओ द्वारा दी गयी अमूल्य भेंट है। आज यह सिद्धांत के साथ साथ हमारे ऋषिओ ने किये नए संशोधनों और खोजो के बारे मै भी जानकारी प्राप्त करेंगे। मै आपको बताना चाहूंगा की आज का जो अंग्रेजी कलैण्डर है , और सदिओं से जो हमारा हिन्दू पञ्चांग है। उनमे दर्शाई गयी सारी खगोलीय घटनाए जैसे की , पूनम का चाँद हो, अमावस्या हो , चंद्रग्रहण  और सूर्यग्रहण ये सारी घटनाओ को हमारे हिन्दू कलैंडर मै वर्णन किया गया है। यह सभी हमारे ज्योतिष विद्या का ही परिणाम है। आज जो वैज्ञानिक अपने मैथमेटिकल फार्मूला के द्वारा ग्रहो , नक्षत्रो एवं सूर्यग्रहण , चंद्रग्रहण के बारे में उस घटना के घटित होने के दो दिन पहले बताते है।  वह हमारे ऋषिओ ने सदिओं से ज्योतिष शास्त्र के आधार से घर बैठे ढूंढ लिया था। आज दुनिया के कई सारे वैज्ञानिक इस तारण पर आये है की हर वैज्ञानिक प्रश्नो के समाधान हिन्दू तत्वज्ञान और हिन्दू शास्त्रों में छिपा है। किन्तु आजकी यह युवा पीढ़ी बहोत ही बौद्धिक और तार्किक हो गयी है। वह ख़ुद सवाल खड़ा करती है की स्वर्ग -नरक किसने देखा , पाप और पुण्य किसने देखा , आत्मा किसने देखी। आत्मा का ज्ञान क्यों जरुरी है। लेकिन यह बात उदाहरण के माध्यम समझेंगे। अगर कोई गाड़ी रास्ते से गुजर रही हो , और  पुरे स्पीड से चल रही हो फिर भी उसे किस दिशा मै सफ़र तय करना है , वह उसका चालक ही बता सकता है। ठीक उसी तरह हमारे शरीर को चलाने के वास्ते ऐसे चेतन तत्त्व यानी की आत्मा की जरुरत है। जब आत्मा शरीर से निकलती है , उसके बाद शरीर नाशवंत हो जाता है। उसका मतलब आत्मा अविनाशी है और देह नाशवंत। और दोनों ही एक दूसरे से भिन्न है। ऐसी बहोत सी चीज़े है हमारे सनातन धर्म मै जो हमे हिन्दू होने का गर्व प्रदान करती है। इससे  यह प्रतीत होता है की जो भी हमारे धर्म मै लिखा गया है।  वह आज नहीं तो कल सोलह आने सच होने वाला है। दोस्तों अब बात करते है पुनर्जन्म की जिसका आप बेसब्र होकर जानना चाहते है।  आपको बताना चाहूँगा की भले ही इस्लाम और ख्रीष्टी दोनों धर्म मै पुनर्जन्म की परिकल्पना ना की गयी हो। फिर भी  ख्रिस्ती संप्रदाय के कई ऐसे लोग है , जो पुनर्जन्म एवं आत्मा को अनादि मानते है। और ऐसे कई वैज्ञानिक , अध्यापक , और तत्वचिंतक जो ख्रिस्ती है , पश्चिमी संस्कृति से जुड़े हुए है फिर भी पुनर्जन्म का स्वीकार करते है। और उन सभी लोगों जिन्होंने यह माना है। उनके बारे मै हम नेक्स्ट आर्टिकल मै जानेंगे।
धन्यवाद। शुभ रात्रि।  जय श्री कृष्णा।  

