Monday, 21 August 2017

Why Onion And Garlic Are Strictly Prohibited to eat In Hinduism ???

नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।

आज बड़े दिनों बाद आपसे मुलाकात हो रही है। आपसे माफ़ी चाहता हु की इन दीनों में ज्यादा आर्टिकल्स पोस्ट नहीं कर पा रहा। कृपया क्षमा करें।

दोस्तों आज हम बात करने वाले है इस विषय पर , आखिर क्यों हिन्दु सनातन धर्म में अभक्ष्य चीजों का भक्षण ( खाने ) को मना किया गया है। क्यों उसे ग्रहण करने की अनुमति नहीं दी गई है।

ऐसी बहोत सी चीजें है जो अभक्ष्य है फिर भी लोग बड़े आराम से उसका सेवन करते है। हमारे सनातन धर्म में मदिरा , मांस , और सब्जिओं में प्याज़ और लहसुन का सेवन करने के लिए प्रतिबन्ध है। इसके कई कारण हमारे धर्म शास्त्रों में लिखे गए है। हमे समझाया गया है की उसे क्यों ग्रहण नहीं कर सकते।

आज सब लोग जानते हुए भी यह वर्ज्य चीजों का सेवन कर रहे है और इस  नासमझ के वजह से लोग कई बीमारियों से जुज रहे है।

दोस्तों हम जो चीज़ चाहे वह फल , फ़ूल और सब्ज़ी हो उन सब का एक स्वाभाव होता है , प्रकृति होती है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते है वैसा ही हमारे तन ( शरीर ) पर उसका तुरंत असर होता है।

किसी पुराणी कहावत में कहा है " जैसा अन्न वैसा मन "

हम जिस प्रकार का अन्न ग्रहण करते उसके जैसा ही प्रभाव हमारे तन और मन पर पड़ता है। जैसे की सात्विक भोजन करने से सत्व गुण  हमारे मन को  प्रभावित करता है और हमारा मन के विचार भी सात्विक होते है।  हमारे कर्म भी सात्विक और पवित्र रहते है।

सात्विक भोजन जैसे की दूध , घी , आटा , चावल और हरी सब्जियों का सेवन सात्विक है , जो सत्व गुण का वहन हमारे अंदर प्रकट करते है।

रजोगुणी भोजन जैसे की बहोत ज्यादा तीख़े , मसाला युक्त भोजन , और मिठाइयाँ हमारे शरीर में रजोगुण का प्रवाह बढाती ही।

तमोगुणी भोजन जैसे की प्याज़ , लहसुन , मांस , मदिरा आदि का सेवन तमस गुण का प्रवाह बढाती है।  इसके प्रभाव से मनुष्य का तन और मन कई सारे दोषों और विकारों से युक्त रहता है। इसके साथ साथ वह कई मानसिक एवं शारीरिक रोगों का शिकार बनता है।

प्याज़ , लहसुन और मांस , मदिरा राक्षशी प्रकृति के पदार्थ है इसे भोजन में कभी भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।  इसके सेवन से मनुष्य का जीवन काम , क्रोध , ईर्ष्या जैसे विकारों से भर जाता है। साथ साथ दुःख का भागी होता है।
DON'T EAT SOURCE : GOOGLE SEARCH


दोस्तों इन दिनों में यह अभोज्य चीजों का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए :



श्राद्ध पक्ष में लहसुन प्याज़ और मांस , मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इन दिनों पितरों का श्राद्ध , तर्पण किया जाता है। तर्पण से पितृ तृप्त होते है। जिससे हमारे घर में और कुटुंब में खुशियाँ और सुख बना रहता है। 



लहसुन और प्याज़ के सेवन का असर रक्त में रहने तक मन में काम वासनात्मक विकार उत्पन्न होते है। प्याज़ चबाने से और उसकी  गंध से हमारे  वीर्य की सघनता कम होती है और गतिमानता बढ़ती है। परिणाम स्वरुप वासना बढ़ती है। 


हमारे हिन्दू सनातन धर्म के वेद शास्त्रों में बताया गया है की प्याज , लहसुन जैसी सब्जियां और मांस का ग्रहण हमारे मन में उत्तेजना , जनून और अज्ञानता को बढ़ावा देकर अधाय्तम के मार्ग में भी बाधा उत्पन्न करती है। 


हुमारे यहाँ जैन , बौद्ध और स्वामिनाराय संप्रदाय में भी प्याज़ और लहसुन का ग्रहण नहीं किया जाता।  चीन में रहने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी इन सब्जियों को भोजन में ग्रहण करना पसंद नहीं करते। 



जापान के प्राचीन भोजन के व्यंजनों में प्याज और  लहसुन का उपयोग नहीं किया जाता था। 



दोस्तों इस्लाम में भी प्याज और लहसुन का ग्रहण करके मस्जिद में आने पर रोक लगाया गया है। कुरान की इस आयत ( बुखारी :८५४, ८५५  ) में बताया गया है की प्याज और लहसुन का सेवन कर मस्जिद में न आये। 



जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजि  कहते है की नबी सभी सल्ललाहु अलैहि वसल्ल्म ने फ़रमाया : जो आदमी इस पौधे यानि लहसुन या प्याज़ खाये वह हमारी मस्जिद में न आये। हमसे  दूर रहे। एक बार नबी अलैहि वसल्ल्म के पास सब्जियों से भरी हांड़ी लाई। उसमे कुछ गंध को पाया और पूछा वह क्या है? तब बताया और उस समय लहसुन और प्याज के बारे में यह बताया था। 



दोस्तों धन्यवाद। जय श्री कृष्ण।


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Wednesday, 16 August 2017

How to Defeat Anger ??????????? The Answer is Here.......!!!!!!! - 1

नमस्कार दोस्तों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।
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दोस्तों बड़े दिनों बाद फिर आपसे मुलाकात हुई है। आप सभी को जन्माष्टमी ( बर्थ ऑफ़ लार्ड कृष्णा ) की सुभकामनाए। आप सभी प्रगति की और बढे यही भगवान कृष्णा के चरणों में प्राथना। आप सभी प्यारे पाठकों को धन्यवाद। अभिनन्दन। 

दोस्तों हमारे जीवन में हमारे विकार और दोषों का भी एक अहम् स्थान है। हमारे जीवन में सदगुणों के साथ साथ दुर्गुणों यानि मानस के विकार जैसे की क्रोध , मोह , माया , ईर्ष्या ,काम आदि ने भी हमारे पुरे जीवन पर प्रभाव डाला है। हमे प्रभावित किया है।  

यह सारे विकार न केवल मनुष्य के जीवन के शत्रु है बल्कि यह सभी आदमी को विष के भांति खोख्ला कर देतें है। क्रोध उन में से सबसे बड़ा स्वाभाव दोष है। यह मानव जीवन में काफी उथल - पथल मचा देता है। क्रोधित आदमी कही भी शांति को नहीं पा सकता। वह हमेंशा दुःख और ग्लानि से पीड़ित रहता है। 

दोस्तों आज हम क्रोध से लड़ने की कूंची को लेकर आये है। क्रोध को कैसे रोका जाये इस विषय पर हम गहन चर्चा करेंगे।  

हमारे जीवन में कई ऐसे प्रश्न है , कई बार ऐसा होता है की कोई अगर कुछ गलती करदे , या फिर हमारी गलती होते हुए भी हम उसका अस्वीकार करते हुए किसी और पर यह दोष प्रस्थापित करते है। अपनी गलती पर भी हम किसी औऱ मनुष्य जैसे की हमारे सहाध्यायी हो , अपने माता-पिता हो , भाई -बहन , दोस्त हो उसपर हम क्रोधित हो उठते है। 
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ऐसी परिस्थिति में हमे कैसे क्रोध करने से बचना चाहिए : 

दोस्तों में आपको बताना चाहूंगा अगर आप सही है , आप ने कोई गलती नहीं की तब यह क्रोध आएगा ही नहीं , जब हम गलत होते है फिर भी अपने गर्व और स्वमान को ठेश लगने से हम अपनी गलतियों का अस्वीकार कर क्रोधित हो जाते है। 

फिर भी आपका मन और आत्मा इसे समझने से इंकार कर रही है और आपको लगता है की आप सही है तो 
में आप से बताना चाहूंगा की यह तो वैसे हुआ जैसे आप ही वकील और आप ही जज। अपनी ग़लती का अहसास और स्वीकार से ही क्रोध से बचा जा सकता है। 

क्रोध से दूर रहने के लिए हमेसा शांत मन से विचार करना चाहिए , और अगर किसी को आपसे कार्य करवाना है तो ऐसे ही आदमी को काम सौंपे जो इसमें निपुण हो। ऐसा होने पर कार्य भी अच्छे से पूर्ण होगा। और क्रोधित होने की जरूरत ही नहीं रहेगी। 

दूसरी बात यह की क्रोध को मूल से निकालने के लिए हमेंशा भगवान का नाम स्मरण करना उचित है। एक भगवन ही है जो हमारे मन के विकारों , हमारे दोषों को दूर कर शांति और सुख प्रदान करते है। 

क्रोध मनुष्य का बड़ा ही शत्रु है और यह बीमारी दुनिया के हर देश और मनुष्यजाति में है। यह मनुष्य को कमजोर बनाती है।  यदि आप को बलवान होना है तो क्रोध करने से बचे। 

क्रोध ही सब बिमारिओं का मूल है , क्रोध से हाई ब्लूडप्रेससुर , अश्थामा , हृदय रोग आदि होने की संभावना बढ़ जाती है। 

अगर कोई आपका अपमान करे या अन्याय करे तो इसे सहन करना सिख लीजिये। इसमें हमारी भलाई है। इसलिए किसी भी कारण में हमे क्रोध से दूर रहना चाहिए। अगर अपमान भी सहन कर लिया तो क्रोध का नामोनिशान हमारी जीवन में कही भी नहीं रहेगा।सहन करने की शक्ति से   हमारे आत्मबल  में भी अविश्वसनीय वृद्धि होगी। 