Reincarnation and karma Principle part 2

नमस्कार मित्रों ,
शुभ सांज ,

आप सभीको मेरा सादर प्रणाम। जय श्री कृष्णा। 
दोस्तों जैसे की हमने दिनांक २० वाले आर्टिकल मै पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत के बारे में जाना।  आज  वह बात को आगे दोहराएंगे। पुनर्जन्म के सिद्धांत को समजने का प्रयत्न करेंगे। हमने देखा की सिर्फ  हिन्दू सनातन  धर्म मै ही पुनर्जन्म की स्वीकृति है। इस्लाम , यहूदी और ख्रिस्ती धर्म मै पुनर्जन्म के सिद्धांत को नकारा है। यह सभी सनाटिक धर्मो में कहा गया है की आत्मा जन्म लेती है। आत्मा उत्पन्न हुई है ऐसा उन लोगो का मानना है। इन सभी धर्मो के मुताबिक़ जब इंसान इस धरा (पृथ्वी )पर जन्म धारण करता है , वह उसका अंतिम जन्म है , और मृत्यु होने के पश्चात उसका शरीर एक कब्र मै दफ़न कर दिया जाये।  और जब क़यामत का दिन आएगा तब अल्लाह उन सभी को कब्र से बहार निकालके उनके कर्म के हिसाब से जन्नत एवं जहन्नम नसीब कराएँगे। यह मै नहीं कह रहा।  यह कुराने शरीफ में बयां किया गया है। इसके मुताबिक यह प्रतीत होता है की वह धर्मो मै पुनर्जन्म की स्वीकृति नहीं है। यह उनकी मान्यता है ,उनको मुबारक। किन्तु हम  हमारे सनातन धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को साबित करते हुए वैज्ञानिक एवं दार्शनिक परिमाणों द्वारा समझने का प्रयत्न करेंगे। पुनर्जन्म के सिद्धांत समझने के पूर्व हमे देह और आत्मा दोनों एकदूजे से भिन्न है वह  समझना होगा। किन्तु आप को यह प्रश्न भी होता होगा, अगर आत्मा और देह भिन्न है तोह आत्मा दिखाय क्यों नहीं देती। परंतु दोस्तों मै आपको बताना चाहूँगा की इस सृष्टि मै ऐसी अनेकों रचनाए है जिसे हम देखने के लिए असमर्थ है। यह मै आपको उदहारण के द्वारा समझाने का प्रयत्न करूँगा। जैसे की हमारी आँखों की भौं हमसे इतनी नज़दीक होने के बावजूद बिना आयने नहीं दिखाय पड़ती। और ठीक उसी तरह ब्रह्माण्ड मै रहे ग्रहों को और दूसरी खगोलीय घटनाओं को बिना टेलिस्कोप नहीं निहारा जा सकता। जैसे सूर्य के प्रकाश मै बाक़ी सब तारे जो आकाश मै स्थित है  हमे नहीं दिखाय देते। उसी तरह आत्मा को देखने के लिए दिव्य दृष्टि की आवश्यक्ता है। आत्मा वह चेतना है जिसे ब्रह्मरुप होकर ही महसूस किया जा सकता है। ब्रह्मरुप यानी देह और आत्मा को भिन्न समझना। दोस्तों और भी कहीं सारे रहस्य पुनर्जन्म से जुड़े है। हमारे शास्त्रों मै जो कुछ लिखा गया वह एकदम सतिक है। परम सत्य है। हमारे शास्त्र तीनों कालो मै सत्य है , यानि त्रिकालाबाधित है , भूतकाल , भविष्य एवं वर्तमान काल मै भी उसे नहीं बदला जा सकता। आगे नए आर्टिकल मै यहीं बातों को विस्तार से जानेंगे। आप यह पढ़कर हमारा भी होंसला बढ़ाये रहे। अपने कमैंट्स के ज़रिये आपका सुझाव लिख भेजे। धन्यवाद।
जय हिन्द।  जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।