हम सदा ही उन्नति और प्रगति के पथ की ओर बढेंगे। तो दोस्तों आज से हम निर्णय करेंगे की क्रोध से दूर ही रहेंगे। नेक्स्ट आर्टिकल में हम और उपायों के बारे में जानेंगे। 

धन्यावान। 
जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। 


Sunday, 13 August 2017

The Copper - Most adorable and Widely Used Metal in Hindus Worships and Rituals-2

नमस्कार दोस्तों।
जय श्री  कृष्णा। हर हर महादेव।
दोस्तों हम धर्म और ताम्र से जुड़े विज्ञान के विषय पर बात  कर रहे है। ताम्र ऐसी धातु है जो न केवल धर्म किन्तु विज्ञान और आयुर्वेद के साथ जुड़ा हुआ है। और आज तक हम इस प्रथा यह रीती को मानते आये है। आज हम ताम्र के आध्यात्मिक , वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक उपचारों और वास्तुकला में उपयोग से होने वाले लाभों के बारेमें जानेंगे। 

चलिए जानते है इसके स्वास्थ्य सम्बन्धी लाभों  एवं आयुर्वेदिक उपचारों के बारेमें। :

सेहत के लिए पानी अधिक पीना चाहिए यह एक अच्छी बात है। हमे हररोज अपने शरीर के वजन के हिसाब से पानी पीना चाहिए। सामान्यतः हमे दिन में १० से १२ प्याले पानी पीना चाहिए। यह सेहत के लिए अति लाभदायी है। और अगर सुबह उठने के तुरंत ही एक मिनट बाद १ से २ प्याले पानी पीना चाहिए। यह हमारे शरीर को आरोग्य प्रदान करता है। पानी हमेशा गर्म गुनगुना पानी ही पीना चाहिए। 

किन्तु में आपसे बताना चाहूंगा की दोस्तों आप कोनसे पात्र में पानी पिए रहे उसका भी महत्त्व है।   आयुर्वेद में कहा  गया है की ताम्र के पात्र में पानी पीना अति लाभदायी है। इस पानी से कई रोग बिना दवाई लिए ही ठीक हो सकते है। इस पानी से शरीर से झहरिले तत्व और विषाणु बहार निकल जाते है। पानी को करीब ८ घंटे तक ताम्र के पात्र में रखना चाहिए। ताम्र के पात्र में रखा पानी अति लाभकारक है।

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चलिए जानते है लाभों के बारे में ::

थाइरोइड को नियंत्रित करता है :

थाइरॉक्सिन हॉर्मोन्स के असंतुलन से थाइरोइड की बीमारी हो  जाती है। थाइरोइड की  बीमारी में वजन अचानक से बढ़ने या घटने लगता है , अधिक थकान महसूस होता है। ताम्र के पात्र में रखा पानी पिने से थाइरॉक्सिन हॉर्मोन्स में संतुलन होता है। इससे रोग में भी नियंत्रण आता है।

हमेशा रहेंगे जवान :

ज्यादा पानी पिने से शरीर में झुर्रियां नहीं आती। यह बात ठीक है किन्तु अगर आप ताम्र के पात्र में रखे जल का सेवन करेंगे तो चमड़ी में रहा ढीलापन दूर होता है। और त्वचा स्वस्थ रहती है। इससे त्वचामें कांति आती है। और आपकी ब्यूटी भी बढ़ जाती है।

गठिया के रोग में भी लाभ होता है :

गठिया और जोड़ो के दर्द में भी राहत मिलती है। ताम्र के पात्र में रखा पानी पिने से यूरिक एसिड में कमी आती है। जिससे गठिया एवं जोड़ो के दर्द में सूजन के कारण होने वाले दर्द में लाभ मिलता है।

ह्रदय को स्वस्थ रखता है :

ह्रदय की बीमारी और तनाव ग्रसित लोगों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। अगर आप ऐसी समयस्या से उलझ रहे है तो , आप रात को ताम्र के पात्र में पानी रखकर  सुबह  सूर्योदय  पहले  सेवन करले। इससे शरीर  में रक्त का संचार  बढ़ता  है। कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है। जिस  से हृदय की बीमारी  दूर  होती है।

धन्यवाद दोस्तों।  आगे इसके अन्य लाभों के  बारेमें जानेंगे।

जय श्री कृष्णा। जय  हिन्द। 

Friday, 11 August 2017

The Copper - Most adorable and Widely Used Metal in Hindus Worships and Rituals-1

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

दोस्तों आप से यह बात शेयर करके मुझे बड़ा ही गर्व होता है।  आनंद की अनुभूति होती है जब में आपसे एक भारतीय और हिन्दू होने की कई ऐसी बातों को आपके समक्ष लाकर प्रस्तुत करता हु। हमारी हर एक चीज आज विज्ञान को भी मात दे रही है। 

दोस्तों आज आपको में एक ऐसी धातु के बारे में बताने जा रहा हु। जिसकी जड़े हमारी भारतीय परंपरा से हमारी हिन्दू संस्कृति से अनादि समय से जुडी है। और वह है ताम्बा (कॉपर ) , सदियों से हम ताम्बा का उपयोग करते आये है। हमारी हिन्दू संस्कृति की पहचान बनकर उभरी है यह ताम्बा धातु। 

पौराणिक समय से ही हमारे देश में ताम्बा का उपयोग बड़े तौर पर हो रहा है। पौराणिक समय से ही ताम्बा का उपयोग घरेलु बरतन , औजार और खेती के औजार बनाने में भी यह ताम्बा का उपयोग किया जाता था। ताम्बा (कॉपर) न केवल घरेलु उपयोग के लिए बल्कि वह हमारे धार्मिक परंपरा से भी अकबंध जुड़ा हुआ है। ताम्बा का उपयोग हमारे धार्मिक विधि -विधानों , यज्ञ , पूजा इन सब में किया गया है। वास्तुकला में भी कॉपर का बड़ा योगदान रहा है। 
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ताम्र (कॉपर ) प्राचीन आयुर्वेद में भी उपयोग में लिया गया है। ताम्र(कॉपर ) का उपयोग उसकी भष्म बनाकर रोगों के इलाज के लिए उससे औषधि का निर्माण किया जाता था।  

ताम्बे (कॉपर ) का उपयोग हमारे भारतवर्ष में सिंधु सभ्यता से भी पुराना है। और सिद्धू घाटी की सभ्यताके हड़पन संस्कृति कॉपर के  उपयोग का उत्तम उदहारण है। दोस्तों यह हड्डपा संस्कृति आज से ५००० साल पुरानी है। हड़प्पा संस्कृति में  ताम्र के औजारों , बरतन , सिक्के और मूर्तियां भी मिली है। इसके साथ साथ हमे यह भी पता लगता है की भारत में धातु विज्ञान का भी अविष्कार हुआ था। प्राचीन समय में ताम्बे का उपयोग चलनी सिक्कों के रूप में भी किया गया। ताम्बे के सिक्कों को मुद्रा के रूप में अर्थोपार्जन और वस्तु की खरीदी और बिक्री में भी किया गया। 
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भारतीय संस्कृति के ऊपर आक्रमण कर जब मुग़ल , मोगल और अरबी शासन लागु हुए तब उन्होंने भी सुलतान राजाओं  ने अपने नाम से तांबे के मुद्राओं का प्रारब्ध किया था। इसे कर्रंसी के रूप में चलाया गया। 
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प्राचीन भारतीय राजव्यवस्था में जरुरी दस्तावेजों को  सँभालने  के लिए और राजाओं के घोसणापत्रों को भी ताम्रपत्र का उपयोग किया  था।  ताम्रपत्र को मंदिर या किसी ऊँचे  स्तम्भ पर अंकित किया जाता था। और कई जगहों पर उसे जमीन में गाड़ दिया जाता था। जिसे दस्तावेजों की गोपनीयता बनी  रहे। 
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आज  नदिओं  में सिक्के डालने की परंपरा है  वह भी ताम्र (कॉपर ) के सिक्के से जुडी हुई है। ताम्र पानी को को शुद्ध करने  का कार्य करता है। इसलिए प्राचीन समय में लोग पूजा के दर्मियान सिक्कें को को नदी में फेंकते थे। 

दोस्तों नेक्स्ट  आर्टिकल में  हम ताम्र (कॉपर ) के उपयोग से होने वाले लाभ के बारे में जानेंगे। 

धन्यवाद। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 




The Amazing Benefits of The Doing Tilak or Chandalo And Tripund on forehead in Hindu rituals with Scientific Reasons -2

नमस्कार  दोस्तों।
जय श्री  कृष्णा। हर हर महादेव।
दोस्तों  हमने लास्ट आर्टिकल में तिलक एवं त्रिपुंड के  बारे में जाना। आज हम उसको   अपने ललाट पर  लगाने से होने वाले लाभ  के बारे  में बात करेंगे। तिलक में देवताओं  निवास करते है। त्रिपुंड  की हर एक रेखाओं  में देवता का वास है।

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तिलक लगाने  के लिए  उचित मंत्र भी हमारे शास्त्रों  में उपलब्ध है।

केशवानन्न्त गोविन्द बाराह  पुरुषोत्तम। 
पुण्यं यशसीमानुष्यं  तिलक में प्रसीदतु।। 


तिलक लगाने के लाभ : जो आज विज्ञान भी मानने में मजबूर है :


१. तिलक लगाने  से मनुष्य  का व्यक्तित्व  निखर उठता  है। व्यक्तित्व प्रभावशाली हो जाता  है। तिलक  लगाने से मनोवैज्ञानिक असर भी  होता है। इससे आत्मबल और आत्मविश्वास में बढ़त होती है।

२. हमारे  मस्तिष्क में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन  का स्राव संतुलित होता है ,जिससे उदासी दूर  होती है। मनमे उत्साह और आनंद  की भावना प्रकट  होती है।

३. नियमित रूप से तिलक लगाने से मन शांत और एकाग्र रहता है। कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचा जा जा सकता है। इससे तनाव को दूर किया जा सकता है। 

४. इससे सिर दर्द जैसी बिमारिओं से बचा जा सकता है। 

५. हल्दी युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है और हल्दी एंटीबैक्टेरियल होने के कारण रोगों से मुक्ति मिलती है। 

६. धार्मिक मान्यता के अनुसार चन्दन का तिलक करने से पापों से मुक्ति मिलती है। ज्योतिषशास्त्रों के अनुसार इससे ग्रहशांति होती है। 

७. चन्दन का तिलक लगाने से घर में कभीभी अन्न और वस्त्र की कमी नहीं होती। 

दोस्तों तो चलिए आज से हम सभी तिलक लगाने की प्रतिज्ञा लेते है।  और मेरी आपसे विनती है अनुरोध है की आप सब भी तिलक हर रोज लगाए। 

धन्यवाद। जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। 
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Thursday, 10 August 2017

The Amazing Benefits of The Doing Tilak or Chandalo And Tripund on forehead in Hindu rituals with Scientific Reasons -1

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LORD SWAMINARAYAN 
नमस्कार दोस्तों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

दोस्तों पिछले दो दिनों से में आर्टिकल नहीं लिख पाया इसलिए आपसे क्षमा चाहता हुं। मेरे प्यारे पाठकों को धन्यवाद करता हु। दोस्तों आज फिर आपके सामने हमारे हिन्दू सनातन धर्म एवं विज्ञान से जुडी बातों को आप के सामने रख रहा हु। दोस्तों हमारी हिन्दू संस्कृति में तिलक, चांदलो और त्रिपुण्ड को हमारे ललाट पर लगाने की परंपरा सदिओं से अनादि समय से चली आ रही है। आज भी यह प्रथा है लेकिन खेद की बात यह है की हमारे हिंदुओ यह सब चीज़ो में विश्वास नहीं रहा , या फिर इसे अंधश्रद्धा का दावा कर उसे करने से इंकार कर रहे है। जो की गलत है।  कई लोग हिंदू होकर भी तिलक और त्रिपुण्ड करने में शरमाते है। उनको तिलक करना अच्छा नहीं लगता। और आज कल तो ऐसा माहौल है जैसे किसी तिलक और त्रिपुण्ड करे हुए आदमी को कहीं देख लिया तो ऐसे देखते है जैसे कोई आतंकवादी हो। 
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TILAK( U SHAPE) AND CHANDALO(RED MARK)


लेकिन मेरे प्यारे दोस्तों आज इसी गलतफैमी और जो उलझन है उसे सुलझाने के लिए ही यह आर्टिकल आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहा हु। 
यह बात बताने से पहले में आपसे कहना चाहूंगा की दोस्तों हमारे भगवान राम , भगवान श्री कृष्ण , और सभी देवी देवताओं और हमारे ऋषि परंपरा में भी तिलक और त्रिपुण्ड का एक अनेरा महत्व था और है। श्री पूर्ण पुरुषोत्तम  भगवान स्वामीनारायण ने भी अपने अनुयायी एवं समस्त हिन्दुओं को तिलक करने की आज्ञा दी है। आप लोग भगवान स्वामीनारायण के चरित्र एवं लीलाओँ के बारे में नहीं जानते होंगे। लेकिन जल्द ही मैं आपसे उनके द्वारा इस पृथ्वी पर किये गए कार्यो एवं उनकी लीलाओँ को आर्टिकल्स द्वारा प्रस्तुत करूँगा। 

चलिए अब जानते है तिलक और त्रिपुण्ड क्यों जरुरी है। और इसको करने से क्या लाभ प्रदान होता है। में तो कहता हु हर इंसान को चाहे वह किसी भी धर्म और जाति से हो उसे तिलक करना चाहिए। 

तिलक के साथ न केवल धार्मिक किन्तु वैज्ञानिक कारणों भी जुड़े हुए है। और आज हम और एक बार गर्व से कहेंगे की हिन्दू है। आज जो भी बातें विज्ञान सिद्ध कर रहा है उसका मूल कारण भारत के यह वेदो और शाश्त्र एवं धर्मग्रन्थ है।
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LORD SHIVA 

आम तौर पर चन्दन , कुमकुम , हल्दी , मिट्टी,भष्म आदि का तिलक लगाने की परंपरा है। अगर कोई इसे दिखाना नहीं चाहता है तो जल द्वारा भी तिलक किया जा सकता है। ऐसे भी विधान हमारे ग्रंथो में पाए गए है। इसके साथसाथ तिलक लगाने के मन्त्र के बारे में भी बताया गया है। 

ललाट पर भस्म , चन्दन आदि से तीन रेखाएं बनायीं जाती है उसे त्रिपुण्ड कहा जाता है। चन्दन या भस्म को तीन उंगलियों में लेकर तीन तिरछी रेखाओं को ललाट पर बनाते है। शिव महापुराण में कहा गया है की इन हर एक रेखाओं में देवता निवास करते है।  
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दोस्तों इसके आगे हम जानेंगे त्रिपुण्ड और तिलक से होने वाले लाभों के बारे में और उससे जुड़े मंत्रो के बारे में। 

धन्यवाद। जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। जय हिन्द। 

Monday, 7 August 2017

Kautilya(Chanakya) the Best Teacher , Philosopher ,Economist and Also a Royal Adviser -7

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

दोस्तों हम आचार्य चाणक्य के जीवन शैली और उनके विचारो का आदान प्रदान कर रहे है।  आचार्य चाणक्य का व्यक्तित्व प्रभावशाली मोहक और हर किसीको प्रेरणा दे वैसा था। आचार्य चाणक्य ने सिर्फ महान व्यक्तिओं एवं ऋषिओं के आदर्श जीवन पर से उन्होंने अपने अनुभव को चाणक्य निति के रूप में प्रस्तुत किया। वह इतने तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे की उन्होंने प्राणिओ जैसे तुच्छ जिव के जीवन में से भी मनुष्य को ज्ञान लेने की बात कही। यह आचार्य चाणक्य की विचक्षण बुद्धि और सदैव गुणग्राहक दृष्टि रखने के विचार को तादृश्य करती है। आचार्य चाणक्य ने गधा , कौवा ,सिंह ,कुत्ता इन सभी प्राणीओ ं में हमेसा गुण को ही देखा। हमें भी ऊंच नीच का भेदभाव छोड़ हर प्राणीमात्र के गुण को ही देखना चाहिए। हमे गुणग्राहक दृष्टि ही रखनी चाहिए। दोस्तों चलो अब जानते है उनके विचारों के बारे में। .... 
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 यह छबि प्रतीकात्मक है। 


हमे प्राणीओं से यह सिख लेनी चाहिए। 

१.  सिंह से हम एक गुण को लेना चाहिए। बगुला से एक। मुर्गा से चार। कौवा से पांच। कुत्ते  से छह। और गधे से तीन गुण सिखने चाहिए। 

२. कार्य छोटा हो या बड़ा उसे जो कार्य करने लायक है उसे हर हाल में पूर्ण करना चाहिए। उसके लिए सब प्रयत्न करने  चाहिए वह उचित  है। यह हमें सिंह से सिखना चाहिए। 

३. विद्वान् पुरुष  को हमेसा अपने इन्द्रियों को संयम में रखकर देश , समय और  बल को संभलकर बगुला के सामान सब कार्य  धैर्य से करना चाहिए। यह गुण हमें बगुला से सीखना चाहिए। 

४.उचित समय में जागना , रण में उद्यत रहना ,बंधुओं को उनका भाग देना और आये दुश्मन को आक्रमण करके भोग करे। इन चार बातों  को हमे मुर्गा  से  सीखना चाहिए। 

५. छिपकर मैथुन करना।  धैर्य रखना।  समय होने पर घर आजाना।  संग्रह  करना। सावधान रहना और किसी पे  विश्वास न करना। इन पांच गुणों  को कौवे से सीखना चाहिए। 

६. बहुत खाने की  शक्ति और इच्छा होनें पर  भी थोड़े से ही संतुष्ट होना। गाढ़ नींद में रहते हुए भी फटाफट जाग जाना। अपने मालिक के प्रति वफ़ादारी और शूरवीरता यह गुणों  को हमें कुत्ते से सीखना चाहिए। 

७. अत्यंत थक जाने पर भी बोझे  को उठाना। महेनत करना , ठंडी और गर्मी को महसूस न  कर हमेसा महेनत से काम करते जाना। और सदा संतुष्ट रहकर जीवन व्यतीत करना यह बातों को हमें  गधे से सीखना चाहिए। 

तो मित्रों आप सभी को यह बात जानकर आनंद हुआ की नहीं। हम भी  इसी तरह से हमारे दृष्टिकोण को बदले और हमेंशा सदगुणों को ग्रहण करना सिख जाये। यही प्रार्थना के साथ हम आप से विदा चाहता हु। धन्यवाद। 

जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। 

Kautilya(Chanakya) the Best Teacher , Philosopher ,Economist and Also a Royal Adviser -6

नमस्कार मेरे प्यारे पाठकों।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव।

मेरे दोस्तों हम आचार्य चाणक्य की नितिओ के बारे में बात कर रहे है। अब ज्यादा वक्त झाया न करते हुए हम हमारे पांच वे आर्टिकल को आप  सामने प्रकट करते है।
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यह छबि प्रतीकात्मक है। 

आचार्य चाणक्य के अनुसार

१. जहाँ मूर्ख व्यक्तिओं की पूजा  नहीं की जाती ,जहां अन्न संचित रहता है और जहां स्त्री पुरुष में कलह नहीं होता वहां खुद ही लक्ष्मी (धन ) विराजमान रहती है।

२.यह निश्चित है की ,आयु , कर्म ,धन ,विद्या और मरण ये पांचो जब जीव गर्भ में होता है तब ही उनका भविष्य लिख दिया जाता है।