Thursday, 20 July 2017

Reincarnation and karma Principle Part 1

नमस्कार मित्रों , 
जय श्री कृष्णा।  
सर्व प्रथम आप हमारा ब्लॉग पढ़कर हमारा होसला बढ़ा रहे है। इस के लिए मै आप सभी दोस्तों को दिल से  धन्यवाद करते है।  दोस्तों कल हमने प्लासी के युद्ध और अंग्रेजो के आये राज के बारे मै जाना। टी=वह कहानी भी आगे दोहराएंगे। किन्तु आज हम कुछ और बड़ी ही रसप्रद एवं रोमांच से भरी बात करने जा रहा हु। हमारे  हिन्दू धर्म की बहोत सी विशेस्ताए है। ऐसे कई सारे और बड़े गूढ़ सिद्धांत से भरपूर है हमारे हिन्दू शास्त्र। ऐसे ही दो बड़े सिद्धांत है जिनके बारे मै हम आज जानने की कोशिश करेंगे। वह है पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत। यह दोनों ही सिद्धांत को हमारे  हिन्दू धर्म में मान्यता दी गई है। पुनर्जन्म एवं कर्म सिद्धांत दोनों ही एक दूसरे से संल्गन है। दोनों ही एक दूसरे पर निर्भर करते है। अगर इन दोनों सिद्धांतो के बारे में लिखा जाये , इसके ऊपर चर्चा की जाये तो यह इतना लम्बा विषय है की  घंटो लग जाय इसके बारे मै जानने और समझने मै। अभी यह समझने का प्रयत्न करेंगे की पुनर्जन्म के सिद्धांत क्या है , और उसे मानने की जरुरत क्यों है। पुनर्जन्म की व्याख्या को समझने से पहले हमे जन्म एवं मृत्यु के बारे मै जानना अति आवश्यक है।   क्या है जन्म ? इसकी व्याख्या हम इस प्रकार कर सकते है, जन्म यानि स्थूल देह का योग , जिव एवं आत्मा का योग। यानि माता के गर्भ से बालक का उतपन्न होना वह जन्म है। इसी तरह हर मादा से अपने बच्चे का उत्पन्न होना उसे हम जन्म कहेंगें। उसी तरह मृत्यु का मतलब देह और आत्मा दोनों का अलग होना , बिछड़ना है। और इससे ही हमे पुनर्जन्म का सिद्धांत प्राप्त होता है। हमारी भारतीय संस्कृती एवं परंपरा मै खासकर हमारे सनातन हिन्दू धर्म और वैदिक परम्परा मै , हमारे धर्म शास्त्रों मै पुनर्जन्म की बात कही गयी है। हमे समझाया गया है। पुरे विश्व मै कई धर्म हुए , हमारे सनातन हिन्दू धर्म मै भी बहोत से धर्म एवं संप्रदाय हुए , चाहे वह बौद्ध , जैन , और सनातन धर्म मै पुनर्जन्म की स्वीकृति मिली है। हिन्दू धर्म मै तीन बड़े संप्रदाय है शैव , वैष्णव एवं शाक्त संप्रदाय। शैव यानि भगवान शिव की अर्चना करने वाले , वैष्णव यानि भगवान विष्णु एवं उनके अवतारों मै मानने वाले। और शाक्त संप्रदाय यानि माँ शक्ति (हिन्दू देविओ मै ) श्रद्धा रखने वाले।इन सभी सम्प्रदायों मै पुनर्जन्म की पुष्टि की गयी है।  उसके आलावा कई सारे भारतीय आचार्यो ने अपने तत्वज्ञान मै पुनर्जन्म को स्वीकार किया , चाहे वह शंकराचार्य का अद्वैतवाद हो, रामानुजाचार्य का विश्ष्ट अद्वैतवाद हो, माधवाचार्य का द्वैतवाद हो, निम्बार्काचार्य का द्वैत-अद्वैतवाद हो  या फिर वलभाचार्य का शुद्ध अद्वैतवाद हो। और शांख्य ,योग , न्याय जैसे तात्विक चर्चाओ  मै भी पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्वीकारा है। सराहना की गई है। सिर्फ सनाटिक रिलिजन मै (ख्रिस्ती , इस्लाम और यहूदी धर्म मै )पुनर्जन्म की मान्यता एवं सिद्धांत को नकारा गया है। अब ये क्यों नकारा गया। एवं यह पुनर्जन्म की स्वीकृति हमारे सनातन धर्म मै क्यों है यह सभी बातें हम आगे वाले प्रकरण मै करेंगे।  इंतजार करे। और आपके सूचन और सुझाव हमे लिख भेजे। अगर यह जानकारी आपको पसंद आये तो उसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। धन्यवाद। 
जय हिन्द। जय श्री कृष्णा। 