३. जब तक देह निरोगी है तब तक  मृत्यु  दूर है। तत्पर्यंत पुण्यादि करना उचित है। प्राण का कब अंत हो वह कोई नहीं जानता। इसलिए पहलेसे ही अच्छे कर्म और पुण्य करने चाहिए।

४. विद्या में कामधेनु के समान ही सब गुण है। इसलिए वह अकाल (दुःख के समय )में भी अच्छा फल प्रदान करती है। आचार्यजी ने विदेश में विद्या को माता समान कहा है। विद्या को गुप्त धन कहा गया है।

५. राजालोग एक ही बार आज्ञा देते है , पंडित एक ही बार बोलते है , कन्या दान एक ही बार किया जाता है। ये तीनों बात एक ही बार होती है।

६. तपश्चर्या अकेले ही करनी  चाहिए। अगर पढाई करनी है तो दो लोग साथ में करे। गाना और संगीत तीन लोग साथ में करे तो संगीत महक उठता है। रास्ते में अगर चलना है , तो अकेले नहीं चार लोग साथ में चले। खेती जैसा महेनत वाला काम पांच लोग मिलकर करे तो खेती का काम जल्दी हो जाता है और खेती में उपज अच्छी होती है।अगर बहोत लोग साथ में मिले तो वह यद्ध में भी विजय हांसिल कर सकते है।

धन्यवाद।  जय श्री कृष्णा। जय हिन्द।


Sunday, 6 August 2017

Kautilya(Chanakya) the Best Teacher , Philosopher ,Economist and Also a Royal Adviser -5

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

दोस्तों  अब ज्यादा समय न लगाते हुए हम आचार्य जी के वाणी विचार के बारे में जानेंगे।उनके द्वारा दिए गए हर उपदेश को सिर्फ पढ़ना और सुनना यही काफी नहीं है। हमें आचार्य जी  उपदेश अनुसार हमारा जीवन बनाना है। तब जा कर उनको हमारे भारतीय एवं हिन्दू होने का गर्व ले सकेंगे। आचार्य जी ने इसीलिए उनके विचार और वाणी को तथा उस समय अपनायी गयी नीतिओं को ग्रन्थस्थ किया क्योंकि हमारी पीढ़ी और हमारी आने वाली पीढ़ी इसका ज्ञान घर घर में फैला सके। यह ज्ञान का प्रकश दुनिया के उस घोर अंधकार तक पहुंचे और अज्ञानताका , दम्भ का , हमारे तन और मन के विकारों का सर्वनाश कर सके। और इस ज्ञान गंगोत्री को सदा अविरत न केवल भारत किन्तु यह सरे विश्व में उसका ज्ञान का प्रसार -प्रचार हो। हम ने इस पुण्य के कार्य में थोड़ा सा योगदान दिया है।  आप भी इसे शेयर करके , इसको पढ़कर और दूसरे व्यक्तिओ को यह कथा के रूप में कह कर , या सोशल मिडिया द्वारा इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर कर धन्यवाद के पात्र हो सकते है।  तो दोस्तों आपसे यह अनुरोध है की आप इस सभी आर्टिकल को  फॉलो करे , पसंद  करे। यह सहृदय आप सभी पाठको को विनंती है।

चलिए अब आचार्य चाणक्य जी की नीतिओं के बारे में विचारो का आदानप्रदान करते है।
SOURCE: GOOGLE IMAGES 
यह छबि प्रतीकात्मक है। 


आचार्य चाणक्य पुत्र के गुणों के बारे में बताते है की। ...... 

१. एक अच्छे वृक्ष से जिसमे सुन्दर पुष्प उगते हो और मीठी सुगंध हो ऐसे सब वन में सुवास प्रसरित हो जाती है , ठीक उसी तरह सुपुत्र यानी  जिस कुल में हो वह घर भी हमेशा खुशियों एवं सुख से भरा होता है।

२. आग से जलते हुए एक ही सूखे वृक्ष से सब वन सुलग उठता है। ठीक उसी तरह एक दुष्ट पुत्र  के पैदा होने से उस कुल का , उस घर का भी सर्वनाश हो जाता है।

३.  जिस घर में एक ही पुत्र हो और वह विद्या युक्त हो , तो उस कुल और घर आनंददित , हर्षोल्लास से भर जाता है। जैसे चन्द्रमा से रात्रि। पूर्णिमा माँ का चाँद अंंधकार को नष्ट कर देता है। और चन्द्रमा की चांदनी  धरती पर अपनी शीतलता को बिछा देती है। ठीक उसी तरह एक अच्छा पुत्र अपने सबंधीओं को सुख प्रदान करता है।

४. शोक , संताप और असंप करने वाले बहुपुत्रो ( एक से अधिक पुत्र ) से क्या ? ऐसे पुत्रो से हमे सिर्फ दुःख और बदनामी की ही प्राप्ती होती है। ऐसे हज़ार पुत्र होने से भी कोई फ़ायदा नहीं। कुल को सँभालनेवाला , घर में सब को विश्राम देने वाला एक पुत्र ही श्रेष्ठ है। दोस्तों महाभारत के बारे में हम जानते है। कौरव १०० थे , और पांडव ५। फिर भी वह कुछ नहीं कर सके क्योंकि पांडवों के साथ भगवान श्री कृष्णा थे , और कौरवों ने भगवान को दूर ही रखा था। वह अच्छे पुत्र साबित नहीं हुए थे।

५. पुत्र को पांच बरस तक दुलार करे, प्यार दे अच्छे से देखभाल करे। बाकि के १० साल तक उसे ताडन  करे , कठोरता से वर्ताव करे उसे अच्छे संस्कार और शिक्षा प्रदान करे। पुत्र के सोलह साल की उम्र  होने पर अपने पुत्र से मित्र के अनुसार व्यवहार करे।

धन्यवाद दोस्तों।  आगे और भी अध्याय से हम आपके साथ बने रहेंगे।

जय श्री कृष्णा। जय हिन्द।


Saturday, 5 August 2017

Kautilya(Chanakya) the Best Teacher , Philosopher ,Economist and Also a Royal Adviser -4

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

मेरे प्यारे पाठको आपका धन्यवाद करना चाहूंगा। आप हमारे आर्टिकल्स को पढ़कर हमें और अच्छा लिखने की प्रेणणा देते है। असल में हमारे पाठकों ही हमारी जमा पूंजी है। दोस्तों हम कई दिनोंसे आचार्य चाणक्य की अजोड़ वाणी का रसास्वाद ले रहे है। 

आज हम इसके चौथे चरण में है , और आचार्य चाणक्य के वचनों को जानने समझ ने की कोशिश करेंगे। 

१ आचार्य चाणक्य के अनुसार हमे आपत्ति काल के लिए भी धन का संचय करना चाहिए। और आपातकाल के दौरान धन से भी अधिक स्त्री  की रक्षा करनी चाहिए। सब काल में धन और स्त्री से भी अधिक अपनी रक्षा करनी चाहिए। 
SOURCE : GOOGLE
यह छबि सिर्फ दर्शाने के लिए है। 

इन जग़ह , देश जहा यह सगवड़ प्राप्त न हो वहाँ  निवास कदापि नहीं करना चाहिए।

२ आचार्य आगे कहते है की , जिस देश और स्थल पर हमारा आदर सन्मान ना हों , जिस देश में आजीविका नहीं हो और वहाँ मित्रता करने योग्य कोई बंधू ना हो , और सबसे महत्व पूर्ण बात अगर वहाँ विद्याभ्यास प्राप्त करने का लाभ न हो।  ऐसी जगहों को मनुष्य को तत्काल त्याग देना चाहिए। ऐसी जगह ऐसे देश निवास करने के लिए उचित नहीं है। 

३ आचार्य के अनुसार जहा धनिक यानि पैसे वाला आदमी , वेदों का ज्ञाता - ब्राह्मण , राजा , नदी और पाँचवा वैद्य विद्यमान न हो ऐसी जगह पर एक दिन के लिए भी निवास नहीं करना चाहिए। क्योंकि हमे विद्या प्राप्त करने  लिए उचित गुरु , हमारी रक्षा और हमारा पालन पोषण के लिए राजा , और अगर हम बीमारी से जूझ रहे हो तो वह वैद्य यानि डॉक्टर की आवश्यकता रहती है। और नदी भी हमे पानी के साथ साथ ऊर्जा भी प्रदान करती है , यह यातायात का साधन भी है। यह पांच अगर न हो  तो उस देश उस स्थल का तुरंत ही त्याग करना चाहिए। 

४ आचार्य ने आगे यह भी कहा की जिस देश , राज्य और गांव में आजीविका यानि पैसे कमाने के अवसर प्राप्त न हो , जहां पर भय और लज्जा , शर्म  और कुशलता न हो अर्थात जिस जगह पे ऐसे गुण वाले व्यक्ति निवास ना करते हो ,  देने की प्रकृति मतलब जहां परोपकार की भावना न हो। वहा के लोगो के साथ रहना , उनकी संगति करना निरर्थक है , ऐसे लोगों का संग कदापि नहीं करना चाहिए। 

यह लोग अपने  स्वार्थ की पूर्ति होने पर छोड़ कर चले जाते है। 

१ वेश्या निर्धन मनुष्य को ,प्रजा (सिटीजन्स ) शक्तिहीन राजा को छोड़ देते है  , पक्षी बिना फल वाले वृक्ष को छोड़ देते है  ,और अभ्यागत यानि अथिति महेमान भोजन करके घर को  छोड़ जाते है। दोस्तों इसके द्वारा आचार्य जी समझाते है की सब रिश्ते जो है वह स्वार्थ से ही निर्भर है। 

२ ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यजमानों को त्याग देते है , शिष्य विद्या की प्राप्ति हो जाने पर गुरु को त्याग देते है , वैसे ही जले हुए वन को मृग त्याग देते है। 