Wednesday, 19 July 2017

How India became Slave by British Rule

नमस्कार मित्रों ,
शुभ सांज ,

दोस्तों आपका प्यार हमे आपकी और खिंच लाता है। आप ऐसे ही हमारी इस ब्लॉग को पढ़कर हमारा होंसला बढ़ाते रहे। जैसेकि हमने आप से वादा किया है। पिछली दफ़े हमने महाभारत रामायण एवं हमारे हिन्दू शास्त्रों के बारे मै बड़ी चर्चा की। और हमने देखा की किस कदर हम अंग्रेजो के गुलाम हुए। इस दुःखदायी घटना के बारे मै हम विस्तार से जानेगे। बात है उन दिनों की जब भारत कई देशी रियासतों में बता हुआ था। यह  अखंड राष्ट्र कई रजवाड़े और सल्तनत में घिरा हुआ था। पहले भारत पर  मुघलो , मोंगलो एवं आरबो के आक्रमण हुए। वह भी इस भारत को लूटने एवं अपने इस्लाम धर्म के फैलावे के लिए ही आये थे। इस मुघल एवं इस्लामी सल्तनत के बारे मै भी किसी और दिन बड़ीचर्चा करेंगे , लेकिन आज हमे भारत कैसे अंग्रेजो का गुलाम  हुआ इसके बारे मै विस्तार से बात करेंगे।  बात है उन दिनों की जब बंगाल मै मिर्ज़ा मुहम्मद सिराज उद्दुल्लाह (कार्यकाल १७३३ -२ जुलाई १७५७ ) का शासन था। सिराज उदुल्लाह बंगाल मै राज करनेवाला अंतिम सुल्तान हुआ। उसके शासन के अंत के साथ ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का  शाशन बंगाल एवं सारे दक्षिण एशिया पर लागू हुआ। सिराज  २३ साल की उम्र मै उसके दादा अलीवर्दी खान ने अप्रैल १७५६ ने नवाब के रूप मै घोषित किया। नवाब के सेनापति मीर जाफर ने २३ जून १७५७ को प्लासी के युद्ध के दौरान अपने शस्त्र दाल दिए।पलासी (या पलाशि) की लड़ाई को व्यापक रूप से उपमहाद्वीप के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है, और अंतिम ब्रिटिश वर्चस्व के मार्ग पर खुलता है। सिराज-उद-दौलह की कलकत्ता की विजय के बाद, अंग्रेजों ने किले की वापसी के लिए मद्रास से ताजा सैनिक भेजे और हमले का बदला लिया। और नवाब के साथ धोखा किया। रॉबर्ट क्लाइव के तहत हमला कर दिया गया। और नवाब को परास्त कर दिया। बंगाल का प्रशाशन ईस्ट इंडिया कम्पनीके हाथों मै चला गया। बाद मै उस गद्दार मीर जाफर जिसके साथ ३०० यूरो देने और बंगाल के नवाब बनाने का वादा किया था। उसकी  भी धोखे से अंग्रेज द्वारा हत्या कर दी गई। उस तरह ऐसी गन्दी कूट निति से अंग्रेजो ने अपने शाशन का विस्तार किया। अंग्रेजो का उदेश्य सिर्फ व्यापर करना और हम पर शाशन करना नहीं था। बल्कि हमारे देश मै रहे हिन्दुओ का  धर्म परिवर्तन करवाना ही उनका सबसे नीच आशय था। किन्तु उनके शाशन के प्रथम चरण मै हिन्दुओं का इस तरह धर्म परिवर्तन करना बड़ा ही कठिन  था। क्योकि हमारे हिन्दू अपने वेद , शास्त्रों मे पूर्ण विश्वाश एवं श्रद्धा रखते थे। आगे की पूरी कहानी हम विस्तार से जानेंगे की कैसे नुस्खे अपनाकर अंग्रेजो ने हम हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन करवाया। और कैसे अत्याचार हम पे गुजारे। अपने इस दोस्त को रजामंदी दे। खुश रहे। जय हिन्द। जय भारत। जय श्री कृष्णा।

Tuesday, 18 July 2017

Introduction to Hinduism

नमस्कार मित्रों ,
हमारे सभी पाठको को सुप्रभात , जय श्री कृष्णा। 
आज के इस शुभ  दिन के साथ ही हमारे जीवन मै भी सूर्योदय हुआ है। एक सूर्य की तरह ज्ञान की प्रकाशपूंज हमारे जीवन मै हुआ है। कल हमने रामायण और भगवान राम के बारे में देखा, पढ़ा ,और उन के अस्तित्व के ऊपर उठने वाले सवालो के बारे मै भी जानने का प्रयत्न किया एवं चर्चा की। आज हम ऐसी ही चर्चा हमारे महान ग्रन्थ महाभारत के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। महाभारत एक महाकाव्य हे, इसे भगवन वेदव्यास  जी ने लिखा था  सँकलित किया था । जिसे भी अंग्रेजो द्वारा एक कल्प्ति और कभी ना होने वाली घटनांओं मै सामिल कर लिया गया। भगवान राम की तरह ही भगवन श्री कृष्णा के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े किये गए। जैसे की बकासुर बाणासुर और हरिण्यकश्यप जैसे असुर हुए होंगे ? अगर भगवान श्री कृष्णा मथुरा , और द्वारिका नगरी जो सुवर्ण की बनी हुई थी। जिसका समुद्र  में  जलप्लवान होने से विनाश हुआ है तो वह कहा है। ऐसे बेदुनियाद सवालों को हमारे भारतीयों एवं हिन्दू के सामने लेकर उन्हें इसकदर गुमराह किया गया। और हम भी उनके  इस  घटिया सवालों के बारे मै सोचने पर विवश हो गए। क्योंकि दुर्भाग्य की बात यह है की हम भारतीयों ने खास कर हिंदुओ ने , हमारे पुराणों , वेदो , रामायण ,महाभारत जैसे महानतम शाश्त्रो के बारे मै उसे खुद पढ़ने मै कटेहि पढ़ने की उनके बारे मै सच जानने की कोशिश ही नहीं की। जो हमे पढ़ाया गया , सुनाया गया और दिखाया गया बस उसे ही हमने जीवन का अंतिम सत्य मान लिया गया। लेकिन इसमें भी हम हिन्दुओ की कोई गलती नहीं है। क्योकि जब हमारे यहाँ अंग्रेज आये और पुरे भारतवर्ष को गुलाम बनाया गया। तब अंग्रेजो के दो ही बड़ी महच्छाए थी। एक वह भारत मै व्यापर का बहाना बनाकर इस सुवर्ण चिड़िया को लूटने की और दूसरी इस अखंड भारतवर्ष को  तोड़ने की, और अपने क्रिश्चनिटी को पुरे भारतवर्ष को फ़ैलाने ,एवं हमारी एकता ,अखंडता को तोड़ने की। वही बड़ी विडम्बना है की वह उन दिनों इस षड्यंत्र मै सफल हुए। क्यों की इसी देश के गद्दारों ने एक तुच्छ शाहन पाने की लालच मै और ३०० मिलियन यूरो के लिए  , बंगाल के बक्शर के युद्ध मै सिराजदिल्लाह के सेनापति मीर जाफर  ने अपने ही राजा के साथ गद्दारी की, उन दिनों एक ऐसा प्रचलन था ,हमारे राजा को बिच की अगर युद्ध मै सेनापति मीर जाफर ने अपने हथियार ,शस्त्र  डाल दे।  और सामने वाले राजा विजय घोषित किया जाता था।  उन दिनों सिराजदिल्लाह के साथ भी कुछ  ऐसी ही दिल दहला देने वाली घटना घटित हुई। सिराजदिल्लाह के पास अठराह हज़ार सैनिकों की एक शशक्त सैना थी। पर उसके इस गद्दार सेनापतीने हथियार दाल दिए। और सिर्फ १५०  अंग्रेज सैनिको के सामने हार मान ली गयी। (इस बड़ी दुःखद  घटना  को हम विस्तार से देखेंग ) और तबसे आज तक हम उन्ही के गुलाम बने हुए है। यह बात कदाचित आप को अजीब लगे की हमारा देश तो १५ अगस्त  १९४७  को आज़ाद घोषित है फिर आज हम भारतीयों आज भी गुलाम कैसे। वही जानने के लिए मेरी आगे की पोस्ट का इंतजार करें। अपने दोस्त को रजा दे।  फिर मुलाकात होगी एक नयी सोच के साथ , धन्यवाद। 