दोस्तों आगे के अध्याय हम नेक्स्ट आर्टिकल में जानेंगे। और इसी तरह आचार्य चाणक्य की वाणी को सरल रूप में आपके सामने विवरण करते रहेंगे धन्यवाद। 

जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। 

Friday, 4 August 2017

Kautilya(Chanakya) the Best Teacher , Philosopher ,Economist and Also a Royal Adviser -3

SOURCE: GOOGLE SEARCH 
नमस्कार मित्रो। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

दोस्तों हम आचार्य कौटिल्य के नीतिओं के बारे में बात कर रहे है। आज यह तीसरा अध्याय हम लिख रहे है। चाणक्य जी की वाणी त्रिकाल अाबाधित है। जो भूतकाल , भविष्य और वर्तमानकाल में भी निःसंदेह खरी साबित हुई है। अगर उनके द्वारा दिए गए निति नियमों को मनुष्य जीवन में उतारलें तो उनका जीवन सुवर्ण कमल की तरह खिल उठे। और कस्तूरी की तरह उनका जीवन महक उठे। जीवन में सदा ही आनंद और सुख का अनुभव हो जाये। 

तो दोस्तों देर ना करते हुए हम आचार्य चाणक्य जी के वाणी विचारों को यहाँ वर्णन करेंगे :

१ आचार्य कहते है की " किस आदमी  कुल में दोष नहीं है ? कितने ऐसे प्राणी है जो किसी प्रकार के रोग से ग्रसित नहीं है ? कौन ऐसा मनुष्य इस धरा पर है जिसके जीवन में सुख है। इसलिए जीवन से हार कर बैठ जाना किसी भी परेशानी या दुःख का हल नहीं है। ऐसे बैठे रहने से समस्या का हल नहीं हो सकता। 

२ अपने धन का नाश , मन का संताप , स्त्री का चारित्र्य , नीच मनुष्य की कही बात और अपना अपमान , इनको किसी भी बुद्धिमान चतुर मनुष्य के सामने जाहिर ना करे वही बेहतर है। 

३ हर मित्रता के पीछे स्वार्थ जरूर छिपा  होता है। दुनिया में ऐसी कोई दोस्ती नहीं है , जिसके पीछे लोगों के स्वार्थ न छिपे हो। यह एक कड़वा सत्य है। किन्तु यही सत्य है। 

४ शिक्षा ही सबसे अच्छी मित्र है ,एक शिक्षित व्यक्ति को ही हर जगह सन्मानित किया जाता है। शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती हैं। यानी ज्ञानी के आगे दुनिया अपना सर झुका देती है। 

५ जो स्त्री पराये घर में रहती है , जो पेड़ नदी किनारे रहते है , और जो राजा मंत्री न रखता हो यह तीनों जल्द ही नष्ट हो जाता है।  राजा मंत्री के बिना अधूरा है , नदी किनारे वाले पेड़ भी बाढ़ में बह जाते है। 

६ जो हमसे हो गया है , वह हो गया। यदि हमसे कोई गलत काम हो गया है , तो उसकी चिंता न करते हुए वर्तमानं को सुधारकर भविष्य को सुधारना चाहिए , उसे संवारना चाहिए। 

७ द्वारपाल , नौकर, राहगीर , भूखा व्यक्ति , विद्यार्थी और डरे हुए व्यक्ति को  नींद से जल्द  ही उठाना चाहिए ,  वरना अनिष्ट  घटना घटित होने की संभावना ज्यादा होती है। 

८ बुद्धिमान  व्यक्ति का कोई शत्रु नहीं होता , किन्तु बुद्धिहीन और मूर्ख व्यक्ति के अनेको शत्रुओं से घिरा हुआ   होता है। 

९ हर मातापिता को अपने बच्चे को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो , छह साल से पंद्रह  साल तक कठोर अनुशाशन एवं शिक्षा और संस्कार देने चाहिए , सोलह साल से उनके साथ मित्र के जैसे व्यव्हार करना चाहिए। क्योंकि आपकी संतान ही आपकी सबसे श्रेष्ठ मित्र है।

१० ईश्वर परमात्मा परमेश्वर चित्र में नहीं चरित्र (चारित्र्य , शील)  में  निवास करते है। इसलिए अपनी आत्मा को मंदिर की भांति पवित्र बनाओं। 

११ ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या निचे के है उसने मित्रता नहीं करनी चाहिए , वह तुम्हारे कष्टों और दुखो का कारन बनेंगे , समान स्तर के मित्र सुखदायी होते है। 

यह पांच बाते जो सायद ही आप जानते होंगे... .....  

स्त्रिओं में यह पुरुषों से ज्यादा होता है। आचार्य चाणक्य इसके स्त्री के इन गुणों के बारे में बताते है की..... 

१ महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा अधिक भूख लगती है। उन्हें पुरुषों की तुलना में दो गुना ज्यादा भूख लगती है।

२ पुरुषों की अपेक्षा स्त्री अधिक बुद्धिशाली और चालाक होती है। स्त्री में यह गुण चार गुना अधिक होता है।

३ महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा साहस  भी अधिक होता  है।  यह  गुण उनमें छह गुना अधिक होता है।

४  महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा कामेच्छा   भी अधिक होती   है।  यह  गुण उनमें आठ  गुना अधिक होता है।

Kautilya(Chanakya) the Best Teacher , Philosopher ,Economist and Also a Royal Adviser -2

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

दोस्तों हम आचार्य चाणक्य के जीवन और उनकी नीतिओं के बारे में जान रहे है , समझ रहे है। उन्होंने जीवन जीने के तरीके और एक सफल मनुष्य कैसे बनें उनकी सीख़ हम सबको उनके नीतिओं  द्वारा दी है।  तो चलिए जानते है ,

आचार्य चाणक्य कहते है ,

१ कोई भी व्यक्ति उसके जन्म से ही महान नहीं होता , वह अपने अच्छे कार्यो द्वारा महान बनता है। नहीं के अपने कूल के द्वारा। 

२ चाणक्य जी आगे कहते है की अगर आप ने कुछ करने का सोचा है , या  कुछ कर दिखाने की कुछ बनने का अपने मन में थान लिया है , तो बुद्धिमानी से इस रहस्य को बनाये रखे और इस कार्य के लिए दृढ रहिये। और जब तक यह कार्य संपन्न नहीं हो जाता उसे गुप्त ही रखिये। इसीमे भलाई है। 

३ क्रोध ऐसी चीज़ है हो बुद्धिमान  व्यक्ति की मति भी भ्रष्ट कर सकता है ,इसलिए जल्द गुस्सा करना आपको मूर्ख साबित  देगा। अर्थात बिना कारण क्रोध से दुरी बनाये रखिये। 

४ नाम (इज्जत )और साख बनाने में सालों लगते है और उसे गवांने में , उसे खोने में एक पल ही काफी है , अगर आप इस बात पर गौर करेंगे , इसके बारे में सोचेंगे तो आप हर चीज सोच समझकर अलग तरीके से करेंगे। 
५ अगर आप धनि है , धनवान है  तो उस धन से दूसरों की भलाई के लिए मददगार बने तब ही उस धन का मूल्य है अन्यथा यह सिर्फ पाप और बुराई का ढेर है। 

६ दुष्ट मनुष्य की मीठी वाणी पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए। वह अपना मूल स्वाभाव कभी नहीं छोड़ सकता , जैसे शेर कभी हिंसा नहीं छोड़ सकता। और एक उदहारण आगे भले ही साप अपने को चन्दन के पेड़ पर लपेटे हुए रहे। लेकिन वह जहर उगलना नहीं भूलता। 

 आचार्य  चाणक्य जी कहा की इन तीन लोगों की भलाई करनेसे और उन्हें पनाह देने से हमेसा आपको ही दुःख होगा , आपका ही नुकसान होगा। 

दोस्तों हम हमारी पुरानी कहावतों  में और हमारे बुजुर्गों द्वारा सुना है की "कर भला हो भला" किन्तु आचार्य चाणक्य जी हमे उपदेश देते है की इन तीन व्यक्ति विशेष का भला करने से हमें ही दुःख भुगतना पड़ता है , इसलिए इनसे दुरी रखना ही बहतर है। 

१ दोस्तों चाणक्य जी कहते है की दुष्ट स्वाभाव वाली स्त्री यानी स्वछन्दी ( अपने मन अनुसार वर्ताव करने वाली ), कामिनी ( अधिक कामेच्छा रखने वाली ) ऐसी स्त्रिओं का भरण पोषण करना हमारे लिए हानि करक है। इसीतरह चारित्र्यहिन स्त्री को पालना उसका पोषण करना हमारे लिए घातक है। 
ऐसी स्त्रिओं को सिर्फ धन से ही मोह है।  सज्जन  और चारित्र्यवान पुरुष  ऐसी स्त्रिओं का संग करे तो उसे बदनामी का अपयश  का शिकार होना पड़ता है। और पाप का भागी बनता है। समझदारी  उसी में की ऐसे लोग से दुरी बनाये रखे। 

२ चाणक्य बताते है अगर किसी मूर्ख  व्यक्ति या मूर्ख शिष्य को  उपदेश देना है  तो उसे ज्ञान का उपदेश नहीं देना चाहिए। हम मूर्ख को ज्ञान देकर उनका भला करना चाहते है किन्तु मूर्ख व्यक्ति उस बात को समझ ही नहीं पायेगा। जैसे की भैंस के आगे भागवत कथा करना ऐसा हाल होगा। बुद्धिहीन मनुष्य ज्ञान की बातों में भी तर्क वितर्क करके उलझे हुए रहेंगे , और हमारा समय भी बर्बाद करेंगे। 

३ जो व्यक्ति किसी कारणवश या बिना कारण के ही हमेशा दुखी रहता हो उनसे भी दूरी ही रखनी चाहिए। आचार्य कहते है जो लोग भगवान के द्वारा दिए गए सुखों , संसाधनों से संतुष्ट न होकर दुखी और निराश रहते है उनका संग भी नहीं करना चाहिए। धैर्यवान और बुद्धिमान व्यक्ति को जो मिला है या मिलने वाला है उन्ही में संतुष्ट होकर जीवन व्यतीत करते है। अकारण दुखी होने वाले लोग दुसरो के सुख को देख भी इर्षा से  अवगुण ही लेते है। 

दोस्तों चाणक्य जी की वाणी उनके उपदेशो को आगे दोहराएंगे। खुश रहे। 
धन्यवाद। जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। 

Thursday, 3 August 2017

Kautilya(Chanakya) the Best Teacher , Philosopher ,Economist and Also a Royal Adviser -1

नमस्कार मित्रों। 
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। 

इस भारत की पवित्र भूमि पर और इस सनातन हिन्दू धर्म में तथा इस भारतीय परंपरा में कई महान विरल विभूतिओ ने जन्म धारण किया। कई संत , गुरु , अवतार और ऋषि मुनिओं ने जन्म धारण कर इस धरा को पावन किया। इस दुनिया में अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाया। मनुष्य एवं प्राणी मात्र को जीवन जीने का सही ढंग सिखाया। ऐसे ही गुरुओं में , तत्वचिंतकोंमे सबसे अव्वल नाम श्री विष्णुगुप्त का भी है। उन्हें कौटिल्य एवं चाणक्य के नामों से भी जाना जाता है। 

दोस्तों आज हम बात  करेंगे की चाणक्य कौन थे। उनका इस भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। वह न केवल एक आदर्श गुरु थे , इसके साथ  वह एक महान तत्वज्ञानी , तत्वचिंतक , अर्थशास्त्री एवं राजा महाराजाओं द्वारा पूजनीय राजगुरु और एक आदर्श मार्गदर्शक भी थे। 

भगवान श्री कृष्णा के बाद अगर किसीने अव्वल दरजे की राजनीती की हो तो वह सिर्फ चाणक्य ही है। वह एक प्रखर राजनीतिज्ञ थे , नहीं इनका स्थान किसीने लिया है नाहीं कोइ ले सकेगा। वह एक विरल बुद्धिमान व्यक्ति थे। 
हमारा देश पहले छोटे छोटे राज्यों एवं देसी रजवाड़ों में विभाजित था। वह आचार्य चाणक्य की बदौलत एक महान और अखंड राष्ट्र बन पाया। आचार्य चाणक्य ने अपनी नितिओ के बल से हमारे भारत वर्ष की सीमाओं की रक्षा की थी। 

विदेशी राजा सिकंदर जिसे एलेक्सेंडर के नाम से भी जाना जाता था। वह भारतीय सीमाओं पर आक्रमण करने के लिए पहुंच चूका था। चारो ओर भय का वातावरण था। क्योंकि सिकंदर एक महत्वकांक्षी एवं महान योद्धा था। जो पूरा विश्व जितने के लिए निकला था। वह दुनिया जित चूका था। अब उसकी नजर हमारे देश भारत जो उस समय सुवर्ण की चिड़िया था। वह भारत को जितने की फ़िराक में था। 

ठीक उसी समय पर आचार्य चाणक्य ने अपने बुद्धि एवं नीतिओं के बल पर भारत की सिकंदर से रक्षा की। और सिकंदर को युद्ध में चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा परास्त किया गया। आचार्य चाणक्य ने एक सामान्य बालक जिसका नाम चन्द्रगुप्त था, उसे प्रशिक्षित कर सारी विद्याओं में पारंगत किया। उसे एक वीर योद्धा बनाया। यह बालक बादमे चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से जाना गया। बाद में यही चन्द्रगुप्त मौर्य अखंड भारत का शासक बना। चन्द्रगुप्त के युग को उसके कार्यकाल ने भारत का सुवर्ण काल कहा जाता है। 

उस समय में पाटलिपुत्र मगध की राजधानी थी। पाटलिपुत्र पर राजा धनानंद का राज था। दोस्तों यह पाटलिपुत्र जो राजधानी है वह और कुछ नहीं लेकिन आज का बिहार में स्थित पटना शहर है। जिसके नाम को मुघल सल्तनत के दौरान बदल दिया गया। राजा धनानंद वह महारत के नाम से भी जाना जाता है। जो नंद वंश का राजा था। उस समय भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य मगध था। 

चाणक्य ने महाराज को समझाया की सिकंदर भारत की सीमाओं तक पहुंच गया है। आप सभी राज्यों को एकत्र कर उनसे लड़े।  किन्तु महाराज धनानंद ने उनको सुना ही नहीं। और भरी सभा में उनका घोर अपमान किया। उनकी हसीं मजाक उड़ाया। तब चाणक्य बहोत क्रोधित हुए और चाणक्य ने सभा में प्रतिज्ञा ली की जब तक में आपके (धनानंद) के साम्राज्य का सर्वनाश नहीं करूँगा तब  में अपनी शिखा नहीं बाधूंगा। उसके पश्चात आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को प्रशिक्षित कर धनानंद को परास्त कर एक सामान्य बालक को इस भारतवर्ष का सम्राट बनाया। 

आज भी आचार्य चाणक्य ने जो नीतियां  दी है वह अमर है। कई विदेशी इतिहासकारों ने चाणक्य के अस्तित्व पर सवाल खड़े किये है जैसे की वह करते आये हे।  मेरा आपसे निवेदन है दोस्तों कभी भी विदेशी इतिहासकारों द्वारा लिखे गए भारतीय इतिहास पर विश्वास न करें। क्योंकि उन्होंने हमारे इस सुवर्ण इतिहास को कई बार टटोलने की कोशिश की है। उसमे मन चाहा बदलाव कर उसे बदला गया है।  में यह नहीं कहता हु के वह सारे विदेशी लेखक ग़लत है। लेकिन आप उन्हें पढ़ते समय जरूर सावधान रहे। 

आचार्य चाणक्य द्वारा की गयी इन सारी नीतिया एक ग्रन्थ के रूप  अकबंध है। वह आज भी अमृत की तरह उनकी वाणी पवित्र गंगा की तरह पुस्तकों एवं ऐसे आर्टिकल्स द्वारा अविरत और स्वर्णिंम बह रही है। उनके विचार एवं वाणी को जीवन में उतारने योग्य है। 

नेक्स्ट आर्टिकल में हम उनकी नीतिओं के बारे में जानेंगे। जो हमे आज भी एक अच्छा और सुखमय जीवन जीने के लिए हमारा मार्गदर्शन करती है। 

धन्यवाद। 
जय श्री कृष्णा। जय हिन्द। 
 

SHIV SVARODAY GIVES HAPPY PROSPEROUS HEALTHY LIFE- 2

नमस्कार दोस्तों।
जय श्री कृष्ण।  हर हर महादेव।

दोस्तों हमने लास्ट आर्टिकल में शिव स्वरोदय के बारे में जाना। हम  इस आर्टिकल में हम साधना के साथ साथ दिनचर्या में लेने वाले सावधानी के बारे में जानेगे।

अपनी दिनचर्या के कार्यों को निम्नलिखित कार्य स्वर के अनुसार ही करे :

१ शौच सदा दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में करे और लघुशंका (मूत्र विसर्जन )बाए स्वर के प्रवाहकाल में।
२ भोजन दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में करे और भोजन के तुरंत बाद १०-१५ मिनट तक बाईं करवट लेटें।
३ पानी सदा बाएं स्वर के प्रवाहकाल में पिएं।
४ दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में सोएं और बाएं स्वर के प्रवाहकाल में उठें।

कार्य स्वर के अनुसार करने से शुभ परिणाम मिलते है।

१ घर से बाहर जाते समय जो स्वर चल रहा हो।  उसी पैर से  दरवाज़े से बहार पहला कदम रखे।
२ दूसरों के घर में प्रवेश करते समय दाहिने स्वर का  प्रवाहकाल उत्तम होता है।
३  जन सभा को सम्बोधित करने या अध्ययन का प्रारंभ करने  के लिए बाएं  स्वर का चुनाव करना चाहिए।
४ ध्यान , मांगलिक कार्य आदि प्रारम्भ , गृहप्रवेश आदि के लिए बायां स्वर चुनना चाहिए।
५ लम्बी यात्रा बाएं स्वर के प्रवाहकाल में और छोटी यात्रा दाहिने स्वर के प्रवाहकाल में प्रारम्भ करनी चाहिए।
६ दिन में बाएं स्वर का और रात्रि में दाहिने स्वर का चलना शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक और आध्यात्मिक दृस्टि से सबसे अच्छा माना गया है।

इस प्रकार धीरे धीरे एक एक कर स्वर विज्ञानं की बातों को अपनाये हुए हम अपने जीवन में अदभूत सफ़लता प्राप्त कर सकते है। इस विषय को यही विराम देते हुए हम आपसे से विदा चाहते है।  शिव स्वरोदय के श्लोको के बारे में हम आगे जानेंगे।
धन्यवाद।
जय श्री कृष्णा। हर हर महादेव। जय हिन्द। 

SHIV SVARODAY GIVES HAPPY PROSPEROUS HEALTHY LIFE...