Introduction about Hinduism



नमस्कार मित्रो , 
हमारे इस सुवर्ण इतिहास की यात्रा में हमने हमारे वेदो एवं पुराणों के बारे में जाना अब और ऐसे महान ग्रंथों के बारे में जानना है। वह है हमारे दो बड़े महाकाव्य महाभारत और रामायण। यह वो महान ग्रन्थ है जिसने भारतीय संस्कृती एवं उसकी महानतम सभ्यता और शिष्टाचार के ऊपर प्रकाश डाला. जिन्हे यह अंग्रेज और यवनो द्वारा काल्पनिक करार करा दिया गया। और इसे सिर्फ एक काल्पनिक महाकाव्य के रूप में हमारी इस नयी पीढ़ी के सामने प्रस्तुत किया गया। इसमें आश्चर्य और दुर्भाग्य की बात तो तब हुई जब हमने भी इसे काल्पनिक मानने लगे। आज भी कई सारे ऐसे हिन्दू है जो अपने इस महान काव्यों को काल्पनिक मानकरके अपने इस धर्म ग्रंथो के बारे मै अजीब से सवाल खड़े करते है। लेकिन में उन सारे दोस्तों को बताना चाह रहा हु की आज आप हमारे इतिहास के बारे में  जानते है, सुना है याफिर टेलेविज़न पे निहारा है वह मै ऐसा नहीं बोल रहा हु की गलत है लेकिन उसमे बहोत कुछ ऐसा था जो सही तरह से दिखाया नहीं गया और हमारे इतिहास के साथ छेड़खानी करके हमारे सामने लाया गया। ऐसी बहोत सी चीजें थी वह गलत तरीके से सामने आयी और सब तोड़मरोड़ के दिखाया गया। हमे आज जो पाठशाला में हमारे इतिहास के बारे में पढ़ाया गया है और पढ़ाया जाता है वह भी कहिनकहि अधूरा सा है। रामायण मै भगवान राम की कथा प्रसंग को भगवान ऋषि वाल्मीकि ने लिखा। इसमें कई सारे प्रसंगो में और भगवान राम के अस्तित्व पर भी कुछ अभागे हिन्दुओ ने सवाल खड़े किये है ,वह बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण बात प्रतित होती है । आज से करीब इक्कीस लाख वर्ष पूर्व भगवन राम इस भारत की विमल एवं पावन भूमि पर अवतरित हुए। जिनके अस्तित्व या होने ना होने पर आज के कुछ पढ़े-लिखे अनपढ़ सवाल खड़े कर रहे है। सवाल जैसे की अगर भगवान राम हुए और अयोध्या में उनका निवास था तोह फिर वहा पुरातत्व विभाग  को  कोई ऐसा महल या बस्ती क्यों नहीं मिली। या ऐसे मृदभंग क्यों नहीं मिले। रामायण में रामसेतु का भी वर्णन आता है। रामसेतु पर भी कई सारे सवाल खड़े किये गए है। जैसेकि कोई बन्दर के जरिये इस महानतम कार्य को कैसे पूर्ण कर योजनों दूर श्रीलंका तक पुल बांध सके।  मेरे एक दोस्त ने तो ऐसा सवाल खड़ा किया की क्या बन्दर इतने पढ़े लिखे थे जो पत्थर पे राम लिखके उन्हें समन्दर में तैर ने के लिए फेंक दे। ऐसे बहोत से सवालों का मुझे अर्थपूर्ण और वैज्ञानिक तथ्यों के साथ आप के साथ चर्चा करनी है। और मुझे उन सब लोगों को जवाब देना है जो हम हिंदुस्तानी को अन्धविशवासी और अनपढ़ मानते है। हम हिन्दू मै भी जो अपने धर्म के प्रति जो अज्ञानता एवं निराशा है उनको भी अपने हिन्दू होने का और एक भारतीय होने का गर्व हो ऐसा हम सब को मिलकर करना है।  और भी बहोत सी बातें है जो आपसे करनी है। आगे के बातो का इंतजार करे। आगे जानने के लिए कल फिर आप से मुलाकात होगी। धन्यवाद। खुश रहे और अपने हिन्दू होने पर गर्व करे। जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। जय भारत 