नमस्कार मित्रों।
जय श्री कृष्ण। हर हर महादेव।

दोस्तों हम सभी जीवन में प्रगति और सफलता की महेच्छा रखते है। हम यही अपेक्षा रखते है की हमारा जीवन सुखमय हो , निरोगी हो। हम पूरी जिन्दंगी का हरेक क्षण उसे पाने में लगा देते है। फिर भी हम कई बार इसमें असफल रहे हे।  हम ना चाहते हुए भी कंगाल है , यह शरीर रोगो से पीड़ित हो उठता है। दोस्तों तो चलिए आज हम उस मार्ग के बारे में बात करेंगे जो हमे जीवन में सफलता प्रदान करने में मददगार हो सकता है।

आज आपके जीवन को एक नए धागे से जोड़ने की दिशामें यह एक विनम्र प्रयास है। आप  भगवान शिव के बारे में तो जानते   है। उन्हें पंचोपचार द्वारा अर्चन पूजन भी करते है। उनकी अलग अलग तरीकोंसे आस्था और श्रद्धा द्वारा रिझाने का प्रयत्न हम सभी करते है।

तो चलिए  आज के इस सुनहरे अवसर पर हम शिव स्वरोदय को जानने का प्रयास करते है। विशेष रूप से शिव आराधना करने वाले सभी लोगों को यह क्रिया जानने के आवश्यकता है। इस विद्या को जानना जरुरी है। तो अब जानते है स्वरोदय क्या है।

शिव स्वरोदय 

अपने स्वर को जानने वाला पहचानने वाला व्यक्ति अधिक समय तक अस्वस्थ , रोगी नहीं रह सकता। उसे पराजय से साक्षात्कार नहीं होता। अर्थात वह अपराजित रहता है। उसे धन सन्मान एवं पद के लिए विचार करने की आवश्यकता नहीं रहती। ऐसा व्यक्ति लोगों की सहायता करने  सक्षम होता है। और अपनी इच्छाओं को प्राप्त करता है।

पर अफ़सोस की बात यह है की यह विद्या अब मृतप्रायः यानि लुप्त हो रही है।  हमारे पूर्वज इसका सतत प्रयोग किया करते थे। अत्यंत विस्तृत  होने के कारण इसे विस्तार से बताना संभव नहीं है लेकिन इससे सम्बंधित मन्त्र सामग्री बाजार में उपलब्ध है , इस क्रिया को करने के लिए योग्य गुरु की आवश्यकता है।

क्या है  शिव स्वरोदय ???????

शिव स्वरोदय विज्ञानं पर अन्यन्त प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें कुल ३९५ श्लोक है। यह ग्रन्थ शिव पार्वती संवाद के रूप में लिखा गया है। इस ग्रन्थ के रचयिता भगवान् शिव है।

शिव स्वरोदय साधना जानने के बाद इन बातों का ध्यान अवश्य रखें। 

१ सुबह उठकर बिस्तर पर ही बैठ आँख बंद किये हुए पता करे की  नाक से अपनी सांस चल रही है। यदि बायीं नाक से चल रही हो , तो दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर मुँह कर ले। यदि दाहिनी और से सांस चल रही हो तो उत्तरा या पूर्व की ओर मुँह करके बैठ जाए। फिर जिस नाक से सांस चल रही हो उस हाथ की हथेली से उस ओर का चहेरा स्पर्श करे।

२ उक्त कार्य को करते समय दाहिने स्वर का प्रवाह हो ,तो सूर्य का ध्यान करते हुए अनुभव करे की सूर्य की किरणें आकर आपके दिल में प्रवेश कर आपके शरीर को शक्ति प्रदान कर रही है। यदि बाए स्वर का प्रवाह हो तो पूर्णिमा  चन्द्रमा का ध्यान करे और अनुभव करे की चंद्रमा की किरणें आपके दिल में प्रवेश कर रही हैं। और अमृत की शीतलता प्रदान कर रही हैं।

३ इसके बाद दोनों हथेलियों को आवहनी मुद्रा में एक साथ मिलाकर आँखे खोले और जिस नाक से स्वर चल रहा हो ,उस हाथ की हथेली की तर्जिनी उंगली के मूल  में ध्यान केंद्रित करे। फिर हाथ में निवास करने वाले देवी देवताओं का दर्शन करने का प्रयास करे और निचे लिखे गए श्लोक को पढ़ते रहे।

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। 
करमूले तू गोविन्द प्रभाते कर दर्शनम।। 

४ इस श्लोक का उच्चारण करते हुए माँ पृथ्वी का स्मरण करे और साथ में तंत्र और योग में पृथ्वी के बताये गए स्वरुप का ध्यान करे -

समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।

दोस्तों इसके साथ साथ हमे अपने दिनचर्या में भी तबदीली लानी है। उसे  बदलना है। उसमे सुधार लाना है।  उसकी बाते और शिव सर्वोदय ग्रथ के श्लोको को मेरे नेक्स्ट आर्टिकल में देखेंगे।

धन्यवाद। जय  श्री कृष्णा। जय हिन्द।


The Creator of Shastras and Dharma Granthas Lord Veda Vyasa and Mahabharata.....

नमस्कार मित्रो। 
जय श्री कृष्ण। हर हर महादेव। 


महाभारत , अठारह पुराणों, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय वैदिक साहित्य दर्शन के रचयिता , ऋषि पराशर के पुत्र भगवान वेद व्यास जी जन्म अषाढ़  महीने की पूर्णिमा को हुआ। द्वीप में जन्म लेने और श्याम वर्ण के होने के कारण उन्हें कृष्ण द्वैपायन व्यास भी कहा गया। 

व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे। 
नमो वै ब्रह्मनिधये वसिष्ठाय नमो नमः।।

अर्थात वेद व्यास साक्षात विष्णु जी का स्वरुप है। तथा भगवान विष्णु ही वेद व्यास है , उन ब्रह्म ऋषि वसिष्ठ के कुल में उत्पन्न पराशर पुत्र वेद व्यास जी को नमन है। 

प्रारम्भ में एक ही वेद था , व्यास जी द्वारा वेद का वेद का विभाग कर उनका व्यास किया गया। इसी से उनका नामकरण वेद व्यास हुआ। वेद व्यास जी ने वेदों  के ज्ञान को लोक व्यव्हार में समझाने के लिए पुराणों की रचना की। 

व्यास जी की गरना भगवान विष्णु के २४ अवतारों में की जाती है। भगवान वेद व्यास जी ने वेदो के सार रूप में महाभारत जैसे महान ,  अद्वितीय ग्रन्थ की रचना की। जिसे पंचम वेद भी कहा जाता है। श्रीमद भागवत जैसे भक्ति प्रधान ग्रन्थ की रचना कर ज्ञान और वैराग्य को नवजीवन प्रदान किया। समस्त मानवजाति और लोकों का कल्याण करने वाली श्री हरी की वाणी श्रीमद भगवद गीता को महाभारतं जैसे महान ग्रन्थ के माध्यम से सुलभ कराया। 

भगवान् वेद व्यास समस्त लोक , भूत , भविष्य वर्तमान के रहस्य, कर्म उपासना -ज्ञान रूप वेद , अभ्यास युक्त योग , धर्म अर्थ काम तथा समस्त शास्त्र को पूर्ण रूप से जानते है। महाभारत को वेद व्यास जी ने गणेश जी द्वारा लिखवाया। जिसकी कथा हमने पहले जानी थी। 

महाभारत में वैदिक , लौकिक सभी विषय तथा श्रुतियों का तात्पर्य है। इसमें वेदांग सहित उपनिषद , वेदों का क्रिया विस्तार , इतिहास , पुराण , भूत , भविष्य , वर्तमान के वृतांत आश्रम और वर्णो का धर्म , पुराणों का सार, युगो का वर्णन, समस्त वेद का ज्ञान , अध्यात्म , न्याय , चिकित्सा और लोक व्यवहार में उचित ज्ञान प्राप्त होता है। जो श्रद्धा पूर्वक महाभारत का अध्ययन करता है , उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते है। इसमें भगवान श्री कृष्ण का स्थान स्थान पर कीर्तन है। 

अठारह पुराणों , समस्त धर्म शास्त्र एवं व्याकरण , छंद , निरुक्त , शास्त्र ,शिक्षा ,और कल्प इन छः अंगों सहित चार वेदों तथा वेदांग से जो ज्ञान प्राप्त होता है। वह महाभारत के अध्यन मात्र से प्राप्त होता है। महाभारत रचने का उदेश्य ही यही था की जीव प्राणी मात्र वेदों के ज्ञान से वंचित ना रह जाए। चाहे वह किसी भी जाति , वर्ण अथवा संप्रदाय से हो। 

वेद व्यास जी ने खुद घोषणा की समस्त ग्रंथो के समतुल्य है महाभारत। जो महाभारत के इतिहास को श्रद्धा पूर्वक सुनता है उसे कीर्ति और विद्या की प्राप्ति होती है। 

महर्षि वेद व्यास जी ने सर्व प्रथम साठ लाख श्लोको की संहिता की रचना की। उनमें से ३० लाख देवलोक में प्रचलित हुई। १५ लाख श्लोको का पितृ लोक में प्रचार किया गया। १४ लाख श्लोको को पक्ष लोक में प्रसारा गया। एक लाख श्लोको को मनुष्य लोक में प्रचलित किया गया। 

भगवान वेद व्यास जी अष्ट चिरजीविओं में शामिल है। आदि शंकराचार्य को वेद व्यास जी के दर्शन हुए। वेद पुराण के वक्ता जिस आसन पर विराजमान होते है उसे व्यास गद्दी कहा जाता है। और वेद व्यास जी का जन्म दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। 

गुरु  ही हमारे भीतर रहे अज्ञान के अंधकार को नष्ट करने में समर्थ है। भगवान कृष्ण गीता में कहते है , " मुनिनामप्यहं व्यास"। अर्थात मुनियों में मै वेद व्यास हूं। 
धन्यवाद। 
जय श्री कृष्ण।  जय हिन्द। 

Wednesday, 2 August 2017

How Written MAHABHARATA by Lord VedVyas



नमस्कार मित्रों ,
जय श्री कृष्ण।  हर हर महादेव। 
दोस्तों आप का बहुत बहुत धन्यवाद्।  आप हमारे ब्लॉग को पढ़ते है।  हमारा हौसला बढ़ाते है। आज में  आपको महाभारत कैसे लिखी गयी , किसने लिखी और भगवान वेद व्यास जी के बारे में बताना चाहूंगा। हिन्दू धर्म का मुख्य ग्रन्थ जो स्मृति श्रेणी में आता है वह है महाभारत। यह महाकाव्य एक धार्मिक पौराणिक एवं दार्शनिक ग्रन्थ माना गया है। महाभारत विश्व का सबसे बड़ा साहित्यिक महाकाव्य ग्रन्थ है। यह धर्म के साथ साथ प्राचीन पुराणिक भारतीय इतिहास की जानकारी देता है। इस ग्रन्थ में १००००० श्लोको को वर्णन किया गया है। 

इस ग्रन्थ में वेदो, वेदांगो के रहस्य का विवरण किया गया है। और इसमें शिक्षा , ज्योतिष ,न्याय , चिकित्सा, वास्तुशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन हुआ है। 

महाभारत सत्य घटनाओं  पर आधारित है। और इनके रचयिता महर्षि  वेदव्यास है।  जिन्हे कृष्ण द्वैपायन व्यास से भी जाना जाता है। वह ना केवल महाभारत के रचयिता है किन्तु वह महाभारत के एक  पात्र भी है। 

भगवान वेद व्यासजी ने महाभारत ग्रन्थ को भगवान  गणेश द्वारा लिखवाया :

भगवान वेदव्यास जी ने महाभारत रच ली थी लेकिन समस्या यह थी की यह किससे  लिखवाई जाये।क्योंकि वह चाहते थे की महाभारत सरल रूप में हो , महाभारत लम्बा और जटिल ग्रन्थ है। उन्हें ऐसे विद्वान की जरुरत थी की उसे जैसे जैसे बोलते जाए , वैसे वैसे वे लिखते जाये। और लिखने के समय कोई प्रकारकी गलती ना हों।   इसलिए वेदव्यास जी ने ब्रह्मा जी का ध्यान किया। 

जब ब्रह्मा जी का साक्षात्कार हुआ तब व्यासजी ने अपनी समस्या उनके सामने रखी। उन्होंने आशीर्वाद देते हुए गणेश जी की सहायता लेने को कहा। 
व्यास जी भगवन शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणेश के पास पहुँचे और उनकी समस्या गणेश जी को सुनाई। यह समस्या को भलीभांति सुन गणेश जी ने हां बोला। किन्तु उन्होंने एक शर्त रखी और कहा की अगर एक बार उन्होंने कलम उठा लिया तो वह काव्य समाप्त होने के पश्चात ही रुकेंगे। उससे पहले उन्हें बिच में ना रोका जाये। यह कठिन शर्त को सुनते ही व्यास जीने भी शर्त रखी , कि काव्य लिखने से पहले गणेशजी को हर श्लोक का अर्थ भी समझना होगा। इससे व्यास जी को बिच बिच में समय मिल जायेगा। 
यह बात सुन गणेश जी मान गए। उन्होंने महाभारत उत्तराखंड में स्थित माणा गांव की गुफ़ा में लिखी। 


धन्यवाद दोस्तों ऐसी ही रोचक और रसप्रद बातों  को आप के सामने रखूँगा।  मुझे जाने की इजाजत दे। खुश रहे। 
जय श्री कृष्ण।  जय हिन्द। 

The invaluable Thoughts of Lord Ved Vyasa Article -2

नमस्कार मित्रो ,
जय श्री कृष्णा।  हर हर महादेव। 


दोस्तों हम बात कर रहे हे भगवान  वेद व्यासजी की।  हम उनके महान  आदर्शों एवं विचारों  और वचनों  के बारे में बात कर रहे है।  महर्षि वेद व्यास जब उनका जन्म हुआ तब से वह घोर तपस्या के लिए निकल गए थे। उसी कारण  उनका शरीर काला पड़  था यानि वह श्याम वर्ण के हो गए थे। यही वजह है जिसके कारण  वह कृष्ण द्वैपायन व्यास भी कहलाए।  तो चलिए जानते है उनके वचनों के बारे में।  पिछले आर्टिकल्स में हमने उनके द्वारा दिए गए ११ वचनों  के बारे में जाना। अब आगे......................................

 १२ जिस मनुष्य की मति दुर्भावना युक्त हो तथा जिसने अपनी इन्द्रियों को वश नहीं किया है वह धर्म और अर्थ की बातों  को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ  नहीं सकता। 
१३  मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है। संतोष में ही सुख है। 
१४ दुःख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है ,  मन से दुखों की चिंता न करना। 
१५ जो केवल दया से प्रेरित होकर सेवा करता है , उन्हें निःसंशय सुख की  प्राप्ति होती है। 
१६ अधिक बलवान तो वह है जिनके पास बुद्धिबल होता है।केवल  शारीरिक बल होता है, वह वास्तविक बलवान नहीं है। 
१७ जिसकी बुद्धि नष्ट हो गई हो , वह इन्सान सदा पाप का आचरण ही करता है। पुनः पुनः किया पुण्य बुद्धि की वृद्धि करता है। 
१८  जो विपत्ति और आपत्ति की स्थिति में भी दुखी नहीं होता , बल्कि सावधान होकर उद्योग और परिश्रम करता है और समय आने पर दुःख भी सहन कर लेता है , उसके शत्रु  पराजित ही है। 
१९  जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है , उसने मानो सारे विश्व में विजय प्राप्त कर लिया। 
२० संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है , जो मनुष्य की  आशाओं और कामनाओं का पेट भर सके। मनुष्य की आशा समुद्र के भांति है। 
२१ माता के रहते पुत्र को कभी चिंता नहीं होती , बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी माँ को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है ,  वह निर्धन होता हुआ भी अन्नपूर्णा के पास चला आता है। 
२२ मन का दुःख मिट जाने पर शरीर का दुःख भी मिट जाता है। 
२३ आशा ही दुःख की जननी है और निराशा ही परम सुख शांति प्रदान करने वाली है। 
२४ सत्य से सूर्य तप्त है , सत्य से आग जलती है।  सत्य से वायु बहती है , सब कुछ सत्य में ही स्थित है। 
२५ जो मनुष्य सब प्राणियों में समभाव से रहने वाले परमात्मा को देखता है वही सत्य को देखता है। 
२६  जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है, वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत किया रखना चाहिए। 
२७ स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु  बना करते है। 
२८ विद्या के समान कोई नेत्र नहीं। 
२९  मनुष्य का जीवन तब सफल है जब वह उपकारी के उपकारों को कभी ना भूले। उसके उपकार से बढ़कर उपकार कर दे। 
३० जैसे तेल समाप्त होते ही दीपक बुझ जाता है। उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर देह  भी नष्ट हो जाता है। 

धन्यवाद। 
जय श्री कृष्ण।  जय हिन्द। 


The invaluable Thoughts of Lord Ved Vyasa

भारतीय परम्परा में , भारतीय संस्कृति में भगवान के साथ साथ गुरु भी इतना ही महत्त्व है। जितने गुण भगवान के गाये जाते है। ठीक उसी तरह गुरू भी पूजनीय है। भारतीय परंपरा में हमेसा से एक सच्चे गुरु को भगवान तुल्य कहा गया है।  वह संस्कृत के इस श्लोक से प्रतीत होता है।  

गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। 
गुरु:साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नमः।।

संत कबीर जी ने भी कहा है " गुरु गोविन्द दोनों खड़े किसको लागु पाय।  बलिहारी गुरु देव की गोविन्द दियो मिलाय। 

आज हम ऐसे ही महान गुरु के वचनों के बारे में जानेंगे। वह है महर्षि वेद व्यास। जिन्होंने सर्व प्रथम  हमें वेदों  की भेंट दी। जिन्होंने हमे  वेदों  का ज्ञान दिया। महर्षि वेदव्यास के वचन हमारे लिए प्रेणना दायी और जीवन उपयोगी है।  चलिए जानते है उन आदर्श विचारो  के बारे में। 

१.  मनोवांछित फल की प्राप्ति  हो या ना हो , विद्वान ज्ञानी पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। 
२   किसी के प्रति मन  में क्रोध  रखने  की अपेक्षा उसे  तत्काल उसे प्रकट करदेना अच्छा है।  जैसे पल में जल जाना देर तक सुलगने से बहेतर है। 
३ जो सज्जनता का त्याग करता है। उसकी आयु सम्पति यश धर्म पुण्य श्रेय सभी नष्ट हो जाते है। 
४ अमृत और मृत्यु दोनों इस देह में ही स्थित है।  मानव सत्य से अमृत और मोह से मृत्यु  पाता है। ]
५  जो वेद और  ग्रंथो को याद करने में तत्पर है लेकिन उसका यथार्थ अर्थ को नहीं समझता उसका ग्रन्थ को पढ़ना और याद रखना व्यर्थ है। 
६ दूसरे के लिए भी वही चाहो जो तुम अपने लिए चाहते हो।  यानि सबका भला ही सोचो। 
७ जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं क्षमा करता है। वह अपनी और क्रोध करनेवाले की महा संकट से रक्षा करता है। 
८  जहां कृष्णा है वहां धर्म है।  और जहां धर्म है वहां जय है। 
९ जिनके मनमे संशय भरा हुआ है।  उनके लिए न यह लोक , न परलोक नाही सुख है। 
१०  अति लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखने वाले का काम यह दोनों ही धर्म को नुकसान पहुंचाते है। 
११ क्षमा धर्म है , यज्ञ है , वेद है , शास्त्र है।  जो इस प्रकार जानता है , वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है। 

दोस्तों  और भी वचन है , नियम है जो भगवान वेद व्यास जी ने हमे दिए है।  उसे हम नेक्स्ट आर्टिकल में जानेंगे।धन्यवाद।  जय श्री कृष्णा। 

Doing Hom-Havan Yajna In India ... Why???? What is the Science Behind Doing Yagnas And Havana ??

नमस्कार मित्रों।  SOURCE : GOOGLE  दोस्तों आप को बहोत बहोत धन्यवाद। आप इस तरह हमारे पोस्ट को पढ़ते रहिये और हमे नए आर्टिकल्स लिखने ...