Monday, 17 July 2017

Introducton about Hinduism

नमस्कार मित्रो ,
 आज बड़े ही खुसी के साथ यह ब्लॉग आप के सामने  लेकर प्रस्तुत हुआ हु।  आज बड़ा गर्व हो रहा है और यह बात भी गर्व लेने जैसी है की हम हिन्दू थे है और रहेंगे।  आज भले ही मोर्डर्न इंडिया की बाते होती हो या फिर मेक इन इंडिया का एक नया अभियान शुरू होआ हो।  आज़ादी के इतने सालों बाद भी देश को एक डेवलपिंग कंट्री ही है ।  किन्तु आपको ज्ञात है की हमारा यह भारत पहले सिर्फ भारत नहीं परन्तु महाभारत या भरतो का देश ऐसा कहा जाता था।  भारत  ऐसी महत्वपूर्ण विशेष्ताओँ से परिपूर्ण था की वह अपने आप में विश्वगुरु था। ऐसा क्या था इस देश में जो पूरी दुनिआ का ध्यान और उनकी नजर सिर्फ हमारे देश यानि हिंदुस्तान , भारत  के ऊपर 
थी। फिर चाहे वह अंग्रेज़ हो , पोर्तुगीस हो, जर्मन्स हो, या फिर यवन हो। इन सब ने कही कहिनकहि हमारे देश में कुछ तो देखा होगा जो यहाँ उन्हें हमारे देश में खींच लाया। भारत के इस सुवर्ण इतिहास के बारे में बहोत कुछ लिखा गया है, समजा गया है , बहोत से लोगोने संसोधन भी किया है लेकिन आज भी वह वह चीज अधूरी प्रतीत होती है क्योंकि आज भी हम हिंदुस्तानी अपने इतिहास के बारे में बहोत कम जानते है। ऐसी बहोत सी चीजें है जो भारत मै आए इस यवनो , अंग्रेजों और हमारे देश मै हुए इन आक्रमण मै और इस पश्चिमी एवं यवनी संस्कृती के दुष्प्रभाव के चलते इन्हे अंग्रेजो और यवनो द्वारा कुचल दिए गया या फिर अपने खरे और सटिक रूप में हमारे सामने प्रसतुत नहीं हुआ और नाही कराया गया। आज जो इतिहास हमे पढ़ाया गया है और पढ़ाया जाता है उन सब मै कुछ ना कुछ कमी जरूर है। आज हमे यही जानने की आवश्यकता है अपने देश अपने उस सुवर्ण इतिहास एवं अपने वह सुवर्ण अतीत के बारे में। आज इसी प्रस्तावना के साथ यह ब्लॉग मेरे पाठकों को समर्पित और लोकार्पण करने जा रहा हु। मुझे तहेदिल से आशा है आप को भी यह रोचक बातें पढ़ने और समझने मै बड़ा ही आनंद होगा। धीरे धीरे मै आपके सामने कुछ अनदेखी बातो एवं प्रसंगो को प्रस्तुत करूंगा जो हमे भारतीय होने का गर्व दिलाएगा । 
आज के दिन  हमारे भारत का जो मूल है , जिसने इस भारतीय संस्कृति की नींव डाली है जो हमारे आदर्श है ,हमारी धरोहर है वही हमारे वेद , पुराण , श्रुति एवं  स्मृति ग्रंथो और ऐसे महान ग्रंथो जिसकी आज के भारतीयों को ख़ास ज़रूरत है। क्योंकि बहोत से मामलों मै ये जाना गया है की आज के हिन्दुओ  अपने वेद पुराण को पढ़ने पढ़ाने की बात तो दूर रही , उन्हें इन पुराणों और वेदो  के नाम तक पता नहीं होता। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है। उसी वजह से आज हम अपने सुवर्ण इतिहास एवं मूल्यों को भूल गए है। 
इसलिए आज के इस महान कार्य आप यह पढ़कर इस सेवाकार्य में अपना यथा शक्ति योगदान दे। और इंटरनेट का फेसबुक, व्हाट्सएप्प और सामाजिक मिडिया का भी सही उपयोग कर अपने जीवन में वह आनंद की फुहार लाये। भारतीय वैदिक संस्कृति के चार महान वेद 
१ ऋग्वेद 
२ सामवेद 
३  यजुर्वेद 
४  अथर्ववेद 
और अठारह पुराण है 
१  ब्रह्मपुराण 
२ पद्मपुराण 
३ विष्णुपुराण 
४  शिवपुराण 
५ भागवतपुराण 
६ नारदपुराण 
७ मार्कण्डेयपुराण 
८ अग्निपुराण 
९  भविष्यपुराण 
१० ब्रह्मवैवत्रपुराण 
११ वराहपुराण 
१२ लिंगपुराण 
१३ स्कंदपुराण 
१४ वामनपुराण 
१५ कूर्मपुराण 
१६ मत्स्यपुराण 
१७ गरुड़पुराण 
१८ ब्रह्मांडपुराण 

आज इस आध्यात्मिक यात्रा का प्रारम्भ है। और भी रोचक बातें अभी करनी बाकि है। हमारे धर्म और संस्कृति पूरी तरह से वैज्ञानिक दृश्टिकोण से परिपूर्ण है। और जो भी हमारे हमारे वेदो पुराणों मै जताया गया है वह सब विज्ञान से जुड़ा था और जुड़ा हुआ है। आज के वैज्ञानिक उसी वेदो पुराणों और हमारे धार्मिक ग्रंथो के आधार पर 
ही आज की  खोजे एवं संसोधन करते आये है।  इससे जुडी हर बातो को वैज्ञानिक परिमाणों एवं तथ्यों के साथ आपके सामने प्रस्तुत हूँगा।  अपने दोस्त को विदा कीजिये। धन्यवाद। 




Doing Hom-Havan Yajna In India ... Why???? What is the Science Behind Doing Yagnas And Havana ??

नमस्कार मित्रों।  SOURCE : GOOGLE  दोस्तों आप को बहोत बहोत धन्यवाद। आप इस तरह हमारे पोस्ट को पढ़ते रहिये और हमे नए आर्टिकल्स लिखने ...